राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : दूध से जले रणनीतिकार
17-Nov-2022 5:00 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : दूध से जले रणनीतिकार

दूध से जले रणनीतिकार

भानुप्रतापपुर उपचुनाव में भाजपा ने पूर्व विधायक ब्रह्मानंद नेताम को प्रत्याशी बनाकर तगड़े मुकाबले के संकेत दिए हैं। ब्रह्मानंद सीधे-सरल, और मिलनसार हैं। उनकी आम मतदाताओं के बीच साख अच्छी है। इससे परे पार्टी के अंदरखाने में उन नेताओं पर पैनी नजर रखने की रणनीति बन रही है, जो भीतरघात कर सकते हैं। इनमें दो प्रभावशाली ट्रांसपोर्टर भी हैं, जो कि पार्टी में ऊंचे ओहदे पर रहे हैं। एक ट्रांसपोर्टर तो पिछली सरकार में इतने पॉवरफुल रहे हैं कि भानुप्रतापपुर इलाके के खदानों में गाडिय़ां किसकी लगेगी ये भी वो ही तय करते थे।

सुनते हैं कि भाजपा के रणनीतिकार खैरागढ़ उपचुनाव की तरह कोई जोखिम नहीं लेना चाहते हैं। खैरागढ़ में जिस बड़े नेता को चुनाव संचालक बनाया गया था उनके ही साले ने खुलकर भीतरघात किया था। चुनाव निपटने के बाद सारे तथ्य सामने आए, और साले को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया। कुछ ऐसी ही स्थिति भानुप्रतापपुर में बन सकती है। क्योंकि दोनों ट्रांसपोर्टरों के व्यावसायिक हित भी हैं। ऐसे में दूध से जले रणनीतिकार अब छाछ को भी फूंक-फूंक कर पीने को मजबूर हैं।

आदिवासी सीट पर ओबीसी वोटर

भानुप्रतापपुर वैसे तो अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट है, लेकिन यहां पिछड़े वर्ग के साहू, और कलार मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष खुद साहू समाज से आते हैं। ऐसे में उनकी साहू वोटरों को भाजपा के पाले में लाने की कोशिश होगी।

कांग्रेस ने भी सामाजिक समीकरणों को ध्यान में रखकर उन समाज के प्रभावशाली नेताओं को चुनाव प्रचार में उतारने की रणनीति बना रही है। आदिवासी आरक्षण कटौती के मसले पर राजनीति पहले ही गरमाई हुई है। ऐसे में उपचुनाव के नतीजे समाज के नेताओं की जमीनी ताकत  को भी साबित करेंगे।

 छत्तीसगढ़ सुगबुगाहट का शिकार

हिन्दुस्तान में सभी किस्म की संस्थाओं की साख इतनी कम हो गई है कि अदालतों की चर्चा होने पर लोग यह सोचने लगते हैं कि कौन से जज किसकी तरफ फैसले देंगे। लोग यह चर्चा भी बहुत आसानी से करने लगते हैं कि कौन से जज किनसे सेट थे। अब यह तो भारतीय लोकतंत्र में सभी संवैधानिक संस्थाओं की गिरती हुई साख का नतीजा है कि सरकारों का भ्रष्ट रहना तय माना जाता है, सांसद सवाल पूछने के लिए रिश्वत लेते पकड़ाते हैं, और जज अदालत के बाहर का अपना पहला पांव संसद या राजभवन के भीतर धरना चाहते हैं। ऐसी चाहत और साख साथ-साथ तो चल नहीं सकते। अभी जब छत्तीसगढ़ के कुछ बड़े-बड़े मामले देश की सबसे बड़ी अदालत में खड़े हुए  हैं, तो लोगों की अटकलें सिर चढक़र बोल रही हैं। लोगों को इन मामलों से जुड़े हुए लोगों की ताकतों पर अधिक बड़ा भरोसा दिखता है, जजों की साख पर कम। यह नौबत शर्मनाक इसलिए भी है कि जज सांसदों या विधायकों की तरह बिकते हुए अभी तक नहीं मिले हैं, और थोड़े-बहुत इंसाफ की उम्मीद कुछ लोगों को अभी भी बाकी है। लेकिन यह सिलसिला लोकतंत्र की साख के लिए बड़ा ही खतरनाक है, और छत्तीसगढ़ ऐसी सुगबुगाहट का शिकार है।

अब तैनाती चुनाव तक

छत्तीसगढ़ में जिलों और अलग-अलग इलाकों में तैनात बड़े-बड़े अफसरों में एक फेरबदल की चर्चा है। इस फेरबदल का एक बड़ा पैमाना यह भी रहेगा कि चुनाव आचार संहिता लगने के दिन किन अफसरों को उनकी कुर्सी पर तीन बरस हो जाएंगे। वैसे में चुनाव आयोग ही उन्हें हटा देगा, और नए अफसर आयोग की मर्जी से तैनात होंगे। इसलिए यह सत्तारूढ़ पार्टी के हित में रहता है कि वह ऐसा दिन आने के पहले मर्जी के लोगों को तैनात कर दे। और मर्जी के लोगों के साथ-साथ यह बात भी रहती है कि चुनाव तक ऐसे अफसर अपने जिले, संभाग या पुलिस की रेंज को सम्हाल भी सकें। इसलिए एक साल से कम समय के लिए यह तैनाती ठीक चुनाव को ध्यान में रखकर की जाएगी। चुनाव का माहौल ऐसा रहता है कि राजनीतिक दलों को अफसरों की कई किस्म की मेहरबानी की जरूरत रहती है।

गुरुवार, शुक्रवार और मास्टर प्लान

राजधानी के मास्टर प्लान को लेकर आवास पर्यावरण मंत्रालय और नगर निवेश डायरेक्टोरेट के मध्य जबरदस्त खींचतान चल रही है। सूत्रों की मानें तो मास्टर प्लान जारी करने के 24 घंटे पहले तक इसमें बदलाव किए जाते रहे हैं। जो प्लान शुक्रवार को घोषित किया गया है उसमें, और जो गुरुवार तक बनाया गया था उसमें जमीन से आसमान जैसा फर्क है। पूर्व में प्रकाशित मास्टर प्लान की पुस्तिकाएं दफ्तर में पड़ी हुई है और घोषित प्लान में पन्ने जोड़-जोडक़र तैयार किया गया है। इसे लेकर मंत्रालय, सचिवालय तक के आला पदाधिकारी नाराज ही नहीं आक्रोशित हैं। इसकी जानकारी अब तक ‘दाऊजी’ को भी नहीं दी गई है और विपक्ष भी अब तक सुध नहीं पाया है। 30 तारीख तक दावा-आपत्तियों के बाद और क्या गुल खिलेगा देखने वाली बात होगी।

हाथों-हाथ बिक जाने वाली फसल...

अपने अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य से पर्यटकों को सहज आकर्षित करने वाले मैनपाट पठार की भुरभुरी मिट्टी में इन दिनों टाउ की फसल लहलहा रही है और चारों ओर मादक खुशबू बिखर रही है। यह एक विदेशी फसल है, जिसे यहां के शरणार्थी तिब्बती करीब 60 साल पहले यहां लेकर आए थे। अब न केवल जशपुर बल्कि सरगुजा जिले के कुछ हिस्सों में भी करीब 3000 हेक्टेयर में यह खेती हो रही है। टाउ की फसल में कीड़े कम लगते हैं, गाय-बकरियां भी इसे खाती नहीं, अधिक पानी की जरूरत भी नहीं। ज्यादा देखभाल के बिना तीन माह में तैयार हो जाती है। देश के अलग-अलग हिस्सों से व्यापारी फसल पकते ही पहुंचते हैं और हाथों-हाथ खरीदकर ले जाते हैं। पर, वे जो मुनाफा कमाते हैं उसका काफी कम हिस्सा किसानों को मिलता है। जैसे- थोक में 4000 रुपये क्विंटल के आसपास होती है, जबकि इसका आटा दिल्ली में 150 रुपये किलो तक बिकता है। विदेशों में इसे निर्यात किया जाता है। वहां इसे बक व्हीट कहते हैं। इसमें प्रोटीन, एमिनो एसिड्स, विटामिन्स, मिनरल्स, फाइबर और एंटी आक्सीडेंट की प्रचुर मात्रा होती है। ह्रदयरोग, डायबिटीज, कैंसर, लिवर में भी कारगर माना जाता है। इनके छिलकों का भी उपयोग गद्दे, तकिये बनाने में कर लिया जाता है। अक्टूबर में राज्य सरकार ने कई दलहनी-तिलहनी फसलों को समर्थन मूल्य पर खरीदने की घोषणा की, पर टाउ इनमें शामिल नहीं था। जून में मुख्यमंत्री ने जशपुर प्रवास के दौरान टाउ के लिए प्रोसेसिंग प्लांट लगाने की घोषणा की थी। जशपुर में काजू, चाय के प्रोसेसिंग प्लांट पहले से काम कर रहे हैं। प्रोसेस्ड टाउ किसानों की आमदनी कई गुना बढ़ा सकती है। जशपुर में रामतिल, आलू, टमाटर, काजू सहित कई दूसरी फसलें बोई जाती हैं। छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाकों की तरह यहां धान उत्पादन की बाध्यता और सरकारी खरीद पर निर्भरता नहीं है। मध्य छत्तीसगढ़ में धान की जगह दूसरी फसल लेने से किसान की हिचकिचाहट के पीछे एक स्थायी  कारण है कि उनके सामने कैश में भुगतान करने के लिए व्यापारी खड़े नहीं होते। सरकारी खरीद के लिए इन फसलों के उपार्जन केंद्र भी धान की तरह हर जगह नहीं, गिने-चुने हैं।

भानुप्रतापपुर पर आप की खामोशी

छत्तीसगढ़ में चार साल के भीतर पांचवा उप-चुनाव भानुप्रतापपुर में होने जा रहा है। अब जब नामांकन दाखिले का सिलसिला शुरू हो गया है, आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रभारी संजीव झा भानुप्रतापपुर के दौरे पर यह बताने के लिए पहुंचे थे कि उनका दल यहां से चुनाव नहीं लडऩे जा रहा है। बीते चुनाव में बिल्हा सीट के अलावा भानुप्रतापपुर ही ऐसी सीट थी जिनमें आप 10 हजार के करीब का आंकड़ा छूने में सफल थी। पूरे प्रदेश में उसे 1.25 लाख के आसपास वोट मिल पाए थे, जबकि जमानत कहीं भी नहीं बची थी। पर अब स्थितियां बदल चुकी हैं। दिल्ली के बाद पंजाब में सरकार बन चुकी है। गुजरात में अच्छे प्रदर्शन की संभावना दिख रही है। मुंगेली के संदीप पाठक को राज्यसभा में भेजकर पार्टी ने छत्तीसगढ़ पर फोकस करने की अपनी मंशा दिखाई है। पर, खैरागढ़ के बाद यह दूसरा विधानसभा चुनाव है, जहां उसे मैदान में उतरने का मौका और खुद को तौलने का मौका था। पर, यदि लडऩे के बाद फिर पिछले चुनाव जैसी कमजोर स्थिति रह गई तो वह वर्ग जो तीसरे विकल्प को लेकर आम आदमी पार्टी से उम्मीद लगाकर बैठा है, उनका भरोसा डगमगा जाएगा। इसलिए अभी परदा उठाना ठीक नहीं है।  

एफआईआर में इतनी देरी?     

जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के प्रमुख पूर्व विधायक अमित जोगी की पत्नी ऋचा जोगी का गोंड जाति का प्रमाण-पत्र अवैधानिक है, यह निर्णय साल भर पहले आ चुका है। मगर, एफआईआर अब जाकर दर्ज की गई है। हाल ही में अमित जोगी ने यह बयान जरूर दिया है कि स्वर्गीय मनोज मंडावी से पारिवारिक संबंध होने की वजह से उनका दल वहां चुनाव नहीं लडऩे वाला है, पर कांग्रेस का रुख यही है कि इस फैसले से उन्हें कोई मतलब नहीं। जीपीएम जिले के प्रभारी मंत्री जयसिंह अग्रवाल का तो कहना है कि जोगी की पार्टी ने मरवाही में भाजपा को समर्थन दिया, नतीजा यह निकला कि कांग्रेस 38 हजार वोटों से जीत गई।

दूसरी तरफ सन् 2023 के विधानसभा चुनाव में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ ने सभी 90 सीटों से चुनाव लडऩे की मंशा घोषित कर दी है। जोगी ने कहा है कि कांग्रेस या भाजपा से गठबंधन नहीं किया जाएगा। इधर अपने गृह ग्राम जोगीसार में हर साल होने वाले नवाखाई कार्यक्रम की भी तैयारी भी वे कर रहे हैं। अभी यह आकलन करना मुश्किल है कि स्व. अजीत जोगी के जाने के बाद लगातार कमजोर हुई उनकी पार्टी को 2023 में कैसा समर्थन मिलेगा, पर लोग तो इस एफआईआर को अमित जोगी की अचानक आई सक्रियता से जोड़ रहे हैं।

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