राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : कांग्रेस में एक नया दर्जा
19-Nov-2022 4:16 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : कांग्रेस में एक नया दर्जा

कांग्रेस में एक नया दर्जा

राहुल गांधी की भारत जोड़ो पदयात्रा में उनके साथ चलने की हसरत रखने वालों की राह आसान नहीं है। कड़ी हिफाजत के चलते बहुत ही सीमित लोगों को साथ चलने की इजाजत मिलती है। पार्टी के लोग एक-एक नाम का वजन और उसकी जरूरत तौलते हैं, और सुरक्षा अधिकारी तय करते हैं कि किस जगह कितने लोगों को साथ चलने की इजाजत दी जा सकती है। अब राहुल गांधी छत्तीसगढ़ से तो गुजर नहीं रहे, लेकिन विभाजन के पहले के मध्यप्रदेश वाले हिस्से से जरूर गुजर रहे हैं। इतिहास पर थोड़ा सा हक जताते हुए छत्तीसगढ़ के कई कांग्रेस नेता मध्यप्रदेश में राहुल के साथ चलना चाहते हैं, लेकिन वहां अपना नाम फिट करवाने का कोई जुगाड़ लोगों को दिख नहीं रहा है। छत्तीसगढ़ के लोगों को एक छोटी सी सहूलियत यह है कि राहुल की पदयात्रा में दिग्विजय सिंह का खासा दखल है, और छत्तीसगढ़ के हर बड़े कांग्रेसी का दिग्विजय से परिचय भी है। लेकिन अभी-अभी इंदौर में राहुल गांधी को बम से उड़ा देने की जो धमकी सामने आई है, उसे गंभीरता से लेते हुए पुलिस और राहुल के निजी सुरक्षा अधिकारी अधिक चौकन्ने हो गए हैं, और साथ चलने की इजाजत मिलना नामुमकिन नहीं तो बहुत मुश्किल तो हो ही गया है। अब देखें की पार्टी के भीतर यह नई सामाजिक प्रतिष्ठा, यह नया वीवीआईपी दर्जा किन और कितने लोगों को मिल पाता है, और कितने लोग राहुल के साथ अपनी तस्वीर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर पाते हैं, और घर-दफ्तर में टांग पाते हैं।

कांग्रेस के एक जानकार ने बताया कि राहुल गांधी सुबह 6 बजे से चलना शुरू कर देते हैं, और हर दिन 25 किलोमीटर तक चलते हैं, उतना चलना भी नेताओं के लिए आसान नहीं है। फिर भी अगर इस बहाने नेता पैदल चलने का अभ्यास करते हैं, तो पार्टी के भीतर प्रतिष्ठा में सुधार हो न हो, सेहत में सुधार तो हो ही जाएगा। मध्यप्रदेश में राहुल के साथ चलने के लिए वहीं के कांग्रेस नेताओं में कड़ा मुकाबला है, और ऐसे में छत्तीसगढ़ के नेताओं में से जाने कितनों की बारी आ पाएगी।
फिलहाल तो कल महाराष्ट्र से राहुल की सभा की जो तस्वीरें निकलकर सामने आई हैं, वे हक्का-बक्का कर रही हैं। महाराष्ट्र की सभा की ठीक पहले राहुल ने सावरकर पर बयान देकर भाजपा-शिवसेना में एक नया बवाल खड़ा कर दिया है, लेकिन इसके बाद भी महाराष्ट्र की उनकी सभा में जो भीड़ दिख रही है, वह अविश्वसनीय है। वे किसी भी पैमाने पर बहुत अच्छे और असरदार वक्ता नहीं हैं, लेकिन सभा में अगर लाख या लाखों लोग पहुंचे हैं, तो यह किसी की भी उम्मीद से अधिक है। बहुत से लोगों ने तो यह भविष्यवाणी की थी कि जैसे-जैसे राहुल उत्तर की तरफ बढ़ेंगे, यात्रा का स्वागत करने वाले लोग घटते जाएंगे। लेकिन हो तो ठीक इसका उलटा रहा है।

यह व्यवस्था कुछ नई है!

आईपीएस अफसरों की ट्रांसफर की छोटी सी लिस्ट आई तो वह सबको हैरान करने वाली थी। डीजीपी की कुर्सी से हटाकर कौशल्या माता मंदिर के बगल में चंदखुरी पुलिस अकादमी भेजे गए डी.एम. अवस्थी को ईओडब्ल्यू और एसीबी के नाजुक दफ्तर वापिस लाया गया है। वे कई महीनों से हाशिए पर थे, और अब इस सरकार के लिए सबसे अहमियत रखने वाले एक दफ्तर में स्थापित किए गए हैं। दिलचस्प यह है कि भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री बनते ही डी.एम. अवस्थी को ही ईओडब्ल्यू-एसीबी का चार्ज दिया था, और उसके बाद इस दफ्तर में कई अफसर आए-गए। अब इस कुर्सी को डीजी के स्तर का बनाकर एक बार फिर डी.एम.अवस्थी को यहां लाया गया है। डी.एम.अवस्थी अगले छह महीने में रिटायर होने वाले हैं, और नौकरी के इस दौर में बहुत से लोग रिटायरमेंट के बाद की किसी आयोग वगैरह की तैनाती की तैयारी भी कर लेते हैं।

इसी आदेश में यह भी पहली बार हुआ है कि किसी आईजी को राजधानी रायपुर की रेंज में केवल रायपुर जिले का प्रभारी बनाया गया है। अजय यादव को सरगुजा से लाकर आईजी इंटेलीजेंस बनाया गया है, और राजधानी-जिले का रेंज आईजी भी। शेख आरिफ हुसैन को रायपुर रेंज का प्रभारी आईजी तो बनाया गया है, लेकिन राजधानी रायपुर का जिला उनके दायरे से बाहर रखा गया है। यह फैसला कुछ अलग किस्म का है, और रायपुर की राजनीतिक गतिविधियों के इस चुनावी बरस को ध्यान में रखते हुए किया गया दिखता है कि आईजी इंटेलीजेंस को रायपुर जिले का रेंज-प्रभार भी दिया गया। अजय यादव कुछ समय पहले तक रायपुर के एसएसपी थे, और अब ठीक उसी जिले के, उतने जिले के ही आईजी भी हैं।

लोगों ने याद किया कि जब पिछली सरकार में मुकेश गुप्ता को इंटेलीजेंस प्रमुख के साथ-साथ रायपुर रेंज में रायपुर जिले का भी आईजी का प्रभार दिया गया था, उस वक्त भी रायपुर रेंज के बाकी जिलों का आईजी प्रभार आर.के.विज को अतिरिक्त प्रभार के रूप में दिया गया था जो कि उस वक्त दुर्ग रेंज के आईजी भी थे।

विस्फोट की अंतर्राष्ट्रीय गूंज

कुसमुंडा खदान में कोयला निकालने के लिए किए गए विस्फोट की गूंज दूर तक पहुंच गई है। अंतर्राष्ट्रीय जलवायु कार्यकर्ता 12 वर्षीय लिसिप्रिया कंगुजम ने इस ब्लास्ट पर चिंता जताते हुए अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा है कि एक तरफ भारत न केवल कोयला बल्कि सभी जीवाश्म इंधन को चरणबद्ध तरीके से बंद करने का आह्वान कर रहा है वहीं दूसरी तरफ कल ही कुसमुंडा खदान में भारी ब्लास्ट की गई है। हाल ही में हसदेव अरण्य में नई खदानों की मंजूरी के खिलाफ चल रहे स्थानीय आदिवासियों के आंदोलन को समर्थन देने के लिए लिसिप्रिया सरगुजा और बिलासपुर भी आई थीं।

निर्दलीय बने कांग्रेस की चिंता  

भानुप्रतापपुर उप चुनाव में सर्व आदिवासी समाज की यह योजना पूरी नहीं हुई कि कांग्रेस भाजपा के आरक्षण पर रवैये के विरोध में प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र से एक उम्मीदवार खड़ा किया जाए। योजना 450 नामांकन दाखिल करने की थी लेकिन 50 तक भी नहीं पहुंच सका। निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में फॉर्म भरने वाले इन 33 लोगों में से 16 के ही फॉर्म सही मिले। ज्यादातर नामांकन दस्तावेजों के अभाव में या फिर नामांकन ठीक तरह से नहीं भरे जाने के कारण रद्द हुए। कांग्रेस सरकार के बचे हुए एक साल के कार्यकाल में होने वाला यह संभवत: अंतिम उप-चुनाव है। बीते चार सालों के चार उप-चुनावों में मिलती आई जीत का सिलसिला वह बरकरार भी रखना चाहेगी। पर अभी जो निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में नजर आ रहे हैं, वे उनको नुकसान पहुंचा सकते हैं। मालूम यह हुआ है कि सर्व आदिवासी समाज के जिन 16 प्रत्याशियों का नामांकन सही पाया गया है उनमें से 12 कांग्रेस से ही जुड़े रहे हैं। सिर्फ दो भाजपा से आए हैं और शेष दो किसी दल से नहीं जुड़े थे। अभी नामांकन वापसी का समय बचा हुआ है। भाजपा तो चाहेगी कि निर्दलीय मैदान में डटे रहें। इससे कांग्रेस वोट कटेंगे। इधर कांग्रेस की कोशिश जारी है कि 16 में से कम से 12 को तो नाम वापस लेने के लिए मना लिया जाए।


चूहा, बिल्ली, शेर के किस्से
पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने भानुप्रतापपुर में भाजपा के नामांकन के दौरान एक किस्सा सुनाया था कि एक चूहे ने बार-बार वरदान मांगा तो साधु ने उसे शेर बना दिया। शेर बन जाने के बाद चूहा साधु को ही खाने पर उतारू हो गया। साधु ने गंगाजल छिडक़ा और उसको फिर से चूहा बना दिया। डॉ. सिंह ने जनता से अपील की कि चूहे को फिर चूहा बना दें, मौका आ गया है। उनका इशारा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की ओर था। मुख्यमंत्री ने इस पर प्रतिक्रिया भी दी कि छत्तीसगढिय़ा मुख्यमंत्री डॉ. सिंह को पच नहीं रहे हैं इसलिए कभी कुत्ता, कभी बिल्ली कभी चूहे का नाम ले रहे हैं। इसके बाद ही खाद्य मंत्री अमरजीत भगत की प्रतिक्रिया आई है। उन्होंने मोटापे को भ्रष्ट होने की पहचान बताया और कहा कि डॉ. सिंह 15 साल में चूहे से शेर बन गए हैं।

चुनाव आने के पहले बेतुके, अजीबोगरीब, विवादित बयान बढ़ जाते हैं। अभी तो भानुप्रतापपुर में सिर्फ नामांकन दाखिले की प्रक्रिया पूरी हुई है। अभी पूरा चुनाव प्रचार बाकी है। स्टार प्रचारक भी पहुंचेंगे। हम-आप आगे और सुनते, बर्दाश्त करते रहने के लिए तैयार रहें, जरूरी और गंभीर चर्चा की उम्मीद न रखें।

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