राजपथ - जनपथ
दो जन्मदिनों की कहानी
भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष अरूण साव का जन्मदिन राजधानी रायपुर के एकात्म परिसर में जिस धूमधाम से मनाया गया, उसने लोगों को चौंका दिया। अरूण साव का रायपुर में कभी काम नहीं रहा, और वे बिलासपुर से ही लोकसभा सदस्य हैं। ऐसे में रायपुर में कार्यक्रम इतना बड़ा हो जाएगा, इसका अंदाज लोगों को नहीं था। नतीजा यह हुआ कि एकात्म परिसर के आसपास, दूर-दूर तक पार्किंग की कोई जगह नहीं बची, ट्रैफिक जाम रहा, और लोगों की आवाजाही अंतहीन रही। रात तक लाउडस्पीकर पर यह घोषणा भी होती रही कि जो लोग आए हैं उनके खाने का इंतजाम है, और लोग खाना खाकर ही जाएं। ऐसा अंदाज है कि जिन लोगों को इस बार विधानसभा टिकट पाने की हसरत है, उन लोगों ने बड़े उत्साह के साथ नए प्रदेश अध्यक्ष का यह जन्मदिन मनाया।
कुछ हफ्ते पहले ही पिछले मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का जन्मदिन भी पार्टी दफ्तर से परे मनाया गया था। एयरपोर्ट के सामने शहर के सबसे बड़े जलसाघर, जैनम में वह समारोह रमन सिंह के सबसे करीबी मंत्री रहे राजेश मूणत ने किया था, और वह भी बहुत बड़े पैमाने पर था, लेकिन वह पार्टी का कार्यक्रम नहीं था। पन्द्रह बरस रमन सिंह मुख्यमंत्री रहे, और उनका जन्मदिन सरकारी बंगले में ही मनाया जाता रहा, सत्ता से हटने के बाद इस बरस सबसे धूमधाम से उनका जन्मदिन मनाया गया, और उसने भी लोगों को चौंका दिया था। मूणत तो अपने हिसाब से अगला चुनाव लडऩे वाले हैं ही, और उन्होंने रायपुर पश्चिम में घर बनाकर वहां रहना भी शुरू कर दिया है, और मौलश्री विहार का घर बेच भी दिया है। लेकिन उन्होंने रमन सिंह का कार्यक्रम जिस भवन में करवाया वह उनके पसंदीदा विधानसभा क्षेत्र से खासा दूर था। हो सकता है कि उन्होंने अपने चुनाव क्षेत्र के लोगों को रमन सिंह के जन्मदिन पर अधिक बुलाया हो।
पैसों से लाल, सत्ता के दलाल
शहर की दो सबसे बड़ी और सबसे महंगी कॉलोनियों को लेकर सत्ता के साथ गठजोड़ की एक लड़ाई चल रही है। इन तक पहुंचने का रास्ता अभी खराब है, और इन दोनों की चाहत उस एक्सप्रेस हाईवे से अपना रास्ता पाने की है जिस पर से किसी को दाखिला न देना पिछली सरकार के समय से तय है ताकि कोई हादसे न हों, और तेज रफ्तार ट्रैफिक एक्सप्रेस हाईवे पर गुढिय़ारी से लेकर एयरपोर्ट और अभनपुर रोड तक पहुंच सके। अब पैसों में बहुत ताकत होती है, और पैसे वालों की कॉलोनी अपना समर्थन करने के लिए सत्ता के दलाल भी जुटा लेती है, इसलिए अब म्युनिसिपल और दूसरे सरकारी दफ्तरों के मझले दर्जे के अफसरों का धर्मसंकट का वक्त आ गया है कि वे पैसों से लाल, और सत्ता के दलाल लोगों के दबाव को कैसे झेलें। इस भ्रष्टाचार के खिलाफ लोग इसके पूरा होने के पहले से लगे हुए हैं, सूचना के अधिकार में हर कागज निकाला हुआ है, और अदालत तक की तैयारी भी हो चुकी है। अब पैसों और सत्ता के मिलेजुले दबाव से दुर्घटनाओं का रास्ता खुलता है या नहीं, इसी पर सबकी निगाहें हैं।
छत्तीसगढ़ को चूसकर...
वन विभाग के मुखिया संजय शुक्ला ने कल मृत्यंजय शर्मा नाम के एक रेंजर को सस्पेंड किया है जिस पर साढ़े चार करोड़ के काम में सवा करोड़ से अधिक के भ्रष्टाचार के सुबूत मिले हैं। अब हर भ्रष्टाचार का सुबूत तो रहता नहीं है, वरना साढ़े चार करोड़ में काम ही कुल सवा करोड़ का हुआ हो तो बहुत है। जंगल विभाग प्रदेश का बड़ा ही अनोखा विभाग है जहां सुप्रीम कोर्ट के रास्ते मिलने वाले हजारों करोड़ के कैम्पा फंड में भ्रष्टाचार की कहानियां बच्चे-बच्चे की जुबान पर हैं, लेकिन वनविभाग हांकने वाले लोग ही इससे अनजान हैं। अब पता लगा है कि कैम्पा में संगठित और योजनाबद्ध भ्रष्टाचार चलाने वाले अफसर ने सरकार को अपनी ऐसी शानदार सेवाओं के कुछ दूसरे विभागों में विस्तार का एक प्रस्ताव दिया है, देखें कि भ्रष्टाचार को काबिलीयत मानने वाले इस विभाग के एक और अफसर का बाहर किस तरह का विस्तार होता है। जब एक-एक रेंजर का करोड़ों का भ्रष्टाचार है, तो इसमें हैरानी की क्या बात है कि तबादलों के सीजन में तबादलों का ठेका लेने वाले अफसर का बड़ा वजन माना जाता है। छत्तीसगढ़ को चूसकर पड़ोस के आन्ध्र में दौलत किस तरह इक_ी हो रही है, यह भी देखने लायक है। विभाग का मुखिया कोई भी अफसर रहे, यह सिलसिला जारी है।
सीएम संग खाने सिर फुटव्वल
भेंट-मुलाकात में राजनांदगांव विधानसभा में रात ठहरे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के संग खाने में शरीक होने के लिए कांग्रेस नेताओं में सिर-फुटव्वल की हालत की पार्टी में जमकर चर्चा है। नांदगांव में मुख्यमंत्री के साथ रात्रि भोजन के लिए प्रशासन की निगरानी में बनी सूची में कई नाम हैरान करने वाले थे। कांग्रेस के मेहनतकश नेताओं को उस वक्त फजीहत का सामना करना पड़ा, जब भोजन के मेज पर जाने से पहले ही सुरक्षादस्ते ने रोक लगा दी।
बताते हैं कि सीएम के साथ भोजन करने बैठे कुछ चेहरे ऐसे थे जिनका भाजपा सरकार में अंदरूनी प्रभाव रहा। कांग्रेसी नेताओं और पदाधिकारियों के साथ आपसी संवाद बढ़ाने के लिए सीएम की तरफ से दावत की व्यवस्था की गई थी। सुनते हैं कि खाने पर बैठने के लिए सीएम सचिवालय और प्रशासन की देखरेख में एक लिस्ट बनाई गई। कुछ नेताओं को इस बात की भनक नहीं लगी कि उनके विरोधी गुट ने लिस्ट से उनका नाम हटवा दिया है। चर्चा है कि प्रभावशाली नेताओं ने प्रशासनिक अधिकारियों पर दबाव ड़ालकर विरोधी नेताओं को मेज से दूर रखा। वैसे भी राजनांदगांव की सियासत में कांग्रेस की गुटीय लड़ाई से निचले कार्यकर्ता बेहाल हो गए हैं। मुख्यमंत्री की मौजूदगी में गुटीय वर्चस्व पूरी तरह से हावी रहा।
बताते हैं कि भाजपा से नजदीकी रिश्ता बनाए हुए कांग्रेसी नेताओं को तरजीह मिलने से निष्ठावान कांग्रेसी बुदबुदाते हुए लौट गए। वहीं चेहरा लाल देखकर कुछ कांग्रेसी नेताओं को सर्किट हाऊस में जाने का अफसोस भी रहा। नांदगांव के अलावा सभी विधानसभा में नाम जोडऩे-कांटने को खेल रहा। सीएम के खाने से अलग-थलग करने की कवायद में मौजूदा विधायकों ने कोई-कसर नहीं छोड़ी। उनके इस हल्केपन को लेकर विरोधी गुट ने माथा पकड़ लिया।
क्या हाथी उन्मूलन का अभियान है?
छत्तीसगढ़ में जिस तरह हाथियों की बेमौत मारे जाने की घटनाएं सामने आ रही है, वह संवेदनहीनता की सीमा पार करती जा रही है। कुछ दिन पहले धरमजयगढ़ वन मंडल के जामघाट की पहाड़ी में दो पेड़ों के बीच एक हाथी का जीर्ष-शीर्ष शव मिला। इसे एक माह पहले का बताया जाता है। किस तरह से इसकी मौत हुई, यह भी पता लगाना मुश्किल है। पिछले हफ्ते रायगढ़ वन मंडल के घरघोड़ा रेंज में एक हाथी का शव मिला। पता चला कि करंट से मौत हो हुई है। छाल रेंज में अक्टूबर माह में एक हाथी का चार-पांच दिन पुराना शव मिला। इस साल फरवरी में भी लैलूंगा परिक्षेत्र में हाथी मृत मिला। हाल के दिनों में ही रायगढ़, सरगुजा रेंज में 6-7 घटनाएं सामने आ चुकी हैं। इधर इसी महीने बलौदाबाजार के देवपुर परिक्षेत्र में हाथी को करंट लगाकर मार डाला गया। एक ग्रामीण की गिरफ्तारी की गई। पिछले महीने कटघोरा वन परिक्षेत्र में 12 ग्रामीणों को गिरफ्तार किया। इनमें एक पंचायत पदाधिकारी भी है। इन्होंने एक शावक हाथी को मारकर उसका शव जमीन पर गाड़ दिया था।
हाथी प्रभावित महासमुंद, पिथौरा, जशपुर, कोरबा, बलरामपुर आदि वन क्षेत्रों में लगातार हाथियों की मौत की खबरें आ रही हैं। भारतीय प्रजाति के एक हाथी की औसत आयु 48 वर्ष होती है। छत्तीसगढ़ के जंगलों में जिन हाथियों का शव मिल रहा है उनमें कोई 15 बरस का है तो कोई 20 का। दो तीन साल के शावक भी मिल रहे हैं। सूरजपुर में हाथी-हथिनी के बीच हुए संघर्ष की एक घटना को छोड़ दें तो किसी में भी उनके बीच मुठभेड़ की बात सामने नहीं आई है। अनुकूल ठिकाने और भोजन, पानी की तलाश में भटक रहे हाथियों की असामयिक मौतें हो रही हैं। हाथियों को करंट लगाकर मारने की घटनाओं के पीछे केवल फसल, झोपड़ी बचाना ही एक कारण नहीं है, बल्कि इसके अंगों की तस्करी भी एक बड़ी वजह है। जब खदानों को क्लीयरेंस देना होता है तो हाथियों की मौजूदगी ही स्वीकार नहीं की जाती। कैंपा मद में करोड़ों रुपये वन्यजीवों के सुरक्षित रहवास के लिए आवंटित किए जाते हैं, खर्च क्या होता है, जांच का विषय है। एलिफेंट कॉरिडोर की बात जब-तब उठाई जाती है, पर वह भी धरातल पर नहीं है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी जंगलों से गुजरने वाले हाईटेंशन तारों में लेयर लगाने और उसे ऊंचा करने का काम वन और बिजली विभाग के बीच इस झगड़े में फंसा है कि खर्च कौन उठाए।