राजपथ - जनपथ

आये भी वो, निकल भी गये...
गैर भाजपा शासित राज्यों में केंद्र सरकार की जांच एजेंसियां काफी सक्रिय हैं। हालांकि कई बार कार्रवाई की पूर्व सूचना भी हो जाती है। दो दिन पहले आईटी की एक बड़ी टीम रायपुर में रूकी, तो कई कारोबारियों को भनक लग गई। उन्होंने तुरंत अपने शुभचिंतकों, और साथी कारोबारियों को इसकी जानकारी देने में देर नहीं लगाई। छत्तीसगढ़ में भानुप्रतापपुर विधानसभा का उपचुनाव चल रहा है। यहां भाजपा के लोग सत्ताधारी दल पर चुनाव जीतने के लिए करोड़ों खर्च करने का आरोप लगा रहे हैं।
कुछ लोगों का अंदाजा था कि टीम संभवत: इसी लिए आई है। मगर आईटी की टीम अगले दिन तडक़े ओडिशा निकल गई, और फिर वहां पदमपुर इलाके में जाकर तीन बड़े कारोबारियों के यहां छापेमारी भी की। ओडिशा में बीजेडी की सरकार है। यह भी संयोग है कि पदमपुर में विधानसभा के उपचुनाव चल रहे हैं। पदमपुर में छापेमारी की खबर पाकर भानुप्रतापपुर में सक्रिय रहने वालों ने राहत की सांस ली।
भोजराम की बेवक्त बिदाई
बीएसएफ से राज्य पुलिस में आए अफसर धर्मेंद्र सिंह छवाई महासमुंद एसपी बनाए गए। धर्मेंद्र के राज्य पुलिस सेवा में संविलियन को लेकर काफी विवाद हुआ था। बावजूद पिछली सरकार ने उनका संविलियन कर दिया, और आईपीएस अवार्ड होने के बाद उन्हें महासमुंद जैसे राजनीतिक व प्रशासनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण जिले की कमान सौंपी गई है। धर्मेंद्र का एसपी के रूप में पहला जिला है। धर्मेंद्र से पहले भोजराम पटेल ने महासमुंंद में अच्छा काम किया था। उन्होंने जिले के सभी थाना परिसर में व्यक्तिगत रूचि लेकर कृष्णकुंज की तर्ज पर धार्मिक महत्व के पेड़ लगवाने के पहल की थी। इसकी खूब सराहना भी हुई। पटेल के कुछ महीने के भीतर हटने के पीछे भले ही कई तरह की चर्चा है, लेकिन उनकी काबिलियत पर सवाल नहीं उठे हैं।
संपन्न और साइकिल वाले देश
छत्तीसगढ़ से जर्मनी के एक अंतरराष्ट्रीय बॉडीबिल्डिंग मुकाबले में जज बनकर गए संजय शर्मा ने एक जर्मन शहर की एक सार्वजनिक जगह की यह फोटो भेजी है जो कि साइकिलों से पटी हुई है। हिन्दुस्तान में शहरों के अलावा अब तो कस्बों में भी लोग पेट्रोल, डीजल, और बैटरी से चलने वाली गाडिय़ां दौड़ाते दिखते हैं, वैसे में साइकिलों वाला देश कुछ अटपटा लगता है, खासकर जब जर्मनी की प्रति व्यक्ति आय हिन्दुस्तान से 25 गुना अधिक है। जितने विकसित और संपन्न देश हैं, वहां पर साइकिलों का इस्तेमाल उतना ही अधिक होता है, योरप के कई देशों में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति साइकिलों पर चलते दिखते हैं। हिन्दुस्तान में साइकिल गरीबों में भी सबसे ही गरीब मजदूरों की होकर रह गई है। जैसा कि इस तस्वीर से देखा जा सकता है साइकिलों को रखने के लिए जगह भी तय है, जहां उन्हें ताला लगाकर हिफाजत से रखा जा सकता है। हिन्दुस्तान में अधिकतर जगहों पर न तो ट्रैफिक साइकिलों के लायक रह गया है, और न ही उन्हें खड़े रखने की जगह बनाई जाती है। किसी सरकारी दफ्तर में भी साइकिल को ताला लगाकर रखने की कोई जगह नहीं रहती।
जिला नहीं बनाने की मांग
चुनाव के पहले खैरागढ़ उप-चुनाव की तरह भानुप्रतापपुर को जिला बनाने का वादा कांग्रेस नहीं कर रही है। इसकी वजह यह नहीं है कि भाजपा उम्मीदवार ब्रह्मानंद नेताम के खिलाफ एफआईआर को अचूक हथियार मान रही है, बल्कि कुछ दूसरे कारण भी हैं। अंतागढ़ के लोगों को इस बात की चिंता सता रही है कि भानुप्रतापपुर को चुनाव का फायदा न मिल जाए। वे भी वर्षों से जिला बनाने की मांग करते आ रहे हैं। अंतागढ़ की दावेदारी तब ठंडे बस्ते में चली जाएगी यदि भानुप्रतापपुर को जिला बना दिया जाएगा। इसलिये जब से चुनाव प्रचार अभियान शुरू हुआ है अंतागढ़ से अलग-अलग संगठन कांकेर कलेक्ट्रेट पहुंच रहे हैं। वे अफसरों को मुख्यमंत्री के नाम पर ज्ञापन सौंप रहे हैं। इनमें भानुप्रतापपुर को जिला बनाने की किसी भी तैयारी को लेकर आंदोलन की चेतावनी दी जा रही है। अंतागढ़वासियों का कहना है कि भानुप्रतापपुर का तहसील रहते हुए भी काफी विकास हो चुका है। अंतागढ़ इलाका उसके मुकाबले काफी पिछड़ा है। दावेदारी अंतागढ़ की ही उचित है। अब ऐसी स्थिति में जब अगले साल आम चुनाव होने वाला हो, भानुप्रतापुर के पक्ष में कोई निर्णय ले लिया गया तो अंतागढ़ की नाराजगी से कैसे निपटा जाएगा?
वैसे दिलचस्प यह है कि कांकेर जिले के ही पखांजूर को जिला बनाने की मांग और उसके विरोध में यहां के लोग बंट गए हैं। पिछले साल एक बड़ा आंदोलन जिला बनाने की मांग को लेकर हुआ, लोग सडक़ पर धरने पर बैठ गए थे। तब इसका अनेक आदिवासी नेताओं ने विरोध किया। उनका कहना है कि जिला बनने के बाद यहां के खनिज साधनों का तेजी से दोहन होने लगेगा। यहां के परलकोट को पर्यटन स्थल बनाने का विरोध भी हो रहा है। कहना है कि ग्राम सभा के प्रस्ताव के बिना इस पर फैसला नहीं लिया जा सकता।
और, जश्न मना रहे रेलवे अफसर
रेल मंडल बिलासपुर के अधिकारियों ने बीते दिनों केक काटा और उसे मीडिया, सोशल मीडिया में वायरल भी किया। वजह थी इस वित्तीय वर्ष में 100 मिलियन टन माल ढुलाई कर लेना। लदान पिछले साल भी तेज रही, पिछले साल के मुकाबले 100 मिलियन टन तक पहुंचने में चार दिन कम लगे। रेलवे के अधिकारी खुद ही ढिंढोरा पीट रहे हैं कि सवारी गाडिय़ां देर से क्यों चल रही है। आए दिन दो चार ट्रेनों को रैक नहीं पहुंचने के कारण रद्द किया जा रहा है। ट्रेन इतनी देर से चलती है कि रैक वापस आ ही नहीं पाती और अगले दिन का शेड्यूल बिगड़ जाता है। लगातार विरोध और आंदोलन के दबाव में बंद ट्रेनों को रेलवे ने शुरू तो किया, पर बोगियां घिसट-घिसट कर चल रही है। यात्रियों का हाल-बेहाल है। यह स्थिति तब है जब कई छोटे स्टेशनों में स्टापेज खत्म कर दिया गया है। कोई दिन और कोई रूट नहीं जिसमें ट्रेन देर नहीं हो रही हैं। आज ही की सूची देख लें कोई तीन घंटे तो कोई पांच घंटे लेट चल रही है। हमसफर एक्सप्रेस तो 10.30 घंटे विलंब से है। केक काटने पर अचरज नहीं होना चाहिए। रिकॉर्ड लदान करने पर रेलवे टीम को अनेक रिवार्ड मिलते हैं। यदि लदान में आगे है तो फिर यात्री ट्रेनों को 10 मिनट लेट करें या 10 घंटे कोई जांच नहीं होनी है।
सिंहदेव का इशारा किसकी ओर?
बीजेपी पार्षदों की शिकायत पर अंबिकापुर में स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव और उनके परिजनों के खिलाफ जमीन मामले में जांच का जिन्न एक बार फिर बाहर निकल गया है। फर्जी तरीके से 80 एकड़ सरकारी जमीन बेचने के आरोप की जांच के लिए तहसीलदार ने कलेक्टर के आदेश पर जांच टीम बनाई है। सिंहदेव ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि कई बार जांच हो चुकी, भाजपा सरकार ने भी कराई थी। कहीं गड़बड़ी नहीं मिली। अब और क्या जांच हो रही है? सब जानते हैं कि जांच का कहां से आदेश आ रहा है, क्यों जांच हो रही है। जाहिर है सिंहदेव ने इसे कांग्रेस के भीतर चल रहे खींचतान से इसे जोड़ दिया है। शिकायत जरूर भाजपा नेता ने की है, अगर उनके पीछे सत्ता से जुड़ा कोई न कोई व्यक्ति खड़ा होगा। ([email protected])