राजपथ - जनपथ

दौलत के कागज हैरान करते हैं
सरकार के कुछ दफ्तर ऐसे होते हैं जहां पर उसके कर्मचारियों और अधिकारियों की दौलत की जानकारी पहुंचती ही पहुंचती है। हर विभाग में ऐसी फाईलें किसी एक अफसर तक तो आती ही हैं, और बोलचाल की सरकारी जुबान में कहें, तो उनके पास विभाग में हर किसी की कुंडली रहती है। जमीन-मकान के नाम-पते रहते हैं, उनका दाम रहता है, बैंकों में बचत की जानकारी रहती है, लिए हुए कर्ज का हिसाब रहता है, और किस-किस रिश्तेदार से कैसी-कैसी मोटी रकमें तोहफे में मिली हैं, यह जानकारी भी रहती है। सरकार के ऐसे टेबिलों पर काबिज अफसरों के चेहरों पर कुटिल मुस्कुराहट आदतन आने लगती है। किसी अफसर या उसके परिवार की संपन्नता की चर्चा होने पर वे कुछ कहे बिना भी होंठ तिरछे करके मुस्कुराकर सब कुछ कह देते हैं।
अभी ऐसे ही एक अफसर ने एक बड़े अफसर के बारे में बंद कमरे में बताया कि किस तरह उसने दो सौ एकड़ जमीन मिट्टी के मोल खरीदना दिखाया है, और अब उसे बाजार में मोटी कीमत पर बेचने का ग्राहक ढूंढा जा रहा है। ईमानदार समझे जाने वाले एक दूसरे अफसर ने कहा कि छत्तीसगढ़ के बड़े अफसरों के नौकरी में आने, और नौकरी खत्म होने के बीच का उनका आर्थिक विकास आईआईएम जैसे किसी बड़े संस्थान में रिसर्च का मुद्दा हो सकता है कि ऐसी बढ़ोत्तरी कैसे हो सकती है।
अभी छत्तीसगढ़ में ईडी और आईटी वैसे तो कुल दर्जन भर अफसरों के पीछे लगी हैं, लेकिन इस चक्कर में दर्जनों अफसरों के कागज हवा में तैरने लगे हैं। एक जमीन दलाल से बड़ी लंबी पूछताछ हुई है क्योंकि एक अफसर की बीवी की डायरी से उस दलाल की लिखावट में दस्तखत सहित लिखा जब्त हो गया कि उसने जमीन के सौदे के लिए कितने करोड़ नगद हासिल किए। अब ऐसे दलालों की जितनी कड़ी पूछताछ हुई है, वह देखने लायक है। लेकिन जमीन के खरीददारों में नामी या बेनामी अफसरों का एक बड़ा हिस्सा है, इसलिए यह तो हो नहीं सकता कि वे पूछताछ के डर से अफसरों के लिए सौदे न जुटाएं। फिर भी जांच के घेरे में जो नहीं हैं, उनकी दौलत के कागज भी हैरान करते हैं। आगे-आगे देखें होता है क्या।
नए जमाने का घोटुल
पाहुरनार बस्तर का एक ऐसा इलाका है, जहां इंद्रावती नदी को नौका से पार करके कम से कम तीन किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। कोविड के दौरान इसकी चर्चा रही। स्वास्थ्य, शिक्षा और दूसरी मूलभूत सुविधाएं यहां पहुंचाना बेहद मुश्किल है। ऐसे अनेक दुर्गम स्थानों पर आदिवासियों की परम्परा और संस्कृति को सहेज कर रखा गया है। स्थानीय जंगल के पत्तों और लड़कियों से तैयार होने वाले घोटुल और देवगुड़ी बस्तर के गांवों की पहचान हैं, जिनका स्वरूप समय के साथ बदलता जा रहा है। यह दृश्य पाहुरनार के घोटुल का है, जिसे नए सिरे से संवारा गया है। ठीक भी है, समय के साथ युवाओं की रूचि के अनुरूप बदलाव दिखाई देना चाहिए।
नर्सिंग की खाली सीटों पर रार
प्रदेश के सरकारी और निजी नर्सिंग कॉलेजों की खाली 2700 सीटों पर एडमिशन रोक देने को लेकर सीएम को लिखी गई विधायक बृहस्पत सिंह की चि_ी बाहर आई है। विधायक को स्वास्थ्य मंत्री से कोई दिक्कत है या नहीं इससे हटकर मुद्दे पर सोचा जाए जो गंभीर है। प्रदेश में बहुत से बड़े नर्सिंग होम, हॉस्पिटल हैं, जहां इंफ्रास्ट्रक्चर खूब बड़ा है। इनमें नर्सिंग कॉलेज खोल लेना आसान है। उनकी अतिरिक्त आमदनी हो जाती है। सरकारी नर्सिंग कॉलेज केवल 8 हैं पर निजी 108 हैं। और कुल सीटें 6000 के आसपास। जाहिर हैं निजी कॉलेज चाहेंगे कि उनकी सारी खाली सीटें भर जाएं, फीस लें और डिग्री बांटें। विधायक ने पत्र में लिखा है कि स्वास्थ्य विभाग के अफसर प्रवेश से वंचित कर युवाओं के हाथ में कलम की जगह बंदूक पकड़ाना चाहते हैं। यदि कोई नर्सिंग में एडमिशन चाहे, खाली सीटों के बावजूद प्रवेश न मिले तब चिंता तो स्वाभाविक है लेकिन दूसरा पहलू वह भी है जिसकी तरफ मंत्री टीएस सिंहदेव इशारा कर रहे हैं। वह यह कि नर्सिंग की पढ़ाई कर रहे विद्यार्थियों में कई ऐसे हैं जिन्हें इंजेक्शन भी ठीक तरह से लगाना नहीं आता। यह बात सही हो सकती है क्योंकि इन कॉलेजों से पास हो चुके सैकड़ों ऐसे नर्सिंग छात्र हैं, जिन्हें सरकारी तो क्या निजी नर्सिंग होम में भी सम्मानजनक वेतन के साथ नौकरी नहीं मिल रही है, पूरी तरह बेरोजगार भी हैं। हालत कुछ-कुछ इंजीनियरिंग कॉलेजों की तरह हो गई है। एक के बाद एक खुले, पर मांग घटने पर बाद में सीटें खाली रहने लगीं। इंजीनियरिंग पास युवा भी बेरोजगार घूम रहे हैं, या फिर छोटी-मोटी तनख्वाह पर काम कर रहे हैं। प्रवेश के लिए इंडियन नर्सिंग कौंसिल की गाइडलाइन के अनुसार 4 महीने पहले जब छत्तीसगढ़ में परीक्षा ली गई तो केवल 228 पास हो पाए। पिछले वर्षों में नियम शिथिल कर सीटों को भरा जाता रहा। इस बार भी वही मांग विधायक की ओर से उठाई गई है, पर अफसर तैयार नहीं हैं। वैसे तीन दिन पहले बॉम्बे हाईकोर्ट से नर्सिंग कॉलेज मैनेजमेंट के पक्ष में एक फैसला आया है जिसमें इंडियन नर्सिंग कौंसिल के प्रवेश के नियमों को चुनौती दी गई थी। यह फैसला छत्तीसगढ़ में खाली सीटों को भरे जाने के इच्छुक पक्ष नर्सिंग कॉलेज मैनेजमेंट, छात्रों और चिंतित जनप्रतिनिधियों के काम आ सकता है। ([email protected])