राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : यह धारावाहिक कब तक?
24-Dec-2022 4:24 PM
 	 छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : यह धारावाहिक कब तक?

यह धारावाहिक कब तक?

छत्तीसगढ़ में आज एक आईएएस अफसर रानू साहू को लेकर सबसे अधिक रहस्य चल रहा है। उनके और उनके आईएएस पति जे.पी. मौर्य के घरों पर ईडी के छापे पड़े थे, और उसके बाद ऐसी चर्चा है कि ईडी ने कई बार रानू साहू का बयान लिया है। वे आखिरी जानकारी के मुताबिक रायगढ़ की कलेक्टर हैं, और जिले के जानकार लोगों का कहना है कि ईडी की तलाशी के बाद से अब तक वे इन महीनों में गिने-चुने दिन ही कलेक्टर का काम करते मिली हैं। एक बड़ा औद्योगिक जिला रायगढ़ पिछले दो-ढाई महीनों से तकरीबन बिना कलेक्टर ही चल रहा है। जिले के कोई अफसर यह भी बताने तैयार नहीं हैं कि वे कब तक छुट्टी पर हैं या दौरे पर हैं। ऐसे में अफवाहें जोर पकड़ती हैं, कोई यह कहता है कि वे ईडी की अघोषित कस्टडी में हैं, तो कोई कहते हैं कि वे तीर्थयात्रा पर हैं। रायगढ़ के एक जानकार व्यक्ति ने आज सुबह कहा कि कलेक्टर पन्द्रह दिनों की अपनी स्वीकृत छुट्टी से भी एक हफ्ता अधिक समय से बाहर हैं, और उनके घर-दफ्तर पर उनकी वापिसी की कोई खबर नहीं है। रायगढ़ के लोग हैरान हैं कि धान खरीदी के इस चुनौतीपूर्ण दौर में भी अगर पिछले ढाई महीने में सवा दो महीने कलेक्टर रायगढ़ जिले से बाहर हैं, और जिला चल रहा है, तो फिर भारत सरकार को जिलों में कलेक्टर रखने का नियम खत्म कर देना चाहिए। प्रदेश के सबसे चर्चित कोयला घोटाले को लेकर जब रायगढ़ कलेक्टर बंगले पर ईडी का छापा पड़ा, तो लोगों ने याद करके बताया कि हिन्दुस्तान में पहली बार किसी कलेक्टर बंगले पर ईडी का छापा पड़ा है। देखना है कि ये रहस्यमय धारावाहिक कब तक जारी रहता है, और इसका क्लाइमेक्स क्या होता है?

सीधे-सरल रविशंकर

जशपुर एसपी डी. रविशंकर का जीवन अध्यात्म के नजदीक रहा है। उनका यही स्वभाव उनके सरल और सहजता का प्रतीक है। जशपुर में बतौर एसपी पदस्थापना के बाद से वह राजधानी लौटने के लिए जोर लगा रहे हैं। सुनते हैं कि रविशंकर मैदानी पोस्टिंग के बजाय आफिस में काम करने के इच्छुक हैं। जशपुर में एसपी रहते हुए वह अपने आला अफसरों के जरिये सरकार से वापसी की गुजारिश कर चुके हैं।  चर्चा है कि जशपुर जाने के लिए उन्होंने कोई सिफारिश भी नहीं की थी।
डी. रविशंकर का धर्म-कर्म के प्रति एक अलग ही भाव है। एसपी के बजाय राजधानी में रहकर ऑफिस में रहकर वह ज्यादा रूचि के साथ काम करने के लिए तैयार है। बताते हैं कि कोरोना के बुरे दौर में वह भी चपेट में आ गए थे। उन्होंने कोरोना से विपरीत परिस्थितियों में लडक़र जिंदगी की जंग फतह की। सेहत ठीक होने के बाद से उनके मन में धार्मिक भावनाएं अलग नजरिये से घर कर गई। वह मानते हैं कि जीवन में तमाम चीजें सिर्फ मिथ्या है, इसलिए वह एक शांत पोस्टिंग पाकर ईश्वर के नजदीक जाने की कोशिश में है। छत्तीसगढ़ में जिलों में कप्तानी करने के लिए एक तरफ आईपीएस बिरादरी में मारकाट की स्थिति बनी हुई है। ऐसे में डी. रविशंकर का एसपी पद छोडक़र सीमित क्षेत्र में काम करने की इच्छा को महकमे में हैरानी के रूप में देखा जा रहा है। खबर है कि उनकी भावनाओं का कद्र करते हुए सरकार ने नए एसपी की तलाश भी शुरू कर दी है।

क्यों न इस बार पलट दें फॉर्मूला?

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में टिकट की इच्छा रखने वाले पदाधिकारी इस्तीफा दें, ताकि चुनावी साल में संगठन का काम बिना किसी व्यवधान के चलता रहे। यह वही फॉर्मूला है जिसे सन् 2018 के चुनाव में भूपेश बघेल के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहने के दौरान अपनाया गया था। कई लोगों ने टिकट के लिए इस्तीफा दिया, टिकट भी कुछ को मिली, पर सब जीत नहीं पाए। उस वक्त भाजपा की सरकार थी, तब संगठन में जो लोग जी-जान से काम कर रहे थे। सभी में सरकार बदलने की तीव्र इच्छा थी। उन्होंने विपक्ष में रहते हुए खूब मेहनत की और टिकट की दावेदारी के लिए खुशी-खुशी पद छोड़ दिया। नतीजा आया, जबरदस्त जीत हुई, उप-चुनावों में सिलसिला बना रहा। मौजूदा विधायक ही इतने हैं कि पिछली बार की तरह टिकट के लिए दावा करने का अवसर पिछली बार की तरह नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष भी यह बताने की स्थिति में नहीं हैं कि क्या वर्तमान विधायकों की टिकट कटेगी? वैसे, यह तो कांग्रेस में आखिरी क्षण तक पता नहीं चलता। तस्वीर जरा साफ हो तो कुछ पदाधिकारी पद छोडऩे के बारे में सोचें भी। वरना, पार्टी सत्ता में अभी है ही। संगठन में रहकर भी काफी कुछ हासिल किया जा सकता है। टिकट के दावेदार रह चुके एक नेता कह रहे हैं कि सन् 2018 का फॉर्मूला पलट दिया जाए। यानि, जिनको अब तक निगम, मंडल, प्राधिकरण कहीं भी जगह नहीं मिली, उनको आगे टिकट मिलने की तो कोई उम्मीद है नहीं। इसलिए एक साल के लिए सही, ऐसे लोगों को संगठन में जगह दे दें। काम पर भी लग जाएंगे, असंतोष भी कुछ कम हो जाएगा।

देरी, ऊपर से बासी खाना

बहुत सी ट्रेनों में पेंट्री कार बंद कर दी गई है। इसकी वजह सुरक्षा और सफाई बताई गई लेकिन वजह खर्च बचाना भी रहा है। अब उसकी जगह अनुमानित ऑर्डर के अनुसार प्रमुख स्टेशनों के किचन में तैयार कर पैकेट चढ़ा दिए जाते हैं। बीते दिनों दिल्ली से निकली हमसफर एक्सप्रेस घंटों देर से चल रही थी। बिलासपुर से रायपुर के लिए रवाना हुई तो एक यात्री को कुछ खाने की इच्छा हुई। उन्होंने केटरिंग के वेटर को ऑर्डर किया। पहला निवाला लेते ही उन्होंने खाना रख दिया। कहा- यह तो बासी है, इसे क्यों खिला रहे हो, बदल कर लाओ। वेटर ने मना कर दिया। बात ट्रेन में चल रहे मैनेजर तक पहुंची। मैनेजर ने बताया, आदरणीय- पैकेट बदलकर भी दूंगा तो कोई फायदा नहीं। पूरा खाना सुबह 6 बजे से पैक हो चुका है। पैक करने के दो-तीन घंटे पहले बना होगा। ट्रेन तय समय पर पहुंच जाती तो यही पैकेट आपको ताजा मिलता। मगर, ट्रेन देर से चल रही है, तो हम क्या करें। बासी खाना तो यात्री ने खाया नहीं, पैसे भी वापस नहीं हुए। मतलब, सफर में झुंझलाहट की वजह सिर्फ ट्रेन की देरी नहीं, खराब खाना भी हो सकती है।

इस चेहरे पर तो लग जाए दांव

संघ प्रचारक और भारतीय जनता पार्टी के संगठन पदाधिकारी जब पार्टी को खड़ा करने के दौर में थे, तब उनमें बेहद सादगी होती थी। वे साधारण कार्यकर्ताओं के घर रुकते थे, उनके घर का सादा भोजन करते थे। पर केंद्र और राज्यों में लगातार चुनावी जीत के बाद परिस्थितियां बदल गई हैं। पार्टी कार्यालय भी अब फाइव स्टार होटल की तरह सुसज्जित हैं। छत्तीसगढ़, जहां चुनाव अब एक साल से कम बचा है, वहां वोटरों के दिल में फिर से जगह बनाना सभी दलों के लिए जरूरी है। बेलतरा विधानसभा में दो दिन तक डॉ. सिंह प्रवास पर रहे, जनसभाएं की-सुनने वालों की संख्या बड़ी थी। प्रेस कांफ्रेंस और सभा दोनों में भूपेश बघेल पर उन्होंने जमकर निशाना साधा। पर, पार्टी में उनका कद बढ़ाने वाली कुछ और बातें भी हुई, जो उनके कार्यकाल में देखने को शायद ही मिली हो। जो तस्वीरें खास तौर पर उन्होंने शेयर की है, उनमें हैं- एक कार्यकर्ता के घर में लालभाजी और भात खाते हुए। और, दूसरी तस्वीर एक शिशु को गोद में उठाकर चूमते हुए। डॉ. रमन सिंह पर तो यह जिम्मेदारी बहुत बड़ी है, पार्टी की पिछली हार के वक्त वही चेहरा थे। इस बार पता नहीं। अनुमान लगाएं कि इस तस्वीर से किसका भाग्य बदलेगा, शिशु का या डॉ. साहब का। 

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