राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : चुनावी साल में भगवत-भक्ति
28-Dec-2022 6:27 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ :  चुनावी साल में भगवत-भक्ति

चुनावी साल में भगवत-भक्ति  

जनवरी में नामचीन कथावाचकों का प्रदेश में जमावड़ा रहेगा। खास बात यह है कि इन धार्मिक कार्यक्रमों में राजनीतिक दल के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। दो जनवरी से बलौदाबाजार के बाहरी इलाके में पंडित प्रदीप मिश्रा का शिव पुराण शुरू हो रहा है। रायपुर में तो उनके कार्यक्रम में लाखों की भीड़ जुटी थी। ऐसी ही भीड़ बलौदाबाजार में भी जुटने की संभावना जताई जा रही है। 

बलौदाबाजार में विधायक प्रमोद शर्मा, और भाजपा-कांग्रेस के नेता खुद होकर व्यवस्था देख रहे हैं। कुछ इसी तरह का आयोजन कुरूद में भी हो रहा है। कुरूद में जया किशोरी का भागवत कथा हो रहा है। इस कार्यक्रम के कर्ताधर्ता पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर हैं। जया किशोरी के मुख से कथा सुनने के लिए वैसे ही हजारों की भीड़ जुट जाती है।

इसी तरह गुढिय़ारी के दहीहांडी मैदान में रामकथा का आयोजन हो रहा है। कथावाचन के लिए पं. धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री आएंगे। उन्हें सुनने के लिए हजारों लोगों के आने की संभावना जताई जा रही है। इसी तरह बसना में भाजपा नेता संपत अग्रवाल भी भागवत कथा का आयोजन करवा रहे हैं। कथावाचक पं. हिमांशु कृष्ण भारद्वाज करेंगे। स्वाभाविक है कि उन्हें सुनने के लिए हजारों लोग आएंगे। अब चुनावी साल में धार्मिक आयोजनों के बहाने राजनीतिक दल के लोग अपनी सक्रियता दिखाने का मौका मिला है। 

बदल चुका मुनादी का तरीका
कोटवार गांव के पहरेदार माने जाते हैं। वह गांव मे सरकार का पहला प्रतिनिधि होता है। पहले के दिनों में जब पुलिस तक पहुंच दूर थी, गांव में कोई भी जुर्म हो कोटवार को ही सबसे पहले खबर दी जाती थी। 2008 तक जन्म-मृत्यु पंजीयन भी कोटवार ही करते थे। आज सरकार इनसे हर तरह का काम लेती है। गांव में बेजा कब्जा हो गया हो तो तहसील को खबर करना भी इनका ही काम है। चुनाव के दिनों में मतदान केंद्रों में इन्हें विशेष पुलिस अधिकारी के तौर पर तैनात किया जाता है। पुलिस, राजस्व विभागों के लिए यह सहज यस मैन है, हर वक्त हाजिर। इनके परिवार को खेती की जमीन दी जाती है, पर उस भूमि के वे स्वामी नहीं होते और मानदेय केवल 3-4 हजार रुपये मिलते हैं।

गांव वालों तक सरकारी सूचनाओं को पहुंचाने का जिम्मा भी कोटवारों पर है। पहले वे गांव की मुख्य गलियों और चौराहों में खड़े होकर तेज आवाज में मुनादी करते थे। अब उनके हाथ माइक सेट आ गया है। वक्त के साथ पहनावा बदल गया है, साइकिल मिल गई है। यह तस्वीर जांजगीर जिले के अकलतरा ब्लॉक की है, जहां एक कोटवार लोगों को बता रहे हैं कि यहां सरपंच के खाली पद पर चुनाव होना है, जो फॉर्म भरना चाहते हैं भर लें। जिनको ज्यादा जानकारी चाहिए वे पंचायत भवन में चिपकाई गई नोटिस को देख लें।

कंकाल की जांच, कब्र की नहीं
रायपुर में घड़ी चौक से मेकहारा तक सड़क घेरकर खड़ी स्काई वाक की जांच अब जाकर चुनावी साल में शुरू की गई है। इसके बावजूद कि यह सन् 2018 में चुनावी मुद्दा बना था। अब तक जांच पूरी कर शहर की सूरत बिगाडऩे और करोड़ों रुपये फूंकने के लिए जो जिम्मेदार हैं, उनको कटघरे में खड़ा किया जा सकता था। इसमें सिर्फ 35 करोड़ रुपये अब तक बर्बाद हुए हैं। सिर्फ कहा जाना इसलिये ठीक है क्योंकि राज्य के दूसरे सबसे बड़े शहर बिलासपुर में इससे आठ-दस गुना रकम करीब 300 करोड़ रुपये अंडरग्राउंड सीवरेज परियोजना के नाम पर दफन कर दिए गए हैं और काम अब तक अधूरा है। सन् 2008 में यह योजना 180 करोड़ से शुरू की गई थी। 24 माह के भीतर काम पूरा होना था, 14 साल हो चुके। योजना ने पूरे शहर की सड़कों को 20-25 फीट तक खोदकर गहरा कर दिया गया। 10 साल से ज्यादा वक्त तक लोगों को सड़कों पर चलने की जगह ढूंढनी पड़ती रही। इस दौरान गड्ढों में गिरकर या मलबे में धंसकर 16 मौतें हो गईं। आज भी सड़कें भीतर से पोली हैं। जगह-जगह धंस रही हैं। इसे भी कांग्रेस ने चुनावी मुद्दा बनाया था। भाजपा की बिलासपुर में 20 साल बाद हुई पराजय की यह एक बड़ी वजह थी। नगरीय प्रशासन मंत्री ने सरकार बनने के बाद अपनी पहली बैठक में कहा था कि सीवरेज के नाम पर हुए भ्रष्टाचार की जांच एक माह में पूरी करेंगे और दोषी गिरफ्तार किए जाएंगे। पर आज तक किसी अधिकारी, कर्मचारी का बाल बांका नहीं हुआ। परियोजना चार साल पहले जिस स्थिति में थी, उसी हालत में अधूरी पड़ी हुई है, जबकि इस दौरान काम आगे बढ़ाने के लिए फिर राशि जारी की गई। दोनों ही जनता के पैसों से बनाए गए कब्र और कंकाल हैं। यह यकीन करना मुश्किल है कि स्काई वाक की इतनी देर से जांच का आदेश दिया जाना राजनीतिक फैसला नहीं है। बिलासपुर के सीवरेज के मामले में तो यह बहुत पहले ही साफ हो चुका है कि- सब मिले हुए हैं जी।

मधुर गुड़ में मिठास नहीं
बस्तर के जिलों में कुपोषण दूर करने के लिए राशन दुकानों से चावल के अतिरिक्त चना और गुड़ का भी वितरण किया जाता है। राशन दुकानों में बिकने वाला गुड़ मधुर ब्रांड का है। पर हाल ही में कांकेर जिले से यह जानकारी निकलकर आई कि आधे से ज्यादा उपभोक्ता इस गुड़ को ले जाने से मना कर देते हैं। दुकानदार उन्हें जबरन थमा रहे हैं। वे कहते हैं कि चावल न ले जाओ कोई बात नहीं, कहीं न कहीं खप जाएगा, पर ये तो बाजार में भी बिकने लायक नहीं है, फूड विभाग भी वापस नहीं लेता। हितग्राहियों का कहना है कि गुड़ की क्वालिटी खराब होती है। बस नाम ही मधुर है वरना रंग काला है और खाने में भी मिठास नहीं, कड़ुवाहट है। कई बार उन्हें जो चना मिलता है उसमें भी घुन लगा रहता है।

राशन दुकानों में जो गुड़, चना आ रहा है उसकी क्वालिटी पर नजर रखना फूड विभाग के क्वालिटी इंस्पेक्टरों का काम है, जाहिर है सप्लायरों ने उनसे जान-पहचान बढ़ा ली होगी।

पोस्टरों की गुंडागर्दी  
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में रविशंकर विश्वविद्यालय के गेट पर लगे एक बोर्ड पर नये साल की पार्टी की टिकटें बेचने का यह पोस्टर दोनों तरफ चिपका दिया गया है। सरकारी या निजी बोर्ड लोगों को सूचना देने के लिए रहते हैं, और पोस्टर चिपकाने वाले लोग रात-रात भर घूमकर ऐसे बोर्ड बर्बाद करते हैं, कि मानो ये उन्हीं के लिए बने हैं। 

कभी-कभी बरसों में एकाध बार म्युनिसिपल शासकीय सम्पत्ति विरूपण अधिनियम के तहत कोई कार्रवाई कर लेती है, लेकिन वह समंदर में से एक बूंद पानी को साफ करने जैसा रहता है। हालत यह है कि सड़क किनारे रफ्तार की सीमा के लिए, नो-पार्किंग के लिए, या किसी और तरह की जानकारी के लिए लगाए गए बोर्ड पर भी लोग अपने इश्तहार चिपकाकर चले जाते हैं। कौन सी सड़क किस तरफ जा रही है, इस पर भी पोस्टर चिपका दिए जाते हैं। होना तो यह चाहिए कि म्युनिसिपल या जिला प्रशासन की तरफ से पुलिस की मौजूदगी में पोस्टर चिपकाने वाले पेशेवर लोगों को यह समझाइश दी जानी चाहिए कि वे रात-रात काम करके जितनी बर्बादी करते हैं, उस पर उन्हें सजा हो सकती है। लेकिन अफसरों की दिलचस्पी ऐसे किसी काम में नहीं दिखती, जिसमें कमाई न होती हो। इसलिए शहर के आम लोगों को यह सोचना होगा कि वे ऐसी गंदगी और बर्बादी, ऐसी बाजारू गुंडागर्दी को कैसे रोक सकते हैं। अलग-अलग इलाकों के लोग अपने इलाकों में ऐसे चिपकाने वाले लोगों का घुसना रोक सकते हैं। फिलहाल तो किसी कॉलोनी या इमारत के लोग इन लोगों को कानूनी नोटिस भेज सकते हैं जिनके पोस्टर सार्वजनिक सम्पत्ति पर चिपकाए गए हैं, या निजी बोर्ड को दबाते हुए। उसके बाद ऐसे पोस्टरों के मालिक जानें कि वे चिपकाने वालों पर क्या कार्रवाई करते हैं। कानून बना हुआ है, लेकिन वह बिना इस्तेमाल ताक पर धरा हुआ है।  ([email protected])

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