राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : दिलचस्प सुगबुगाहट
30-Dec-2022 3:47 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : दिलचस्प सुगबुगाहट

दिलचस्प सुगबुगाहट

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार बने चार बरस से अधिक हो गए, लेकिन स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव की राजनीतिक महत्वाकांक्षा अब तक मोर्चे पर डटी हुई है। पहले तो यह लगता है कि ढाई बरस के बाद तथाकथित समझौता लागू हो जाएगा, लेकिन वक्त के साथ उसकी संभावना खत्म होती चली गई, और अब सिंहदेव बिना लाग-लपेट की अपनी बातों के तहत यह भी कहने लगे हैं कि अगला चुनाव लडऩे का उनमें उतना उत्साह नहीं है। कुछ जानकार लोगों का यह कहना है कि बिना मुख्यमंत्री बने अगर पांच बरस निकल जाते हैं, तो सिंहदेव हो सकता है कि अगला विधानसभा चुनाव न लड़ें। ऐसी भी चर्चा है कि वे अपनी जगह अपने भतीजे आदित्येश्वर शरण सिंहदेव को विधानसभा चुनाव लड़वाना चाहें जो कि अभी भी जिला पंचायत की राजनीति में हैं। लेकिन एक अजीब सी राजनीतिक अटकल यह भी सामने आई है कि हो सकता है कि सरगुजा सीट से अगले चुनाव में आदित्येश्वर शरण सिंहदेव भाजपा के उम्मीदवार दिखें। राजनीति कई किस्म के दिलचस्प मोड़ लेती है, इसलिए ऐसा कुछ अगर होता है, तो वह देखना भी दिलचस्प रहेगा। फिलहाल टी.एस. सिंहदेव मीडिया के सामने आदतन चुप नहीं रहते, और आदतन मन का सच बोलने से नहीं कतराते। नतीजा यह है कि मीडिया को दिलचस्प सुगबुगाहट मिलती रहती है।

मुख्यमंत्री और बहस

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पिछले कुछ महीनों से लगातार प्रदेश भर का दौरा कर रहे हैं, और अलग-अलग विधानसभाओं में जाकर लोगों से भेंट-मुलाकात का सिलसिला चला रहे हैं। ऐसी सरकार-आयोजित सभाओं में सैकड़ों लोग जुटते हैं, और उनमें से अलग-अलग बहुत से लोग माइक थामकर अपने मन की बात कहते हैं। यह सिलसिला सरकारी अफसरों के छांटे हुए लोगों से नहीं चलता, और बहुत से लोग अनायास ही माइक पा जाते हैं, और कई तरह की बातें कहते हैं। कल ऐसी ही एक सभा का एक वीडियो सामने आया जिसमें सवाल करने के बजाय एक नौजवान मुख्यमंत्री से राजनीतिक बहस करते दिखता है, और बातचीत नोंक-झोंक तक पहुंच जाती है। कुछ लोगों ने इसे मुख्यमंत्री का नाराजगी में फट पडऩा करार दिया है, तो कुछ लोगों ने कोई और बात लिखी है। दरअसल जब-जब बहुत लोकतांत्रिक तरीके से लोगों को कुछ कहने का हौसला बढ़ाया जाता है, तो दोनों ही तरफ से ऐसी बातें हो सकती हैं। फिलहाल यह देखना दिलचस्प है कि लोग एक ताकतवर मुख्यमंत्री से भी रूबरू कितनी तेज बहस कर सकते हैं।

पहले अफसर से शुरू सिलसिला

कुछ लोगों को यह धोखा हो सकता है कि कुछ अफसरों की जांच और गिरफ्तारी के चलते बाकी अफसर सहम गए होंगे, और जमीन-जायदाद खरीदना कुछ थमा होगा। लेकिन छत्तीसगढ़ के जमीन-दलालों को देखें तो वे अब भी अफसरों की बस्ती में सुबह से पहुंच जाते हैं, और शाम को फिर साहब-मैडम को जमीन दिखाने ले जाते दिख रहे हैं। इतना जरूर हुआ है कि जिन अफसरों की जड़ें छत्तीसगढ़ के बाहर हैं, उन्होंने अब दूसरे प्रदेशों में पूंजीनिवेश को अधिक सुरक्षित महसूस किया है। लेकिन जमीनों को लेकर नियम और आदेश जारी करने वाले बहुत से अफसर ऐसे हैं जो कि पहले किसी इलाके में जमीनों की बिक्री पर रोक लगा देते हैं, और फिर उस इलाके में सौदे हो जाने पर वहां की रोक हटा लेते हैं। यह सिलसिला मानव इतिहास के पहले अफसर से शुरू हुआ था, और आखिरी अफसर तक चलते रहेगा।

ये ट्रेन टक्कर नहीं मारेगी..

बीकानेर से बिलासपुर चलने वाली सुपर फास्ट एक्सप्रेस ट्रेन में सामने करीब 200 मीटर की दूरी पर उसी ट्रैक पर डोंगरगढ़ के पास कल दूसरी ट्रेन दिखी तो यात्री सहम गए। उन्होंने सोचा कि अच्छा हुआ ट्रेन समय पर रुक गई, वरना टक्कर ही हो जाती। पर रेलवे की नई ऑटोमैटिक सिग्नलिंग तकनीक से यह संभव हो रहा है कि एक ही ट्रैक पर दो ट्रेन बहुत पास-पास एक ही ट्रैक पर दिखें। बीकानेर-बिलासपुर एक्सप्रेस के सामने जो ट्रेन का इंजन दिखाई दे रहा था, दरअसल वह पीछे का हिस्सा है। कुछ ज्यादा लोड लेकर चलने वाली कई मालगाडिय़ों में दोनों ओर इंजन लगाए जाते हैं। नए सिग्नलिंग सिस्टम में दो ट्रेनों के बीच दूरी घटा दी गई है। इस सिस्टम में एक ट्रेन दूसरी के ज्यादा नजदीक तक जाकर पीछे चल सकती है और सामने की ट्रेन धीमी हुई तो एक निश्चित दूरी पर रुक भी सकती है। इसके अलावा नागपुर-बिलासपुर के बीच ‘कवच’ सिस्टम भी चालू हो चुका है। यदि गलती से ओवरशूट हुआ, यानि रेड सिग्नल कोई ट्रेन पार कर गया तो दूसरी ट्रेन से टकराने के पहले करीब 100 मीटर की दूर पहले ही वह रुक जाएगी। यह सब रेलवे के अधिकारियों ने बताया है। इतनी उन्नत तकनीक होने के बाद भी यात्री ट्रेनों को समय पर क्यों नहीं चलाया जा रहा है, इसका जवाब भी तो मिलना चाहिए।

सेवा में तत्पर पुलिस का डर

पुलिस राजनैतिक कार्यकर्ताओं, नेताओं यहां तक कि विधायकों पर बेखौफ कार्रवाई करती है, लेकिन शायद उनसे घबराती है- जो उन्हें सवालों के कटघरे में खड़ा करते हैं। बिलासपुर की अधिवक्ता प्रियंका शुक्ला, राजनीतिक दल आम आदमी पार्टी से जरूर जुड़ी हैं- पर उससे अधिक वह सामाजिक मुद्दों, विशेषकर महिलाओं, बच्चियों से जुड़े मामलों में सक्रिय रहती हैं। उनकी पहली पहचान सामाजिक कार्यकर्ता की ही है। हाल ही में बलात्कार पीडि़त एक बच्ची को बाल संरक्षण समिति के कब्जे से छुड़ाकर उसकी मां को वापस सौंपने की मांग को उन्होंने उठाया। प्रदर्शन किया, समिति से सवाल किया। अफसरों से मिलीं, उसके बाद कलेक्ट्रेट और नेहरू चौक में धरने पर बैठ गईं। परेशान पुलिस ने उसे व उनके कुछ साथियों को धारा 151 में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। पुलिस इस धारा को जिसके खिलाफ इस्तेमाल करती रहती है। पर बिलासपुर पुलिस ने तो अपने अधिकारिक ट्विटर हैंडल में ही उसे ब्लॉक कर दिया, मानो यह पुलिस अफसरों का कोई निजी अकाउंट हो। अब प्रियंका अपनी कोई शिकायत बिलासपुर पुलिस को टैग नहीं कर सकतीं। यदि कोई अभद्र, आधारहीन बात करे तो उस पर कार्रवाई जरूर की जा सकती है पर किसी की बात सुनने से पुलिस मना कैसे कर सकती है?

ताम्रध्वज की प्रतिक्रिया का मतलब?

स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के चुनाव लडऩे का मन नहीं होने की बात पर दी गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू की तीखी प्रतिक्रिया का लोग मतलब समझने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि उनके नहीं लडऩे से फर्क नहीं पड़ेगा, 10 लोग लाइन में खड़े हैं।
सन् 2018 में बहुमत मिलने के बाद जो परिस्थितियां बनी हैं, उससे यह तय हो चुका है कि पिछड़ा वर्ग के वोटों का सन् 2023 के चुनाव में बड़ा असर होने वाला है। ओबीसी पर कांग्रेस की बढ़त को देखकर भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष पदों को दांव पर लगा दिया है। साहू समाज परंपरागत रूप से भाजपा की ओर झुकाव रखता आया है। पिछले चुनाव में इसका कांग्रेस की ओर रुझान अपने समुदाय के नेताओं को शीर्ष पदों पर देखने की इच्छा की वजह से आया था। अब अरुण साव के हाथ में नेतृत्व आने के बाद साहू समाज के बड़ा तबका भाजपा की ओर वापस जा सकता है। अब तक तो यह दिखाई दे रहा है कि सन् 2023 का चुनाव कांग्रेस मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का चेहरा ही सामने रखकर लड़ेगी,  पर साहू समाज के वोटों को बिखरने से बचाने के लिए ताम्रध्वज साहू को भी सामने रखना पड़ेगा। मुमकिन है, सिंहदेव की दावेदारी शून्य हो जाने के बाद एक बार फिर सीएम की कुर्सी के लिए टकराव- ओबीसी वर्सेस ओबीसी हो जाए।

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