राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : शादियों से ही आए सुधार
25-Jan-2023 3:40 PM
 	 छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : शादियों से ही आए सुधार

शादियों से ही आए सुधार

छत्तीसगढ़ में लाउडस्पीकरों के खिलाफ इस अखबार के संपादक सहित दर्जनों लोग आए दिन सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं, और पुलिस को याद दिलाते हैं कि इस प्रदेश में एक हाईकोर्ट अभी भी बाकी है जिसके जजों ने बार-बार पुलिस और प्रशासन को शोरगुल काबू करने की चेतावनी दी है। उस पर कुछ नहीं होता क्योंकि मुख्यमंत्री और राजभवन ने मंत्रियों के बंगलों के आसपास भी कलेक्टर का हुक्म निकलवाकर और पुलिस भिजवाकर सारे लाउडस्पीकर बंद करवा रखे हैं, और प्रदेश में सिर्फ इन्हीं कुछ दर्जन लोगों को चैन से सोने की जरूरत रहती है, और वह इंतजाम हो जाता है। बाकी जनता में बूढ़े-बच्चे, छात्र-परीक्षार्थी, बीमार और मेहनतकश लोग किसी को भी न तो चैन से नींद की जरूरत रहती, न उनको जिंदा रहने का कोई हक है। जिस बिलासपुर में हाईकोर्ट के जज बसते हैं, उनके बंगलों के आसपास भी लाउडस्पीकरों का शोरगुल नहीं होता होगा, और वे ऐसे कृत्रिम शांत टापू पर जीते हैं, और प्रदेश की करोड़ों जनता के चैन की बर्बादी से अनछुए रहते हैं।

ऐसे में समाज सुधार से भी शोरगुल घट सकता है, और मुस्लिम समाज के एक संगठन ने बिरादरी की मीटिंग करके यह तय किया है कि मुस्लिम शादियों में बजने वाले ढोल-बाजे, डीजे, पटाखे, नाच-गाने का काम जिस शादी में होगा, तो समाज के इमाम और उलमा वहां निकाह नहीं पढ़ाएंगे, और न ही बाहर के किसी उलमा को वहां आकर निकाह पढ़ाने की इजाजत होगी। यह कोरबा से लेकर रायपुर तक तय किया गया, और प्रेस कांफ्रेंस लेकर इसकी मुनादी की गई। आज इस प्रदेश में शादियां पूरी तरह से अराजक रहती हैं, सडक़ों पर बाकी लोगों का आना-जाना बंद हो जाता है, और लाउडस्पीकरों की वजह से आसपास के लोगों का जीना हराम होता है। अधिक से अधिक धर्म और जाति के लोगों को इस तरह का सुधार करना चाहिए, ताकि उनके समाज के गरीब लोगों पर देखादेखी ऐसा करने की मजबूरी न रहे, और आसपास के लोगों की आह न लगे, उनके दिल से गंदी गालियां न निकलें।

सरकारी अमला और जनता

किसी सरकार की नीयत अगर सचमुच अपने काम में सुधार करने की है, और जनता की जिंदगी आसान बनाने की है, तो उसका एक बड़ा आसान तरीका है। हर सरकारी फाईल किस अफसर या बाबू तक किस तारीख को पहुंची, और किस तारीख को आगे बढ़ी, इसकी जानकारी उस विभाग की वेबसाइट पर डाल दी जाए। उसके बाद दिन, हफ्ते, या महीने उंगलियों पर गिने जा सकेंगे कि किस कुंभकर्ण ने कितने हफ्तों की नींद उस फाईल पर पूरी की है। फिलहाल जनता के पैसों से तनख्वाह पाने वाला सरकारी अमला पूरे वक्त जनता की जिंदगी हराम करने में लगे रहता है। छत्तीसगढ़ सरकार ने जब सरकारी अमले के लिए शनिवार की छुट्टियां बढ़ाईं, तो सरकार को लग रहा था कि इससे सरकारी अमला खुश होगा, लेकिन कुछ लाख के सरकारी अमले को दिए गए तोहफे से प्रदेश के वे करोड़ों लोग खफा हुए थे जिनकी जिंदगी सरकारी दफ्तरों ने तबाह कर रखी है। सरकारी अमले को मिली किसी भी सहूलियत को आम जनता की वाहवाही नहीं मिल सकती, क्योंकि वह खुद जब सरकारी दफ्तर जाती है, तकलीफ पाकर आती है।

कंगना की वापिसी

हिन्दू हृदय साम्राज्ञी कंगना रनौत की ट्विटर पर वापिसी हो गई है। ट्विटर के नए मालिक ने दुनिया के अधिकतर नफरतजीवी लोगों पर लगाई गई रोक को खत्म करना शुरू किया है, और कंगना ने कल शाम यह घोषणा की है कि वे ट्विटर पर लौट आई हैं, और उन्हें बड़ा अच्छा लग रहा है। ट्विटर की नई पॉलिसी के चलते अब अच्छे लोगों को अच्छा लगने का दौर खत्म हो गया है, और नफरतजीवी लोगों के अच्छे दिन आ गए हैं।

जो संविधान को नहीं मानते

देश सहित छत्तीसगढ़ में जगह-जगह 26 जनवरी को हर साल की तरह गणतंत्र दिवस मनाया जाएगा। 15 अगस्त पर भी ऐसा ही हर्ष और उल्लास होता है। पर शायद पूरे देश में छत्तीसगढ़ का बस्तर ही एक हिस्सा है जहां अनेक गांवों में सन्नाटा पसर जाता है। नक्सली संविधान को नहीं मानते और बंद का ऐलान कर इन दोनों राष्ट्रीय पर्वों को काला दिवस के रूप में मनाते हैं। हालांकि कुछ वर्षों से सुरक्षा बल और ग्रामीणों के प्रतिरोध के बाद काला झंडा फहराने का क्षेत्र सिसटता जा रहा है। उन कई स्कूलों और पंचायतों में सुरक्षा बलों की मौजूदगी में तिरंगा फहराया जा रहा है जहां पहले नक्सली खौफ के कारण ऐसा नहीं हो पाता था। पिछले साल स्वतंत्रता दिवस पर बस्तर पुलिस ने ऐसे 6 गावों के नाम बताए थे। दूसरी तरफ, हर साल की तरह इस साल भी रेलवे का अलर्ट जारी हो गया है। विशाखापट्टनम और जगदलपुर से चलने वाली दोनों यात्री गाडिय़ों का परिचालन दंतेवाड़ा से बैलाडीला के बीच नहीं करने का निर्णय आज से लागू हो गया। मालगाडिय़ों को भी रोक दिया जाएगा।  वैसे भी माओवादियों के लिए रेलवे सबसे आसान टारगेट होता है क्योंकि रेलवे ट्रैक घने जंगलों के बीच है। एक छोटी सी वारदात से भी रेलवे को करोड़ों का नुकसान हो जाता है। अगले साल तक केंद्र ने नक्सल समस्या का पूरी तरह सफाया करने का लक्ष्य रखा है, पर दिखाई देता है कि अभी इसमें और वक्त लगेगा।

मुख्यधारा में लौटने की जुगत

सरकार से अच्छे संबंध का फायदा उठाकर एक अफसर ने रिटायरमेंट लेकर 5 वर्ष के लिए पुनर्वास हासिल कर लिया है। लेकिन वे अपने वर्तमान पद से संतुष्ट नहीं है। उन्हें लगता है कि इस पद पर रहकर पूरा समय दफ्तर आना-जाना कर बोर हो जाएंगे। दफ्तर भी तभी जाना होगा जब चेयरमैन आएंगे। ऐसे में सामाजिक संपर्क से दूर हो जाएंगे। ऐसा न हो समय से पहले बुढ़ापा महसूस होने लगे। सो, साहब मुख्यधारा में लौटने की जुगत में जुट गए हैं। उन्होंने प्राधिकरण के सदस्य पद के लिए भी बायोडाटा जमा किया है। नियुक्ति हो गई तो भाईचारा भी बनाए रखा जा सकेगा और सामाजिक संपर्क भी बना रहेगा। आखिर रियल एस्टेट डेवलपर ही तो मकानों के साथ समाज गढ़ते हैं।

मालवाहक बाइक

पूरी दुनिया में पेट्रोल डीजल का दाम भारी पड़े तो चालान की क्या, जान की परवाह भी नहीं होती। एक किसी देश में एक मिनीडोर लायक़ सामान बाइक पर ले जा रहे ये बाइक सवार शायद यही कहना चाह रहे हैं। [email protected]

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