राजपथ - जनपथ

लाख लोग घेरेंगे विधानसभा?
पीएम आवास के लिए प्रदेश भाजपा ने बुधवार को विधानसभा का घेराव करने जा रही है। इसके लिए व्यापक तैयारियां की गई है। खुद प्रदेश के सह प्रभारी नितिन नबीन जिले और संभाग की बैठक ले रहे हैं। चूंकि एक लाख लोग लाने का टारगेट है। इसके लिए बिहार पैटर्न पर संसाधन जुटाने का काम भी चल रहा है।
चर्चा है कि बिहार के पूर्व मंत्री, और सह प्रभारी नबीन के निर्देश पर संसाधन जुटाने का जो तरीका अपनाया गया है, उसकी पार्टी के भीतर खूब चर्चा हो रही है। सरपंच, पार्षद, जनपद और सभी निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को कार्यकर्ताओं को लाने के लिए व्यक्तिगत तौर पर व्यवस्था करने की जिम्मेदारी दी गई है।
यही नहीं, घेराव कार्यक्रम में आने वाले लोगों के भोजन व्यवस्था की भी जिम्मेदारी भी लाने वाले निर्वाचित प्रतिनिधियों को दी गई है। इस व्यवस्था में विधायक, पूर्व विधायक, और पूर्व सांसदों व टिकट के दावेदारों को भी जोड़ा गया है। सह प्रभारी ने सभी जिलों को मौखिक निर्देश दिए हैं कि जो भी सहयोग नहीं करते हैं, उनकी सूची बनाकर प्रदेश कार्यालय को भेजा जाए, ताकि भविष्य में उन्हें कोई और जिम्मेदारी न मिले। नए फरमान से पार्टी के भीतर खलबली मची हुई है।
हमलावर डंडों के झंडे
हिन्दुस्तान के एक सबसे प्रमुख साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल को मिले एक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार के बाद छत्तीसगढ़ के ही कुछ लोगों ने जिस तरह उनके लेखन के सरोकार को लेकर सवाल खड़े किए हैं, उससे लोग हक्का-बक्का हैं। विनोद कुमार शुक्ल एक अलग शैली की कविता करते हैं, और उनके उपन्यास भी अलग किस्म के हैं। उनके सरोकार का एक पहलू पिछले दस बरस में उनका लिखा गया बाल साहित्य भी है, और प्रमुख लेखकों में बाल साहित्य लिखने वाले कोई और नाम शायद ही याद पड़ते हों, इसलिए एक दूसरे किस्म की पहचान की आधी सदी निकल जाने के बाद बाल साहित्य लिखने में मेहनत करना एक अलग ही सरोकार है। लेकिन छत्तीसगढ़ के जिन लोगों ने विनोदजी पर सवाल खड़े किए हैं कि उन्होंने समकालीन राजनीति और घटनाओं पर क्या किया है, क्या लिखा है, उन्होंने एक बड़ा सवाल अपने पीछे खड़े लोगों के लिए भी पेश कर दिया है। आज सोशल मीडिया पर और उससे जुड़े हुए लोगों की निजी बातचीत में इस बात पर हैरानी हो रही है कि ये हमलावर अपने खेमे के किन लोगों के उकसावे पर, या किसलिए ऐसे हमले कर रहे हैं? विनोदजी से ऐसे किसी ओछे सवाल से कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन ये सवाल कौन कर रहे हैं, उनकी पीठ और उनके सिर पर किसका हाथ है, यह बात जरूर उठ रही है। जब झंडे लगे डंडों से कोई हमले करते हैं, तो हमलावरों की शिनाख्त नहीं की जाती, उन झंडों की शिनाख्त की जाती है। छत्तीसगढ़ में आज विनोद कुमार शुक्ल पर हमला करने वाले ऐसे लोगों के पीछे के लोगों की शिनाख्त की जा रही है।
ईडी की पहेली
देश के दूसरे कई प्रदेशों में सीबीआई और ईडी के छापे पडऩे या कोई प्रापर्टी या रकम जब्त होने पर एक-दो दिनों के भीतर ही सरकारी प्रेसनोट में उसकी जानकारी दी जाती है। ईडी की वेबसाईट देखें तो तकरीबन हर दो-तीन दिनों में प्रेसनोट जारी होते हैं। लेकिन हैरानी की बात यह है कि छत्तीसगढ़ में प्रदेश कांग्रेस के कोषाध्यक्ष जिनके बारे में बिना नाम के ईडी ने अदालती चार्जशीट में इशारा किया था कि उन्हें 50 करोड़ रूपये से अधिक की रकम कोयला उगाही से मिली थी, उनके बारे में कोई प्रेसनोट जारी नहीं हुआ, और उनके साथ-साथ कांग्रेस के दो विधायकों पर भी ईडी का छापा पड़ा था, कांग्रेस के दो और नेताओं पर भी छापे पड़े थे, लेकिन किसी का भी प्रेसनोट जारी नहीं हुआ। लोगों का ऐसा मानना है कि छत्तीसगढ़ के बारे में ईडी के तौर-तरीके दूसरे राज्यों में उसके तौर-तरीकों से कुछ अलग हैं। लेकिन ऐसा है, तो क्यों है, यह पहेली लोग अब तक सुलझा नहीं पा रहे हैं।
उड़ान भरने के लिए कलेजा चाहिए
छोटे शहरों को हवाई सेवा से जोडऩे की बातें सिर्फ तारीफ लूटने की रह गई है। कम से कम बिलासपुर के बिलासा एयरपोर्ट से उड़ान भरने वालों को तो यही लग रहा है। दिल्ली के लिए सीधी फ्लाइट यहां से नहीं है। या तो जबलपुर या फिर प्रयागराज से होकर जाती है। दिल्ली के लिए आज 13 मार्च का किराया करीब 12 हजार रुपये था। आने वाले दिनों में भी यह 9 हजार रुपये के आसपास ही है। बिलासपुर में महानगरों के लिए सीधी उड़ानों की मांग हो रही है। एयरपोर्ट में नाइट लैंडिंग सुविधा मांगी जा रही है। पर सेवाएं आम लोगों की पहुंच से लगातार दूर की जा रही है। 12 हजार रुपये में दिल्ली जाने का मन स्लीपर पहनने वाले तो बना ही नहीं सकते, सूट-बूट वाले भी एक बार ठहरकर सोचने लगे हैं। वे रायपुर एयरपोर्ट का रुख कर लेते हैं जहां इससे आधे से भी कम किराये में सफर हो सकता है। यही किराया रहा तो एक दिन दिल्ली की फ्लाइट भी कम यात्री चढऩे के नाम पर बंद हो सकती है। यही वजह बताकर भोपाल की फ्लाइट सेवा हटाई गई और अब इंदौर की उड़ान 25 मार्च के बाद बंद की जा रही है।
धान की फसल में नई बीमारी...
छत्तीसगढ़ में किसानों ने कई जगह गर्मी के मौसम में भी धान की फसल ली है। इनमें पहली बार लाल कीड़े दिखाई दे रहे हैं। धमतरी जिले से इसकी शिकायत अधिक आई तो कृषि वैज्ञानिकों की टीम ने जांच की। पाया गया कि लाल रंग के ये कीड़े पोषक तत्वों को खा रहे हैं, जिससे फसल को काफी नुकसान हो रहा है। वैज्ञानिकों ने अपनी शिक्षा के दौरान कभी नहीं पढ़ा कि धान पर लाल कीड़ों का प्रकोप होता है। इसका सैंपल बेंगलूरु के राष्ट्रीय प्रयोगशाला में भेजा गया। वहां से जानकारी आई कि यह रेड वर्म कीड़ा है। इसे धान में कभी नहीं पाया गया है। चूंकि यह बीमारी ही पहली बार हुई है, इसलिए अभी इसकी दवा भी नहीं आई है और फसल बचाने के लिए किसान दूसरे कीटनाशकों को आजमा रहे हैं, जिसका थोड़ा ही असर दिखाई दे रहा है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह बीमारी केंचुओं के कारण हो सकती है, जबकि आम तौर पर केंचुए कीड़े खाकर फसलों को नुकसान से बचाने के काम आते हैं। कृषि वैज्ञानिकों के लिए यह अब शोध का विषय है कि ये नए कीट किस वजह से पैदा हुए और इनसे कैसे बचाव हो सकता है।
डीएमएफ पर मरकाम अकेले नहीं
डीएमएफ में भ्रष्टाचार का आरोप लगाने पर मंत्री जयसिंह अग्रवाल को विपक्ष का वैसा समर्थन नहीं मिला, जैसा प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष को मिल रहा है। कोरबा में जब तत्कालीन कलेक्टर रानू साहू को उन्होंने सबसे भ्रष्ट बताया तो भाजपा के विधायक पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर कलेक्टर के बचाव में आ गए थे। कोरबा जिले के कांग्रेस विधायकों का भी तब जयसिंह को समर्थन नहीं मिला, उल्टे उन्होंने बयान जारी कर मंत्री की मंशा पर ही सवाल उठाया। कहा कि निजी स्वार्थ के चलते वे कलेक्टर पर झूठे आरोप लगा रहे हैं। इधर मरकाम का वक्तव्य आते ही विपक्ष ने हंगामा खड़ा कर दिया। मरकाम विधानसभा की समिति से जांच कराने की मांग कर रहे थे लेकिन संसदीय कार्य मंत्री रवींद्र चौबे उच्चस्तरीय जांच कराने के लिए राजी हो गए। मंत्री अग्रवाल ने कोरबा कलेक्टर के खिलाफ मीडिया के सामने तो कह दिया, चि_ी भी लिख डाली थी, लेकिन मरकाम की तरह उनको मंत्रिमंडल का सदस्य होने की वजह से सहूलियत नहीं है कि विधानसभा में बोल पाएं। इधर कांग्रेस के कई विधायक इस बात से मन ही मन खुश हैं कि चलो एक जगह की जांच कराने को तो सरकार तैयार हुई, वरना डीएमएफ की गड़बड़ी किस जिले में नहीं हो रही है?
जोखिम में जान डालकर पढ़ाई
यह तस्वीर सरगुजा जिला मुख्यालय से सिर्फ 20 किलोमीटर दूर बसे रेवापुर के आश्रित ग्राम लवाईडीह की है। सन 1991 में सिंचाई की सुविधा के लिए यहां घुनघुट्टा बांध का निर्माण किया गया। तब 250 से अधिक परिवार विस्थापित कर दिए गए। बांध के दोनों ओर इन्होंने घर बनाए। दूसरे छोर पर बच्चों को शिक्षा और रोजगार की समस्या खड़ी हो गई क्योंकि उधर न बाजार है, न ही स्कूल और न ही अस्पताल। 30 साल से ज्यादा वक्त हो गए कई पीढिय़ों के बच्चे इसी तरह से जोखिम उठाकर ट्यूब के सहारे बांध के एक छोर से दूसरे छोर सफर कर स्कूल पहुंचते हैं। बांध के इस गहरे पानी से ट्यूब के सहारे गुजरते बच्चों को दुर्घटनाओं की आशंका सताती रहती है।