राजपथ - जनपथ

मूँछ मुड़ाना आज से शुरू...
कांग्रेस में चल रही खींचतान के बीच अंबिकापुर बार एसोसिएशन के चुनाव पर नजरें लगी थी। वकीलों के इस चुनाव में स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के समर्थक हेमंत तिवारी अध्यक्ष पद पर काबिज हो गए। तिवारी ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी प्रवीण गुप्ता को करीब पौने दो सौ से अधिक वोटों से हराया। कहा जा रहा है कि गुप्ता को सरगुजा जिले के ताकतवर मंत्री अमरजीत भगत का समर्थन था।
भगत के करीबी खाद्य आयोग के अध्यक्ष गुरप्रीत भांबरा, और अन्य नेताओं ने प्रवीण गुप्ता को जीताने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था। चुनाव में भाजपा समर्थित उदय राज तिवारी भी मैदान में थे, लेकिन वो सौ वोट भी नहीं जुटा पाए। वैसे तो प्रवीण गुप्ता को जिताने के लिए भाजपा के ही सिंहदेव विरोधी कुछ प्रभावशाली नेता आलोक दुबे सहित अन्य लोग जुटे हुए थे, लेकिन सिंहदेव समर्थक लामबंद थे, और आखिरकार देर रात घोषित नतीजों हेमंत तिवारी, और उनका पैनल बाजी मार गया।
दिलचस्प बात यह है कि मुकाबले में भाजपा समर्थित उम्मीदवार कही नहीं टिक पाए, फिर भी भाजपा के लोग सोशल मीडिया पर सिंहदेव समर्थक की जीत पर खुशी मनाते रहे, और एक उत्साही कार्यकर्ता ने अमरजीत भगत पर अप्रत्यक्ष रूप से कटाक्ष करते हुए फेसबुक पर मैसेज पोस्ट किया कि मूँछ मुड़ाना आज से शुरू...। कुल मिलाकर मुकाबले से बाहर भाजपा समर्थक, कांग्रेस के असंतुष्ट माने जाने वाले सिंहदेव खेमे की जीत को ही अपनी जीत बता रहे हैं। उन्हें असंतुष्टों में ही अपनी संभावनाएं दिख रही हैं।
बजट सत्र के बीच छुट्टी पर !
विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है, और वित्त सचिव अलरमेल मंगाई डी, और उनके पति जल संसाधन सचिव पी. अलबंगन अवकाश पर चले गए हैं। प्रशासनिक हल्कों में दोनों अफसरों के अवकाश पर जाने की आश्चर्य मिश्रित प्रतिक्रिया हो रही है।
दो-तीन महीना पहले अलबंगन के निवास पर ईडी ने दबिश दी थी, और वो जांच के घेरे में हैं। ऐसे में सत्र के बीच में अवकाश में जाने को लेकर अटकलें लगाई जा रही है। हल्ला यह भी उड़ा है कि अलबंगन से ईडी फिर पूछताछ करने वाली है।
कुछ लोग बता रहे हैं कि उन्हें पारिवारिक कारणों से अपने गृह प्रदेश तमिलनाडु जाना पड़ा है। हालांकि दोनों बजट पेश होने के मौके पर मौजूद थे, लेकिन अब जब विनियोग विधेयक पर चर्चा होनी है। ऐसे में वित्त सचिव, और जल संसाधन सचिव की गैरहाजिरी के मायने तलाशे जा रहे हैं।
किसानों को चिंता पानी बचाने की
एक मामूली सी दिखने वाली खबर अखबारों में कोने पर छपी है, लेकिन महत्वपूर्ण है। बालोद जिले के खपरी में करीब 10 गांवों के किसान इक_े हुए। उन्होंने तय किया कि वे गर्मी में धान की फसल नहीं लेंगे। इसकी जगह उन्होंने दलहन, तिलहन, गेंहूं, हल्दी, अदरक और सब्जियां बोई। लगातार घटते जल स्तर, खासकर गर्मी के दिनों में पानी का संकट देखते हुए ऐसा निर्णय उन्होंने लिया। इसके लिए कोई सरकारी पहल नहीं थी, यह फैसला उनका अपना है। कृषि विभाग हर बार किसानों से अपील करता है कि धान में बहुत पानी की जरूरत होती है, इसे गर्मी में नहीं लेना चाहिए। जल संसाधन विभाग ने नीति बना रखी है कि बांधों से गर्मी में धान के लिए पानी नहीं छोड़ा जाएगा। प्रदेश में पिछले साल करीब 2.22 लाख हेक्टेयर में धान बोया गया था। इस बार मुख्यमंत्री के निर्देश पर कृषि विभाग ने धान का रकबा शून्य रखा है और गेहूं का बढ़ा दिया है। बिजली विभाग भी धान की फसल लेने के लिए मोटरपंप का इस्तेमाल नहीं करने की चेतावनी देता है, पर जिन किसानों के पास सुविधा है वे नजर बचाकर लेते ही हैं। सरकारी अपील और प्रतिबंधों का उन पर असर नहीं होता। पर, बालोद के इन किसानों ने दूसरों के सामने मिसाल रखी है कि पानी बचाने के लिए वे भी सामने आएं।
कर्नाटक में राहुल का चुनावी वादा
छत्तीसगढ़ सरकार ने चुनावी साल में बेरोजगारी भत्ते का ऐलान किया। नियम शर्तें कुछ जटिल हैं। सन् 2018 से लेकर 2022 के बीच जो लोग 35 वर्ष की उम्र पार कर गए, उन्हें इसका लाभ नहीं मिलेगा जबकि भत्ते की उम्मीद में वोट तो उन्होंने भी दिया था। दूसरी तरफ उनको भी लाभ मिलेगा जो 12वीं पास कर चुके हैं और सन् 2018 में वोट डालने की उम्र नहीं थी। आवेदन 18 साल से अधिक उम्र का बेरोजगार कर सकता है।
बंदिश यह है कि रोजगार कार्यालय में पंजीयन कम से कम दो साल पुराना हो। ऐसे युवा बहुत होंगे। दो साल पुराने पंजीयन का नियम बनने के बावजूद प्रदेशभर के रोजगार कार्यालयों में इन दिनों भीड़ लगी हुई है, जबकि इन्हें तत्काल भत्ता नहीं मिलना है। बेरोजगारी भत्ता की यही पॉलिसी आगे दो साल तक जारी रहेगी, तब अवसर आएगा। भविष्य में भत्ता मिलने की उम्मीद से इन युवाओं का भी झुकाव कांग्रेस की ओर हो सकता है। भीड़ से यह भी पता चल रहा है कि ऑनलाइन पंजीयन की व्यवस्था तो की गई है, पर पोर्टल ठीक तरह से काम नहीं कर रहा है। अभी प्रदेश में करीब 19 लाख पंजीयन हैं। नए पंजीयन से फिलहाल कोई लेना-देना नहीं है, जिसके लिए अभी भीड़ है। पंजीकृत 19 लाख में से दो साल पुराने नाम अलग करने हैं। इनमें से उन लोगों की छंटनी होगी, जिनकी आमदनी का कोई दूसरा जरिया नहीं है। साथ ही, परिवार की कुल आमदनी 2.5 लाख रुपये सालाना से कम है। हर छह माह में परीक्षण होगा कि रोजगार मिल जाने के बाद भी कोई भत्ता तो नहीं ले रहा? यहां पर रोजगार का मतलब सरकारी नौकरी नहीं है, क्योंकि पहले ही कह दिया गया है कि आमदनी का कोई दूसरा जरिया नहीं होने पर ही भत्ता मिलेगा।
इधर कर्नाटक में विधानसभा चुनाव करीब है। वहां सोमवार को बेलगावी में राहुल गांधी की सभा थी। उन्होंने जनसभा में बेरोजगारी भत्ता देने की घोषणा की है। यह साफ जरूर कर दिया कि भत्ता सिर्फ दो साल मिलेगा। पर सरकार बनने के पहले साल से मिलने लगेगा या छत्तीसगढ़ की तरह कार्यकाल खत्म होने के आसपास, यह साफ नहीं किया। कर्नाटक में राहुल ने यह भी घोषणा की है कि 10 लाख रोजगार सृजित किए जाएंगे, 2.5 लाख खाली सरकारी पद भरे जाएंगे। छत्तीसगढ़ में देखें तो ज्यादातर भर्तियों पर आरक्षण मसले और दूसरे कारणों से रोक लग गई है। अनियमित कर्मचारियों को नियमित करने का घोषणा पत्र में संकल्प था। पिछले बजट में इस पर कोई घोषणा नहीं होने के बाद यह वर्ग आंदोलन के रास्ते पर है।
पत्रकार की पोहा दुकान
ब्लैकमेलिंग करने, नफरत फैलाने से तो बेहतर है कि कोई दूसरा सम्मानजनक काम ढूंढ लिया जाए। इस चक्कर में न पड़े कि कोई क्या कह रहा है। सोशल मीडिया पर मिली इंदौर की इस तस्वीर में दिख रहा है कि पत्रकार ने पोहा दुकान खोल ली है। रिपोर्टर और एडिटर के लिए अलग-अलग स्पेशल पोहा भी सर्व किया जाता है। शादी, पार्टियों के लिए भी ऑर्डर लिए जाते हैं।