राजपथ - जनपथ
अलग धर्म कोड की मांग
शहीद स्मारक रायपुर में अनुसूचित जनजाति सम्मेलन में दो बातें हुईं। एक तो मंत्री अमरजीत भगत के भाषण के दौरान नारेबाजी हुई। लोगों ने कहा कि हमारे 29 विधायक हैं, पर आरक्षण नहीं दिला पाए। जाहिर है भगत ने आरक्षण रोकने के लिए भाजपा पर आरोप लगाया। कहा कि वे आरक्षण के खिलाफ पहले सडक़ पर निकलते थे, पर अब विधानसभा में पारित विधेयक पर हस्ताक्षर के लिए राज्यपाल से मिलने भी नहीं जा रहे हैं। भगत का सम्मेलन में विरोध स्पष्ट करता है कि यहां सिर्फ कांग्रेसी नहीं, बल्कि सभी दलों से जुड़े लोग थे। ज्यादा महत्वपूर्ण बयान मंत्री कवासी लखमा का है, जिसमें उन्होंने कहा कि आदिवासियों के प्रतिनिधि अप्रैल महीने में दिल्ली जाएंगे और राष्ट्रपति से मिलकर अपने लिए हिंदू से अलग, एक धर्म कोड की मांग करेंगे।
आदिवासी हिंदू हैं या नहीं इस पर हमेशा बहस होती रही है। अनेक आदिवासी संगठन मानते हैं कि वे प्रकृति के पूजक हैं, उनकी पूजा पद्धति और देवी-देवता अलग हैं। भाजपा इनको हिंदू समाज का हिस्सा मानती है। धर्मांतरण के खिलाफ अभियान चलाती है, घर वापसी कराती है।
सवाल यह है कि क्या वही विषय चुनाव के समय जरूरी हो जाता है जो धार्मिक पहचान से जुड़ी है। क्या इस मुद्दे को किनारे रख आदिवासियों के जल-जंगल-जमीन, रोजगार और संस्कृति से जुड़ी उनकी चिंताओं को हल करने की बात करना ज्यादा जरूरी नहीं है। बस्तर में भाजपा का पिछले चुनाव में सफाया हो गया था। एक साल से आदिवासियों के धर्मांतरण के मुद्दे को लेकर वह आंदोलन कर रही है। बस्तर के ईसाईकरण का आरोप कांग्रेस पर लगा रही है। शव दफनाने को लेकर बीते दिनों एक के बाद एक कई विवाद हुए, सामाजिक बहिष्कार की घटनाएं हुईं। चुनावी साल में लखमा की ओर से उठाया गया धर्म कोड का मुद्दा भाजपा से मुकाबले की एक रणनीति लग रही है। वैसे लखमा का दावा है कि जनजाति सम्मेलन में यह प्रस्ताव पारित हुआ है।
धार्मिक पहचान का ध्रुवीकरण
कोई भी आदिवासी ग्रामीण, ईसाई और हिंदुओं के खेत या घरों में काम करता पाया जाएगा, तो ग्रामसभा उस पर 5000 रुपये का जुर्माना लगाएगी। बाहर के त्यौहारों को मनाने के लिए ग्रामसभा से अनुमति लेना जरूरी है। ऐसे किसी भी व्यक्ति के खिलाफ ग्रामसभा कार्रवाई कर सकती है, जो आदिवासियों के बीच किसी अन्य धर्म का प्रचार करता है। गांव में बच्चों का नामकरण, विवाह, पूजा, प्रार्थना जैसी सभी महत्वपूर्ण गतिविधियां आदिवासी मान्यताओं के अनुसार की जाएगी। ईसाई गांव में मृतक को नहीं दफना सकते। नियम तोडऩे वालों को गांव से बाहर कर दिया जाएगा। यहां किसी भी तरह की विकास योजना ग्रामसभा से स्वीकृति मिलने के बाद ही शुरू की जा सकेगी।
बस्तर जिले के तोकापाल तहसील के रनसरगीपाल की ग्राम सभा ने यह प्रस्ताव पेसा कानून में मिले अधिकारों का हवाला देते हुए पारित किया है। वे इसकी जानकारी देने पिछले दिनों जगदलपुर कलेक्टोरेट पहुंचे थे। वहां एडिशनल एसपी ने उन्हें बताया कि पेसा कानून में ग्राम सभा सर्वोपरि तो है लेकिन ऐसा कुछ भी पारित नहीं किया जा सकता जिससे किसी को संविधान में मिले मौलिक अधिकारों का हनन हो। सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ तो अलग से कानून हैं ही।
बस्तर की इस ग्रामसभा की यह घटना सन् 2018 के चुनाव के पहले जोर पकडऩे वाले उत्तर छत्तीसगढ़ और झारखंड के पत्थलगढ़ी आंदोलन की याद दिला रही है। तब संविधान का हवाला देते हुए ही गांव के बाहर पत्थर गाड़ कर बाहरी लोगों के घुसने पर पाबंदी लगाई गई थी और कहा गया था कि हमारे यहां अपना कानून चलेगा। अधिकारी, कर्मचारियों को गांव में घुसने पर बंधक भी बना लिया जाता था। यह संयोग नहीं है कि एकाएक बस्तर में धर्मांतरण के मामले ने तूल पकड़ लिया है। शव दफनाने के नाम पर झड़प हो रही है, धार्मिक प्रतिष्ठानों, प्रतीकों पर हमले हो रहे हैं। दूसरी ओर अलग धर्म कोड बनाने की मांग उठ रही हो और अब सामाजिक बहिष्कार का ऐलान किया जा रहा हो। स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार जैसे मुद्दे इनके आगे फीके हैं।
धर्मजीत सिंह लौटेंगे कांग्रेस में?
जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ ने 6 माह पहले एक चौंकाने वाला फैसला लेकर पार्टी के संस्थापक सदस्य और स्व. अजीत जोगी के बेहद करीबी लोरमी विधायक धर्मजीत सिंह ठाकुर को 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया था। वजह भाजपा से नजदीकी बताई गई थी। धर्मजीत सिंह ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से अगस्त 2022 में मुलाकात की थी उसके बाद सितंबर 2022 में उन्हें यह कहते हुए निकाला गया कि वे आदिवासी, ओबीसी हितों की अनदेखी कर पार्टी के संस्थापक के सिद्धांतों की अवहेलना कर रहे हैं। निष्कासन के बाद धर्मजीत सिंह ठाकुर ने आरोप लगाया था कि अमित जोगी ने उनकी पत्नी को देर रात फोन कर बदतमीजी की। अपने कुकृत्यों को छिपाने के लिये यह कार्रवाई की गई। बहरहाल, स्व. जोगी के के बाद भी डॉ. रेणु व अमित जोगी को कदम-कदम पर साथ देने वाले धर्मजीत सिंह के दोबारा इस आभा खोती पार्टी की तरफ लौटने की कोई गुंजाइश नहीं रह गई है। इधर, पिछले कुछ दिनों से यह अटकल तेज हो गई है कि वे कांग्रेस में दोबारा आ सकते हैं। बिल्हा में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का भरोसा सम्मेलन हुआ था। वे क्षेत्र के विधायक नहीं होते हुए भी इसमें शामिल हुए थे। बाद में विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरण दास महंत के साथ उन्होंने मुंगेली का दौरा और रतनपुर में महामाया दर्शन किया। धर्मजीत सिंह की मौजूदगी में पत्रकारों के सवाल पर डॉ. महंत ने कहा कि धर्मजीत अपने क्षेत्र के कद्दावर नेता हैं, वे किसी भी दल में जा सकते हैं। वे कहीं भी रहें, हमारे दिल में रहते हैं। मेरी ओर से खुला ऑफर है, कांग्रेस में स्वागत है। धर्मजीत सिंह की ओर से कोई जवाब नहीं आया। लोग इसे मौन सहमति न भी मानें तो यह निश्चित है कि वे दुविधा में हैं। जेसीसी छोडऩे से पहले से ही उनके चुनाव-2023 से पहले भाजपा में चले जाने की चर्चा चल निकली थी, जो महंत के बयान से पहले तक हो रही थी। उन्हें तखतपुर से भाजपा की टिकट मिलने की बात हो रही थी। भाजपा से उनकी दूरी क्यों दिख रही है, इसके कुछ धुंधले से कारण तो दिखाई दे रहे हैं, पर यह स्पष्ट तब होगा जब धर्मजीत सिंह अपनी स्थिति कुछ साफ कर दें।
धुंए का गुबार छोड़ती गाड़ी
रायपुर शहर को देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में एक बनाए रखने में अपना योगदान देती यह दूध ढोने वाली गाड़ी। तेलीबांधा थाने के सामने से गुजरती हुई।