राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : कारोबार के दिग्गज पर छापे से सनसनी
29-Mar-2023 3:53 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : कारोबार के दिग्गज पर छापे से सनसनी

कारोबार के दिग्गज पर छापे से सनसनी

ईडी की कार्रवाई से कारोबारी जगत में हडक़ंप मच गया है। ईडी ने  उन कारोबारियों के यहां भी दबिश दी, जिनकी साख न सिर्फ अच्छी रही है बल्कि बड़े राजनेताओं से मित्रवत संबंध रहे हैं। इनमें प्रमुख नाम उद्योग जगत की बड़ी हस्ती कमल सारडा, और उनके पुत्र पंकज सारडा हैं।

सारडा ग्रुप को लेकर छत्तीसगढ़ से उरला-सिलतरा इलाके में यह कहा जाता है कि वहां विपरीत परिस्थितियों में भी कर्मचारियों की छंटनी नहीं की गई। कमल सारडा के बारे में यह कहा जाता है कि वो छोटे-छोटे कर्मचारियों का पूरा ध्यान रखते हैं।
राजनेताओं से उनके संबंधों की प्रगाढ़ता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनका चाहे दिवंगत अजीत जोगी हो, या फिर रमन सिंह, या फिर मौजूदा सरकार के प्रमुख नेता, हर किसी से उनकी दोस्ती रही है।

राम मंदिर हो या फिर भाजपा का कोई अन्य कार्यक्रम, कमल सारडा मुक्त हस्त से सहयोग करने में पीछे नहीं रहे। आरएसएस और भाजपा के कई कार्यक्रमों के आयोजक प्रायोजक रहे हैं। कुछ लोग बताते हैं कि अभिषेक सिंह सक्रिय राजनीति में आने से पहले कुछ समय तक सारडा ग्रुप के मुंबई ऑफिस में मैनेजमेंट के गुर सीखे थे। ऐसे में उनके यहां ईडी की कार्रवाई से न सिर्फ कारोबारी जगत बल्कि कांग्रेस और भाजपा के नेता भी सकते में आ गए हैं।

ईडी-2

ईडी की कार्रवाई जिन ताकतवर लोगों के यहां हो रही है, उनमें प्रमुख नाम शराब कारोबारी पप्पू भाटिया का भी है। छापेमारी से पहले तक पप्पू भाटिया को संकट मोचक के रूप में देखा जाता था। इसकी वजह भी है कि उनकी केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह से क्रिकेट एसोसिएशन के चलते निकटता है।

भाटिया के यहां कुछ महीने पहले पारिवारिक विवाह समारोह में जय शाह और कांग्रेस के ताकतवर नेता राजीव शुक्ला दो दिन तक रहे। बताते हैं कि जय शाह सालभर पहले रायपुर होते हुए कान्हा किसली अभ्यारण्य गए, तो उन्होंने इसकी जानकारी सिर्फ भाटिया के बेटे को ही दी थी।

भाजपा के किसी नेता को इसकी भनक नहीं लगी। चूंकि राजनीतिक हल्कों में यह माना जाता है कि ईडी हो या आईटी की कार्रवाई, अमित शाह की पैनी नजर रहती है। ऐसे में पप्पू भाटिया के लपेटे में आना जानकार लोगों को चौंका रहा है।

पड़ोसी के चक्कर में हल्ला

महासमुंद के विधायक विनोद चंद्राकर के यहां ईडी की कार्रवाई का हल्ला उड़ा। दरअसल, कार्रवाई शंकर नगर स्थित उनके सरकारी बंगले के बगल में रहने वाले उद्योग विभाग के एडिशनल डायरेक्टर प्रवीण शुक्ला के यहां हुई, लेकिन चंद्राकर और उनके करीबी लोग अपने यहां कार्रवाई का खंडन करने का हौसला नहीं जुटा पा रहे थे। इसकी प्रमुख वजह यह थी कि दो विधायकों के यहां पहले ही दबिश दे चुकी है।

महासमुंद में तो उनके परिवार के लोग यह कह रहे थे कि शंकर नगर में कुछ चल रहा होगा, तो उनकी जानकारी में नहीं है। उनके समर्थक मानकर चल रहे थे कि ईडी की टीम देर सबेर आ सकती है। देर शाम को साफ हुआ कि उनके यहां छापे नहीं पड़े। बल्कि पड़ोस में पड़े। तब कहीं जाकर चंद्राकर के समर्थकों ने राहत की सांस ली।

बस्तर में ध्रुवीकरण की कोशिश

कहा जाता है कि जो यूपी जीतेगा उसी की केंद्र में सरकार बनेगी। छत्तीसगढ़ में कहते हैं कि बस्तर की सीटें जिसके पास, राज्य की सत्ता भी उसी के पास। संभवत: इसीलिए बड़ी तेजी से बस्तर में वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश चल रही है। सुकमा का ताजा विवाद इसी का संकेत  दे रहा है। यहां हिंदू राष्ट्र की मांग वाले पोस्टर बैनर लगाने पर विवाद हुआ। विवाद इस बात पर भी था कि किसी मोहल्ले का नाम बदलकर दूसरे नाम के बैनर लगाए गए।

सुदूर सुकमा की तरह देश के हर कोने की तरह ऐसी जगह में भी भिन्न भिन्न समुदायों के लोग रहा करते हैं। पूरे देश में यही हालत है। अलग-अलग मान्यताओं, धर्म, पंथ को मानने वाले लोग हैं। इसी विविधता को भारत की श्रेष्ठता, विशिष्टता कही जाती है। हिंदू राष्ट्र की मांग के लिए में कोई विधेयक नहीं लाया जा रहा है। पर, समर्थक समूह और चमत्कारी बाबा सडक़ पर माहौल बना रहे हैं। मकसद, पुलिस लाठी चलाए, लोगों को उकसाया जाए, शहर की दुकानें बंद कराई जाएं, शांति भंग हो और उसका फायदा आने वाले चुनावों में हो। कवर्धा में 2021 में इसी तरह से तनाव का माहौल बना था, कफ्र्यू लगानी पड़ी। छत्तीसगढ़ के लोग और यहां की पुलिस ऐसे मामलों से निपटने के लिए अभ्यस्त नहीं है।

महानदी पर फैसला आने वाला है...

ओडिशा सरकार की शिकायत रही है कि महानदी पर छत्तीसगढ़ में इतने बराज बना दिए गए हैं कि किसानों को पानी नहीं मिलता। हालांकि हीराकुंड बांध में स्थापित जल विद्युत परियोजनाओं और उद्योगों को पानी के कारण भी उसे किल्लत होती है। इसके विपरीत बारिश के मौसम में छत्तीसगढ़ के बांधों से ज्यादा पानी छोडऩे पर भी ओडिशा सरकार ऐतराज करती है, वहां गांवों के डूब जाने का खतरा पैदा हो जाता है। यह विवाद तब से चल रहा है जब छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार थी और ओडिशा में भी भाजपा सरकार का हिस्सा थी। छत्तीसगढ़ के पक्ष को तत्कालीन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने मजबूती से रखा था और ओडिशा के दावे को नकारा था। एक टीम भी ओडिशा से आई थी जिसने महानदी के उद्गम स्थल सिहावा से लेकर सहायक नदियों के क्षेत्र का दौरा किया था। इन दोनों राज्यों की मांग पर एक ट्रिब्यूनल का गठन जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता में किया गया था। एक बार इस ट्रिब्यूनल का कार्यकाल भी बढ़ाया गया था, मार्च 2023 तक। मगर ट्रिब्यूनल ने अगले माह यह रिपोर्ट देने की बात कही है। इस ट्रिब्यूनल का दौरा आने वाले 15 दिनों में छत्तीसगढ़ में भी हो सकता है। महानदी पर छत्तीसगढ़ में गंगरेल तो ओडिशा में हीराकुंड प्रमुख बांध हैं। छोटे बांधों और बराज की संख्या, सहायक नदियों को जोड़ दें तो दोनों राज्यों में बहुत से हैं। देखना होगा कि अगले महीने छत्तीसगढ़ के भ्रमण पर आने वाले ट्रिब्यूनल के सामने छत्तीसगढ़ सरकार अपना पक्ष किस तरह से रखेगी।

महुआ की इकोनॉमी

वसंत उतार पर आते ही जंगल महुआ की सोंधी महक से महक,लुभाते है। वनवासी अल सुबह महुआ बीन खासी राशि जुटा लेते है। महुआ स्वास्थ्यवर्धक फल है। रस सुस्वादु होता है। प्रोसेसिंग के बाद तो और भी मस्त। रायगढ़ जिले की तस्वीर।

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