राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : विहिप के कंधे पर बड़ी जिम्मेदारी?
11-Apr-2023 4:09 PM
राजपथ-जनपथ :  विहिप के कंधे पर बड़ी जिम्मेदारी?

विहिप के कंधे पर बड़ी जिम्मेदारी?

विश्व हिंदू परिषद् का कोई प्रचारक जिसके हजारों फॉलोअर हों, हिंदुत्व की प्रयोगशाला गुजरात में गिरफ्तार हो जाए, सुनने में अटपटा लग सकता है। पर, ऐसा हुआ है। ऊना जिले में रामनवमी के दिन भडक़ाऊ भाषण देने के आरोप में काजल ‘हिंदुस्तानी’ को गिरफ्तार किया गया। पुलिस का आरोप है कि उसके भाषण के चलते दो दिन तक ऊना में सांप्रदायिक तनाव की स्थिति बनी हुई थी, कुछ जगहों पर झड़प भी हुई। पुलिस ने दंगा करने की नीयत से पथराव करने के आरोप में करीब 80 और लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें ज्यादातर अल्पसंख्यक हैं। काजल हिंदुस्तानी को अक्सर विहिप के कार्यक्रमों में देखा जाता रहा है। वे अपने आपको रिसर्च एनालिस्ट, इंटरप्रेन्योर, सामाजिक कार्यकर्ता और राष्ट्रवादी बताती हैं। ट्विटर पर उनके 95 हजार फॉलोअर हैं जिनमें ओम बिड़ला जैसे बड़े नेता भी  शामिल हैं। गुजरात की घटना यह जानने के लिए काफी है कि उसके कार्यकर्ताओं देश के किसी भी हिस्से में किसी भी तरह की परिस्थितियां पैदा करने की क्षमता रखते हैं। बेमेतरा में एक युवक की हत्या के बाद कल हुए छत्तीसगढ़ बंद में विश्व हिंदू परिषद् ने अपनी ताकत झोंक दी। भाजपा का साथ भी था। जब तक भाजपा की सरकार छत्तीसगढ़ में थी, उसे अपने इन सहयोगी संगठनों की कम से कम विधानसभा चुनावों में तो जरूरत नहीं पड़ी थी। सन् 2018 के चुनाव में एक भाजपा प्रत्याशी ने चार्टर प्लेन से पहुंचे उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अपने इलाके में सभा कराने से मना कर दिया था। प्रत्याशी का कहना था कि वर्षों से जो अल्पसंख्यक वोट उन्होंने संभाल रखे हैं, बिगड़ जाएंगे। बस्तर के बाद अब बेमेतरा में बीजेपी ने आक्रामकता दिखाई है। बेमेतरा की पिच पर विहिप की टोली आगे कर दी गई है। लोकसभा में यह जंतर काम करता रहा है, पर यदि इसका मकसद इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को ‘हर हाल में जीत’ दिलाने के लिए है तो यह उन नेताओं, दलों के लिए चिंता की बात होगी जो विकास, घोटाले, बेरोजगारी, महंगाई, खेती जैसे सवालों पर अब तक मैदान में उतर रहे थे।

टाइगर पर छत्तीसगढ़ की साख बचेगी?

टाइगर प्रोजेक्ट के 50 साल पूरे होने के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशभर में बाघों की संख्या में वृद्धि के आंकड़े जारी किए। छत्तीसगढ़ में लोगों को यह जानने की दिलचस्पी है कि उनकी संख्या यहां बढ़ी या घटी। टाइगर होने और उनकी वंशवृद्धि की संभावना को देखते हुए ही तो चार नए रिजर्व हाल के वर्षों में प्रदेश में घोषित किए गए हैं। और तीन साल में 184 करोड़ रुपये खर्च किए गए। पूर्व मंत्री महेश गागड़ा सहित भाजपा के नेताओं ने इस खर्च को अविश्वसनीय बताया, लोगों ने भी ऐसा ही महसूस किया। वैसे भाजपा के कार्यकाल के अंतिम 4 वर्षों में भी 229 करोड़ रुपये खर्च हुए थे।


दूसरी ओर, छत्तीसगढ़ में बाघ तेजी से घटे हैं। विधानसभा में हाल ही में वन मंत्री की ओर से मंत्री शिव डहरिया ने 2019 में जारी आंकड़ों के हवाले से बताया था कि यहां 19 बाघ रह गए हैं। सन् 2015 में जारी 2014 की गणना के मुताबिक इनकी संख्या 46 थी। जबकि उस वर्ष की गणना में राष्ट्रीय स्तर पर बाघों की संख्या 2226 से बढक़र 2967 हो गई थी। विधानसभा में दी गई जानकारी के आधार पर ही कह सकते हैं कि पगमार्क के आधार पर गिनती कर बाघों की संख्या जान-बूझकर ज्यादा बताई जाती थी। इसमें फारेस्ट के अफसरों का अपना हित था। 2018 में ट्रैप कैमरे से गणना की अधिक सटीक पद्धति लाई गई तो छत्तीसगढ़ में इनकी संख्या सीधे 59 प्रतिशत कम हो गई। विधानसभा में यह भी बताया गया कि 2020 से 2022 के बीच दो बाघों की मौत भी हुई। दोनों मौतें कोर एरिया के बाहर हुईं। दूसरी ओर एनटीसीए का आंकड़ा कुछ और बता रहा है। इसके अनुसार सन् 2020 में एक बाघ की मौत हुई। सन् 2021 में चार और 2022 में दो बाघों की मौत हुई। यानि 3 साल में सात बाघों की मौत हुई। दोनों आंकड़ों में जमीन आसमान का फर्क है। छत्तीसगढ़ में बाघों की संख्या कितनी बढ़ी हुई मिल सकती है इस पर अनुमान लगाने के दौरान एक तथ्य और ध्यान में रखना होगा। यह जरूर है कि ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश में कुल 3167 बाघ हैं, पर इनकी संख्या बढऩे की रफ्तार घटी है। 2014 से 2018 के बीच बाघों की आबादी 33 फीसदी की रफ्तार से बढ़ी जबकि 2018 से 2022 के बीच यह सिमटकर 6.74 प्रतिशत ही रह गई है। यानि इस बार साख बचाने की चुनौती और ज्यादा है।

अंगूर से महंगे चार..

आम के आम गुठलियों क दाम तो प्रचलित मुहावरा है। पर छत्तीसगढ़ के जंगलों में मिलने वाले चार के बारे में भी यही बात कही जा सकती है। पूरे प्रदेश के वन क्षेत्रों में इसे बटोरकर वहां के रहवासी कस्बों और शहरों में ला रहे हैं और इसकी अच्छी कीमत पा रहे हैं। इस समय अंगूर सस्ते हो चुके हैं, यह 60 से 80 रुपये किलो में बिक रहा है। पर चार की कीमत 400 रुपये किलो तक पहुंच गई है। दरअसल इसके बीज या गुठली भी उपयोगी है। इससे चिरौंजी बनती है, जो महंगे ड्रायफ्रूट्स में शामिल है। प्राण चड्ढा ने यह तस्वीर ली है।

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