राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : कलेक्टर का काऊंटर
12-Apr-2023 4:31 PM
राजपथ-जनपथ : कलेक्टर का काऊंटर

कलेक्टर का काऊंटर

छत्तीसगढ़ के एक नौजवान कलेक्टर ने जिले के चीफ मेडिकल ऑफिसर, सीएमओ, को भुगतान-काउंटर बना रखा है। वक्त खराब चल रहा है, अपने परिवार के किसी व्यक्ति को, या अपने पीए-स्टेनो को इस काम में लगाने के बजाय दूर अलग बैठे अफसर को इंचार्ज बना दिया गया है। लोगों को संदेश मिल जाता है कि जाकर उनसे मिल लें।

बैठक की जगह का राज

राजधानी रायपुर में एक बड़े कमाऊ विभाग में प्रदेश भर से अफसरों को बुलाया जाता है। और उनसे बातचीत के लिए एक ऐसे रेस्त्रां या कैफे को छांटा गया है जहां काम करने वाले वेटर मूक-बधिर हैं। ऐसे में कोई बात सुन ले, इसका खतरा भी कम रहता है। विभाग पर ईडी का खतरा भी मंडरा रहा है, इसलिए तरह-तरह की सावधानी जरूरी है।

प्रवचन से परहेज

एक प्रवचनकर्ता के बड़े पुराने एक भक्त इस बार उनके प्रवचन में नहीं गए। जानकारों ने पूछा कि क्या बात है आप नहीं आए, तो जवाब मिला कि प्रवचनकर्ता को सुनने जाने की तो बड़ी इच्छा थी, लेकिन आयोजनकर्ता का नाम देखकर घर बैठे रह गया।

खामियों की खबरों से परहेज

भाजपा के मीडिया प्रकोष्ठ की भूमिका से संगठन के बड़े नेता नाराज नहीं तो संतुष्ट भी नहीं है। हाल में एक पूजा-भंडारे के दौरान एक दिग्गज नेता कुछ मीडिया कर्मियों से रूबरू हुए। वो अनौपचारिक चर्चा में कह गए कि पार्टी के मीडिया प्रकोष्ठ में विपक्षी दल की तरह काम नहीं हो रहा।

पार्टी नेता पुराने मीडिया प्रकोष्ठ के मुखिया सुभाष राव, रसिक परमार को याद कर रहे थे कि वो प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान डायस पर बैठने के बजाए मीडिया कर्मियों के बीच में रहते थे। वो ये सुनिश्चित करने में लगे रहते थे कि कॉन्फ्रेंस शुरू होने से पहले सभी मीडियाकर्मी पहुंच जाएं । यही नहीं, ज्यादातर पत्रकारों को तो खुद होकर कॉन्फ्रेंस की सूचना देते थे।

प्रदेश में पहले विधानसभा चुनाव में सुभाष राव, और रसिक की मदद के लिए प्रभात झा को भेजा गया था। क्योंकि उस समय प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। उस समय प्रबंधन इतना बढिय़ा था कि विधायक खरीद-फरोख्त कांड के खुलासे के लिए तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री अरूण जेटली रायपुर आए थे। प्रेस कॉन्फ्रेंस तीन घंटे विलंब से शुरू हुआ, लेकिन विलंब होने के बावजूद पत्रकारों ने शिकायत नहीं की। कुल मिलाकर पहली बार सरकार बनाने में भाजपा के मीडिया प्रकोष्ठ की भूमिका को अब तक सराहा जाता है। बाद में सरकार बन गई, और व्यवस्था में सरकारी तंत्र का सहयोग मिलने लगा, लेकिन तब भी नलिनेश ठोकने की अगुवाई में मीडिया प्रकोष्ठ की व्यवस्था अच्छी ही रही।

हाल यह है कि चुनाव में 6 महीने बाकी रह गए हैं। ऐसे में पार्टी के एक बड़े खेमे को लगता है कि मीडिया प्रकोष्ठ, बाकी प्रकोष्ठों की तुलना में सबसे कमजोर है। मीडिया प्रकोष्ठ की कार्यशैली से नाराज कुछ पार्टी नेताओं का कहना है कि प्रकोष्ठ शीर्ष के तीन-चार नेताओं के लिए ही गठित किया गया, ऐसा लगता है। बाकी नेताओं ने तो स्वयं की व्यवस्था कर रखा है। और तो और यह थिंक टैंक की तरह लगता ही नहीं।

नाराज नेता बताते हैं कि मीडिया प्रकोष्ठ के कर्ताधर्ता रोजाना, राजधानी के कुछ उन अखबारों की उन्हीं कतरनों का पीडीएफ हाईकमान को भेजते हैं जिनमें उनका भेजा बयान प्रकाशित होता है। या सरकार विरोधी बयान, और खबरें। निंदक नियरे... की तरह संगठन की खामी उजागर करती खबरों से परहेज करते हैं।

दावेदारी बँट रही है

भाजपा ने विधानसभा चुनाव के चलते जिला प्रभारी तो बना दिए हैं, लेकिन अब प्रभारियों की वजह से जिलों में गुटबाजी बढ़ गई है। इस तरह की शिकायतें रोज पार्टी संगठन के प्रमुख नेताओं तक पहुंच रही है। एक जिले में तो प्रभारी ने हर विधानसभा में 10-10 नए दावेदार तैयार कर दिए हैं। इनमें से कईयों ने तो वाल राइटिंग शुरू कर दी है।

बताते हैं कि प्रभारी दूसरे जिले के रहने वाले हैं। बैठक में आने जाने के लिए उनके लिए गाड़ी की व्यवस्था करनी पड़ती है। यही नहीं, पदाधिकारियों को प्रभारी के लिए होटल-ढाबे में लजीज खाने का भी इंतजाम करना होता है। एक दावेदार से तो प्रभारी ने महंगे मोबाइल गिफ्ट करा लिए। चूंकि चुनाव नजदीक है इसलिए कुछ दावेदार प्रभारी के डिमांड पूरी करते जा रहे हैं। मगर जिले के पदाधिकारी गुस्से में हैं। पिछले दिनों एक बैठक के दौरान पदाधिकारियों की प्रभारी से विवाद भी हुआ। पार्टी के कुछ नेता मानते हैं कि अगर सुविधा भोगी प्रभारियों को बदला नहीं गया, तो इसका सीधा असर चुनाव पर पड़ सकता है। देखना है आगे क्या होता है।

प्रियंका की तैयारी से चुनावी अभ्यास शुरू

बस्तर में प्रियंका गांधी के कार्यक्रम में एक लाख लोगों की मौजूदगी की तैयारी की जा रही है। अगर ऐसा होता है तो यह बस्तर का एक सबसे बड़ा और सबसे कामयाब राजनीतिक कार्यक्रम होगा। नक्सल प्रभावित बस्तर में हिफाजत के खास इंतजाम किए जा रहे हैं, और इसके लिए कई आईपीएस की अलग-अलग तरह की ड्यूटी लगाई गई है। कुछ लोगों की ड्यूटी हाल ही में बस्तर आए केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के लिए भी लगाई गई थी, और प्रियंका गांधी की आमसभा के साथ अब विधानसभा चुनाव की तैयारियों का अभ्यास भी शुरू हो जाएगा। आने वाले महीने पूरे प्रदेश में पुलिस के लिए दोहरी चुनौती के रहेंगे, क्योंकि एक तो प्रदेश में साम्प्रदायिक तनाव खड़ा हो चुका है, दूसरा यह कि नेताओं के दौरे और कार्यक्रम बढ़ते चलेंगे, और राजनीतिक आंदोलन भी। अभी बेमेतरा के एक गांव में साम्प्रदायिक हत्याओं के चलते करीब हजार पुलिसवालों को झोंक देने की खबरें हैं, दूसरे राज्यों की पुलिस भी लगा दी जाए, तो भी साम्प्रदायिक तनावों से निपटने के लिए जवान कम ही पड़ेंगे, इसलिए शांति बिना गुजारा नहीं है। फिलहाल पुलिस के कंधों पर बोझ बढ़ते चलना है। एक आईपीएस ने निजी बातचीत में कहा कि जीत-हार तो नेताओं की होती है, पुलिस की तो बस हार ही हार होती है, अगर सब कुछ चैन से निपट गया तो पुलिस को कोई वाहवाही नहीं मिलती, और अगर एक गाड़ी भी पलट गई, तो पुलिस पर दाग लग जाता है।

आम आदमी पार्टी को नई ताकत

देश में राजनीतिक दलों का जो हुआ है, उससे छत्तीसगढ़ भी प्रभावित होने जा रहा है। प्रधानमंत्री के खिलाफ लगातार सबसे तीखा और तेजाबी अभियान चलाने वाली आम आदमी पार्टी को चुनाव आयोग ने राष्ट्रीय राजनीतिक दल का दर्जा दे दिया है क्योंकि देश भर में उसे मिले वोट उसे इस दर्जे का हकदार बना रहे थे। दूसरी तरफ राष्ट्रीय कही जाने वाली दो पार्टियों का राष्ट्रीय दर्जा खत्म कर दिया गया है, जिसमें विपक्ष को तोडऩे की तोहमत झेल रहे शरद पवार की पार्टी एनसीपी है, और सीपीआई का भी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खत्म हो गया है क्योंकि उन्हें देश भर में मिले वोट इसके लिए निर्धारित जरूरत से कम थे। अब ऐसा करके चुनाव आयोग ने सरकार के एक विभाग सरीखे होने का दाग भी धो लिया है, क्योंकि प्रधानमंत्री की सीधी फजीहत करने वाली आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय दर्जा दिया है, और अडानी और पीएम का साथ देते दिखने वाले पवार की पार्टी से यह दर्जा छीन लिया है। सीपीआई तो ऐसे विवादों से परे किनारे बैठी है, लेकिन हाल के महीनों में प्रधानमंत्री के प्रति रहमदिली दिखाने वाली ममता बैनर्जी की पार्टी का भी राष्ट्रीय दर्जा छीन लिया गया है। थोड़ा अटपटा है, लेकिन है तो ऐसा ही। अब आप एक नए उत्साह के साथ छत्तीसगढ़ के चुनाव में उतरेगी, और देखना है कि यह नया दर्जा लोगों की नजरों में भी उसे एक अधिक असरदार पार्टी बनाता है या नहीं।

हिचकते हुए सहमे अफसर

छत्तीसगढ़ में इन दिनों बड़े-बड़े अफसर फोन पर बात करने से बचते हैं, और मिलने पर कोई शिकायत करे तो उनका साफ जवाब रहता है, देख तो रहे हैं। अब क्या देख रहे हैं, इसका खुलासा कोई नहीं करते, लेकिन हवा में यही है कि ईडी हर किसी की बात सुन रही है, अब कुछ भी बोलना महफूज नहीं है। इसके अलावा बड़ी संख्या में बड़े अफसरों से पूछताछ, उनके घरों पर छापे, लगातार बयान दर्ज करने से राज्य में नौकरशाही के काम करने की रफ्तार भी घट गई है, और अगर कोई फैसला लेने की नौबत आती है, तो बहुत से अफसर हिचकने भी लगे हैं। अभी यह कहना तो ठीक नहीं होगा कि इनमें से कुछ अफसर इसी वजह से छुट्टियां ले रहे हैं, लेकिन लोग नाजुक कुर्सियों पर न बैठने की कोशिश जरूर कर रहे हैं।

वक्त से पहले पहुंच गए वीआईपी...

किसी समारोह में कोई नेता समय से इतना पहले पहुंच जाए कि सारी कुर्सियां खाली हों, ऐसा केवल चुनाव प्रचार के दौरान हो सकता है। बाकी जगह समय पर आ जाए तो वह नेता क्या और क्या वीआईपी? नागालैंड के शिक्षा और पर्यटन मंत्री तेमजेन इम्ना अलांग ने खाली कुर्सियों वाली यह तस्वीर अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर डाली है और कहा है- देखो मैं समय से पहले पहुंच गया, क्या मैं कोई वीआईपी हूं? 

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