राजपथ - जनपथ
अगला डीजी कौन ?
डीजीपी अशोक जुनेजा के रिटायरमेंट को दो महीने बाकी हैं। ऐसे में उनके उत्तराधिकारी को लेकर चर्चा चल रही है। कयास लगाए जा रहे हैं कि सरकार केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ 88 बैच के आईपीएस रवि सिन्हा को बुला सकती है। रवि सिन्हा खुफिया एजेंसी रॉ में स्पेशल डायरेक्टर के पद पर हैं। ब्यूरोक्रेसी पर नजर रखने वाली दिल्ली की एक प्रतिष्ठित वेबसाइट ने रवि सिन्हा के छत्तीसगढ़ लौटने की संभावना भी जताई है। मगर सरकार के कई प्रमुख लोग उनकी वापसी को लेकर सशंकित हैं।
बताते हैं कि रॉ के डायरेक्टर नरेश गोयल का एक्सटेंशन संभवत: जुलाई में खत्म हो रहा है। गोयल करीब साढ़े 3 साल से रॉ के चीफ हैं, और रिटायरमेंट के बाद वो लगातार एक्सटेंशन पर चल रहे हैं। ऐसे में रवि सिन्हा को उनके उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जा रहा है। यदि ऐसा होता है, तो वो बतौर रॉ चीफ दो साल रह सकेंगे। जबकि उनका अगले साल जनवरी में रिटायरमेंट हैं।
चर्चा है कि इन्हीं सबके चलते रवि सिन्हा छत्तीसगढ़ वापसी के लिए ज्यादा उत्साहित नहीं है। डीजी संजय पिल्ले भी अगले तीन-चार महीने में रिटायर हो जाएंगे। ऐसे में उन्हें भी डीजीपी की दौड़ से बाहर माना जा रहा है। इसके बाद नंबर राजेश मिश्रा का है, जो स्पेशल डीजी हैं, लेकिन बीएसएफ से लौटने के बाद उन्हें ज्यादा कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं दी गई है।
फिर भी वरिष्ठता के आधार पर उनका दावा मजबूत माना जा रहा है। हालांकि उनसे जूनियर अरुण देव गौतम और पवन देव के नाम का भी हल्ला है, लेकिन पवन देव पर महिला आरक्षक के उत्पीडऩ केस को लेकर काफी कोर्ट-कचहरी हो चुकी है। ऐसे में वो स्वाभाविक तौर पर दौड़ से बाहर माने जा रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
एसपी-कलेक्टर में तनातनी
बेमेतरा में पिछले कुछ दिनों से हिंसा भडक़ी हुई है। राज्य सरकार इस मुद्दे पर चूक के कारण ढूंढ़ रही है। अलग-अलग तरह की जानकारी मिल रही है, लेकिन यहां के एसपी-कलेक्टर के बीच तालमेल की कमी को हिंसा का बड़ा कारण माना जा रहा है। दोनों अधिकारियों के ईगो क्लैश होने की जानकारी सामने आ रही है। हालांकि पुलिस के बड़े अधिकारी छोटे अफसरों को दोषी मान रहे हैं। अब देखना यह है कि राज्य सरकार मामला शांत होने के बाद किस पर एक्शन लेती है।
ईडी और अहाते
प्रदेश में आज किसी जायज काम को करने से भी सरकारी अफसर कतरा रहे हैं कि ईडी गिद्धों की तरह घूम रही है। अब इस बात में कितनी हकीकत है, कितनी नहीं, यह एक अलग मुद्दा है, लेकिन ऐसे तर्कों से परे राज्य के आबकारी विभाग की मनमानी आज भी चल रही है। खबर यह है कि आबकारी के दर्जनों अफसरों को बुलाकर ईडी ने कतार लगवा रखी है, लेकिन जगह-जगह इस विभाग का काम भ्रष्टाचार से घिरा हुआ है। अभी दुकानों के साथ चल रहे अहातों को हुक्म दिया गया है कि वे वहां से शराब बेचें, और तीस रूपये ज्यादा दाम पर बेचें, और यह ऊपर का पैसा दुकानों को दें। प्रदेश में यह चर्चा तो आम है कि ईडी अब पूरी ताकत शराब कारोबार पर लगा चुकी है। ऐसे माहौल में भी अगर शराब दुकानों से अधिक दाम पर बिक्री न करके, बगल के अहातों पर दबाव डालकर अधिक दाम पर बेचने, और शराब की गैरकानूनी बिक्री करने का हुक्म अगर दिया जा रहा है, तो कई अहाते चलाने वालों ने इस काम से इंकार कर दिया, क्योंकि यह बिक्री अपने आपमें गैरकानूनी रहेगी, और अधिक दाम पर बेचना एक अलग तरह का जुर्म भी रहेगा। फिलहाल सुनाई यह भी पड़ रहा है कि ईडी ने एक शराब-कारखानेदार से बड़ा महत्वपूर्ण बयान हासिल कर लिया है। आगे-आगे देखें होता है क्या...
खफा अफसरों की तैनाती
केन्द्र सरकार भी खूब है। उसने प्रदेश के तीन आकांक्षी जिलों के लिए केन्द्र की तरफ से तीन अफसरों की तैनाती की, तो वह ऐसे अफसरों की की जो कि छत्तीसगढ़ से किसी न किसी वजह से नाराजगी के साथ केन्द्र में गए हुए थे। इनमें से दो, मुकेश बंसल और रजत कुमार, पिछले भाजपाई मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ थे, और नई कांग्रेस सरकार आते ही इन्हें किनारे किया गया था। इनके अलावा डॉ. मनिंदर कौर द्विवेदी भी कुछ समय इस सरकार में रहने के बाद कुछ तनातनी के बीच ही अपने पति गौरव द्विवेदी के साथ भारत सरकार गई थीं। अब केन्द्र ने छत्तीसगढ़ के तीन आकांक्षी जिलों, बस्तर, कोरबा, और राजनांदगांव के लिए इन्हें प्रभारी अधिकारी बनाया है। अब इन जिलों के कलेक्टरों के लिए दुविधा की बात रहेगी कि इन अफसरों को कितना महत्व दिया जाए, और कितना उनसे बचा जाए। कायदे से तो केन्द्र सरकार को इसी छत्तीसगढ़ काडर के आईएएस अफसरों को इसी राज्य में किसी भी काम का प्रभारी बनाकर नहीं भेजना था। लेकिन अब केन्द्र सरकार कुछ भी कर सकती है।
इतना क्यों खिंचा रेल आंदोलन?
हावड़ा रूट पर पांच अप्रैल से पांच दिनों तक रेल यातायात ठप रहा। हजारों यात्री परेशान हुए। रेलवे का कहना है कि उसने करीब 1700 करोड़ रुपये का नुकसान उठाया है। आंदोलन कुड़मी या कुर्मी समाज ने किया था। कुड़मी अनुसूचित जनजाति की सूची में खुद को शामिल करने और अपनी कुर्माली बोली को संविधान की 8वीं अनुसूची में रखने की मांग कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ ही नहीं देश के कई राज्यों में कुर्मी समाज के लोग फैले हैं। पश्चिम बंगाल, ओडिशा और झारखंड में इनकी आबादी 2 करोड़ के आसपास है। प्राय: देश के शेष राज्यों में यह जाति अतिरिक्त पिछड़ा वर्ग यानि ओबीसी में शामिल है, पर इन तीनों राज्यों में ही वे अपने को अजजा में शामिल करने की मांग क्यों कर रहे हैं? खेती सबने शुरू की तो जंगल काटकर ही की। बहुत से लोगों ने मैदानी इलाके में उपजाऊ जमीन की तलाश कर ली। लेकिन इन तीनों राज्यों में अब भी बड़ी संख्या में कुर्मी जाति के लोग जंगल में हैं, या फिर वे खदानों, उद्योगों के कारण बेदखल हो गए हैं। टाटानगर में स्टील प्लांट के लिए 18 हजार हेक्टेयर जमीन अधिग्रहित की गई थी। इसमें सबसे ज्यादा जमीन कुड़मी समुदाय की ही गई। केंद्र सरकार के भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत उक्त जमीन अधिग्रहित की गई तब वे जनजाति में आते थे। सन् 1950 में इन्हें अनुसूचित जनजाति की सूची से हटा दिया गया। अभी इनकी ज्यादा बसाहट छोटा नागपुर पठार में है। झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में कुर्मी समाज को लग रहा है कि पिछड़े वर्ग में शामिल होने के कारण उन्हें रोजगार और नौकरी में अधिक मौका नहीं मिल रहा है। वो पिछड़ी जातियां ज्यादा लाभ ले रही हैं जो वर्षों से कस्बों और शहरों में आ बसे हैं। वे ज्यादा पढ़ लिख चुके हैं। कुड़मी तो आदिवासियों के बीच ही रह गए। आदिवासियों को तो आरक्षण का अच्छा लाभ मिल रहा है, पर उन्हीं के बीच, साथ-साथ रहने के बावजूद कुड़मी अनुसूचित जनजाति में नहीं गिने जाते हैं और उनके बराबर आरक्षण का लाभ नहीं ले पाते।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक केंद्र को पत्र लिखकर, दस्तावेजी विवरण और ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर इन्हें अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की सिफारिश करते हुए केंद्र को कई चि_ियां लिख चुके हैं। केंद्र ने अब तक इन पर कोई फैसला नहीं लिया है।
इन्होंने एकाएक रेल रोको आंदोलन नहीं किया। पिछले दिसंबर में तीनों राज्यों के सैकड़ों कुड़मी संसद भवन का घेराव करने दिल्ली पहुंचे थे। एक दिन के लिए रेल भी रोकी थी। राज्य स्तर पर कई प्रदर्शन हो चुके हैं। जमशेदपुर के भाजपा सांसद विद्युतशरण महतो सहित सभी दलों के कुड़मी प्रतिनिधि इस आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं। इसीलिए जब रेल रोको आंदोलन शुरू हुआ तो न तो राज्य सरकार ने न ही केंद्रीय बलों ने इन पर कोई सख्ती बरती। पांच दिन बाद भी कुड़मी संगठन ने खुद ही पटरियां छोड़ी। आखिर दो करोड़ की आबादी को नाराज करने का जोखिम कौन उठाता?
चैट जीपीटी से गपशप
एआई एंटेलिजेंट के चैट जीपीटी ऐप से भविष्य में लाखों लोगों की नौकरियां जाने का खतरा बताया जा रहा है। लोग बहुत से काम की जानकारी भी इससे जुटा रहे हैं। पर कई बार जो जानकारी मिलती है वह क्रास चेक करने पर पूरी तरह सही नहीं होती। कई बार तो सिरे से भ्रामक होती है। ऐसे ही असंतुष्ट, निराश यूजर ने चैट जीपीटी से अपने भड़ास निकाली। कहा- दुनिया को मिस गाइड मत करिये। प्रॉब्लम मत बढ़ाएं, अपने निर्माता से बात कराओ। चैट बॉक्स में जवाब आया- ग्रेट आइडिया, अपने दोस्तों को निमंत्रण दो, कुछ ज्यादा चैट करेंगे। कुल मिलाकर चैट जीपीटी के पास सूचनाओं का असीमित भंडार, पर है तो आर्टिफिशियल ही। जरूरी नहीं कि यह ऐप हर बार समस्या का समाधान करे, समस्या को कई बार वह दूसरी दिशा में भी मोड़ सकता है।