राजपथ - जनपथ
गलतफहमी में डल गई रेड ?
ईडी ने जिन कारोबारियों, नेताओं, और अफसरों के यहां रेड डाली है। वो एक-एक कर ईडी की कार्रवाई के खिलाफ मुखर हो रहे हैं। कुछ ऐसे भी हैं, जिनके यहां रेड नहीं डली, लेकिन उन्हें कथित तौर पर टॉर्चर किया गया। ऐसे चार लोग हाईकोर्ट भी गए हैं। उनकी याचिकाओं पर सोमवार को सुनवाई होगी।
नई खबर यह है कि एक-दो लोग ऐसे भी हैं जिनका कोल-परिवहन, और शराब के कारोबार से लेना-देना नहीं था। ऐसे लोगों के यहां गलतफहमी में रेड डल गई। अब ऐसे लोग भी जल्द याचिका दायर करने जा रहे हैं। कुल मिलाकर अब निगाहें कोर्ट के रूख पर हैं।
कप्तान पर भारी पड़े विधायक
कांग्रेस नेता के एक नजदीकी रिश्तेदार पुलिस में हैं, और अहम पोस्टिंग के लिए प्रयास कर रहे हैं। पहले उन्हें नए जिले में कप्तान बनाया भी गया था। लेकिन जल्द ही उनका स्थानीय विधायक से ठन गई। कप्तान ने तेवर दिखाए, और विधायक की हैसियत को नजरअंदाज कर उनके भांजे को जुआ खेलते पकड़ाए जाने पर भी नहीं छोड़ा। मगर विधायक महोदय भारी पड़ गए, और 6 महीने भी टिकने नहीं दिया। उन्हें बोरिया बिस्तर बांधने को मजबूर कर दिया। ट्रांसफर ऑर्डर निकलने के बाद रिश्तेदार ने हाथ-पांव भी मारे, लेकिन इसका कोई असर नहीं पड़ा। अब फिर से कप्तानों को बदलने का हल्ला हुआ है, तो फिर से कप्तानी के लिए कोशिश कर रहे हैं। मगर उन्हें एक मौका और मिलेगा या नहीं, यह देखना है।
रोहिंग्या तो मिले नहीं थे!
याद होगा कि तीन साल पहले से भाजपा के कुछ नेता अंबिकापुर में रोहिंग्या मुसलमानों को बसाने का आरोप लगाकर आंदोलन कर रहे थे। आरोपों से सरकार और प्रशासन को घेरा जा रहा था। तब स्वास्थ्य मंत्री व स्थानीय विधायक टीएस सिंहदेव ने कलेक्टर को जांच का आदेश दिया। जांच हुई तो पता चला कि दूसरे राज्यों से पिछले कई वर्षों के दौरान झारखंड, बिहार, यूपी और मध्यप्रदेश से आकर बसे हैं। इनमें छत्तीसगढ़ के ही सबसे ज्यादा है। इन लोगों ने महामाया पहाड़ी की भूमि पर अतिक्रमण किया है। और जानकारी मिली कि ये अतिक्रमण 2007 से 2016 के बीच हुए।
बिरनपुर में हुई हिंसक वारदात के बाद स्थिति धीरे-धीरे सामान्य हो जरूर रही है पर भाजपा की ओर से ऐलान किया गया है कि हाल के वर्षों में बाहर से आए लोगों की वह सूची बनाकर जारी करेगी, क्योंकि ये ही लोग हिंसक गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। जाहिर है बाहर सेआए लोगों की यह सूची एक खास समुदाय के लोगों की बनेगी। किसी भी राज्य के नागरिक को देश के किसी भी हिस्से में जाकर काम-धंधा करने का अधिकार देता है। ऐसे में अगर दूसरे राज्य के लोग यदि छत्तीसगढ़ में आ रहे हैं तो उसे मना कैसे किया जा सकता है। ऐसा तो हर राज्य में होता है। दूसरे राज्यों से जिनकी पीढिय़ां आईं, वे आज राजनीति, कारोबार और नौकरशाही में छत्तीसगढ़ में अच्छी-अच्छी जगह पर बैठे हैं। इनमें सभी दलों से जुड़े लोग हैं, बीजेपी में भी हैं।
यह सूची कैसी होगी, किसी का दूसरे राज्य से आकर बस जाना क्या गैरकानूनी है। क्या खास तौर पर उन्हें अपराधिक गतिविधियों में लिप्त होने के रूप में चिन्हित किया जा सकता है? ये सब सवाल खड़े हों न हों, पर कोशिश हो सकती है कि विधानसभा चुनाव तक मुद्दा सुलगता रहे।
टाइगर रिजर्व अभी कागजों में...
नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी से मंजूरी मिल जाने के बाद ऐसा माना जाने लगा कि तमोर पिंगला गुरुघासीदास टाइगर रिजर्व की श्रेणी में शामिल हो गया है, पर वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है। डेढ़ साल होने जा रहा है राज्य सरकार की ओर से अब तक इसका नोटिफिकेशन गजट में आया नहीं है। इसका मतलब यह है कि अभी इसे टाइगर रिजर्व का दर्जा नहीं मिला है। हाल ही में टाइगर प्रोजेक्ट के 50 साल पूरे होने पर पूरे देश में बाघों की संख्या बढऩे के आंकड़े आए। वन विभाग को इस मौके पर भी इसकी अधिसूचना जारी करने का ख्याल नहीं आया। कहीं रुकावट होने की गुंजाइश कम ही है क्योंकि टाइगर रिजर्व बनाने की मंजूरी खुद राज्य सरकार ने मांगी थी। वन विभाग का दावा है कि यहां 5 टाइगर विचरण करते हैं। मध्यप्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ में फैले 2049 वर्ग किलोमीटर कोर जोन व 780 वर्ग किलोमीटर बफर जोन वाला यह टाइगर रिजर्व अस्तित्व में आने के बाद, कहा जा रहा है कि एशिया का सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व होगा।