राजपथ - जनपथ
बिरनपुर में कई सवाल खड़े हैं
बेमेतरा जिले के जिस बिरनपुर गांव में अभी साम्प्रदायिक तनाव हुआ और तीन हत्याएं हुईं, वहां तनाव बना हुआ है। साहू परिवार के जिस नौजवान की पहले मौत हुई, उसके दशगात्र पर राजधानी से कुछ बड़े नेताओं का जाने का कार्यक्रम था, लेकिन वहां परिवार और समाज कुछ बातों को लेकर तनाव में है इसलिए नेताओं का जाना रद्द करना पड़ा। ऐसा पता लगा है कि साहू समाज के प्रदेश संगठन ने जिस तरह मुख्यमंत्री से बात करके मुआवजे या राहत राशि की घोषणा करवाई है, उससे परिवार सहमत नहीं है।
दूसरी तरफ बेमेतरा के इस गांव वाले विधानसभा क्षेत्र साजा के विधायक, और राज्य के एक सबसे वरिष्ठ मंत्री रविन्द्र चौबे भी अब तक अपने क्षेत्र के इस गांव बिरनपुर नहीं जा पाए हैं। प्रदेश के गृहमंत्री और साहू समाज के सबसे वरिष्ठ सत्तारूढ़ नेता ताम्रध्वज साहू भी अपने ही इलाके के इस गांव में अब तक नहीं जा पाए हैं।
इससे जुड़ा हुआ एक दूसरा मामला यह भी है कि साम्प्रदायिक तनाव के बीच ही मुस्लिम समाज के दो लोगों को जंगल में पीट-पीटकर मार डाला गया था, अब तक उनके लिए किसी राहत की घोषणा सरकार की तरफ से नहीं आई है, जिससे भी लोग हैरान हैं। रायपुर से मुस्लिम समाज के लोगों ने दो लाख रूपये इक_ा करके इस परिवार को मदद दी है, लेकिन सरकार की तरफ से कुछ नहीं हुआ है, इसे लेकर भी यह समझ नहीं आ रहा है कि सरकार इसे साम्प्रदायिक तनाव से जुड़ी हुई मौतें मान रही है, या नहीं।
बिरनपुर की जिम्मेदारी किस पर?
बिरनपुर कांड के बाद इलाके में सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने की कोशिशें चल रही हैं। प्रशासनिक अमला ग्रामीणों के साथ लगातार बैठकें कर रहा है। इन सबके बीच सरकार में घटना के कारणों, और परिस्थितियों पर मंथन भी हो रहा है।
बताते हैं कि सीएम को दो मंत्रियों ने अनौपचारिक चर्चा में घटना के पीछे पुलिस की लापरवाही की ओर इशारा किया। इसके बाद सीएम ने तुरंत फोन लगाकर पुलिस के एक आला अफसर को जमकर फटकार भी लगाई है।
चर्चा है कि कवर्धा के बाद साजा के बिरनपुर घटना के बाद आने वाले समय में इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति रोकने के लिए कई बड़े कदम उठाए जा सकते हैं। इसमें निचले स्तर तक पुलिस अमले में बदलाव होगा। बदलाव की शुरुआत आईपीएस अफसरों के फेरबदल से हो सकती है। देखना है कि आगे क्या कुछ होता है।
चुनाव के पहले झगड़ा शुरू
भाजपा के सिंधी नेता, और पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी, और चेम्बर अध्यक्ष अमर पारवानी के बीच कुछ समय पहले हुआ सुलह-समझौता टूट गया है। कम से कम हाल के श्रीचंद के फेसबुक पोस्ट को देखकर तो ऐसा ही लगता है।
बिरनपुर घटना के चलते विहिप ने कुछ दिन पहले छत्तीसगढ़ बंद बुलाया था। चेम्बर ने बंद का खुलकर समर्थन नहीं किया। बावजूद इसके बंद को सफल बताया जा रहा है। अब इस पर श्रीचंद ने पारवानी का नाम लिए बिना हमला बोला है। उन्होंने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा कि चेम्बर ने दाऊजी के चरणों में घुटने टेके। चेम्बर को समर्पित कर दिया दाऊजी के चरणों में।
चुनाव नजदीक आ रहे हैं, और रायपुर उत्तर से भाजपा टिकट के बड़े दावेदार अमर पारवानी पर श्रीचंद ने जिस तरह तीखे तेवर दिखा रहे हैं, उसे टिकट के झगड़े के रूप में देखा जा रहा है। संकेत साफ है कि लड़ाई आने वाले दिनों में और तेज होगी।
इसे भी गिन लीजिए विकास में
कोविड महामारी के नाम पर रेलवे ने यात्रियों को जिस तरह परेशान करना शुरू किया तो उससे अब तक छुटकारा नहीं मिल पाया है। रेलवे जोन के दर्जनों स्टापेज खत्म कर दिए गए। रेल टिकटों पर रियायतें बंद कर दी गईं। ऊपर से, स्पेशल के नाम पर किराया बढ़ाना, ‘अधोसंरचना विकास’ के नाम पर आए दिन घंटों यात्री गाडिय़ों का देर होना आम बात है। यात्रियों को रेलवे बोझ मानकर चलती है जो लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के विरुद्ध है। यात्री टिकटों में लिखा होता है कि आपके किराये का 57 प्रतिशत भारतीय रेलवे वहन करता है। मानो, मालभाड़े से होने वाली कमाई उसके अपने घर की हो।
बहरहाल जिक्र हो रहा है रेलवे की ओर से मनेंद्रगढ़ में रखे गए केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह के कार्यक्रम का। यहां उन्होंने हरी झंडी दिखाई। किसलिए? मनेंद्रगढ़ में चिरमिरी-अनूपपुर ट्रेन का स्टापेज शुरू होने पर। अब इसके पीछे की कुछ कहानी भी है। इस ट्रेन का पहले स्टॉपेज यहां था। महामारी के बाद रेलवे ने अंधाधुंध जो स्टापेज खत्म किए जिसमें इसे भी शामिल कर लिया गया। यह कोई सुपर फास्ट या शताब्दी एक्सप्रेस जैसी ट्रेन नहीं, पैसेंजर ही है। यह केंद्रीय राज्य मंत्री के इलाके में ही हुआ कि जिला मुख्यालय जैसे महत्वपूर्ण स्टेशन में अचानक इस जरूरी ट्रेन का रुकना बंद हो गया। जिला मुख्यालय होने से पहले भी मनेंद्रगढ़ आसपास के कई जिलों, शहरों और दर्जनों कस्बों का व्यापारिक केंद्र है ही। लोगों ने नाराजगी जताई। मंत्री से शिकायत की, रेलवे अफसरों को ज्ञापन दिए। बात नहीं सुनी गई तो थक-हारकर चार व्यवसायियों ने बीते मार्च माह में हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। मार्च के आखिरी हफ्ते में रेलवे को जवाब देना था, दाखिल नहीं हो पाया। अब कुछ दिन बाद इस मामले की फिर सुनवाई है। इस तरह से इस स्टॉपेज के लिए न तो मंत्री का कुछ किया हुआ दिखा है, न ही रेलवे अफसरों का दिल खुद से पसीजा है। स्टॉपेज शुरू करना एक तरह से उनकी मजबूरी थी, ताकि अगली सुनवाई में हाईकोर्ट में याचिका निराकृत हो जाए। वैसे तो बिना समारोह हर रोज रेलवे रोजाना किसी-किसी स्टेशन में स्टापेज देती रहती है। पर यहां स्टॉपेज शुरू ससमारोह हुआ, हरी झंडी दिखाते हुए मंत्री जी की तस्वीरें आईं। कार्यक्रम में उन्होंने रेलवे की तारीफ में ढेर सारी बातें की। चुनाव करीब हैं, सो मंच काम आया। पर, सरगुजा, कोरिया की रेलवे से जुड़ी अनेक बड़ी-बड़ी मांगों का अब तक कुछ नहीं हुआ है। लोग उम्मीद कर रहे हैं कि सांसद का प्रतिनिधित्व मंत्रिमंडल में है तो वे अपने प्रभाव से नागपुर, रायपुर तक सीधी ट्रेन सेवा शुरू कराएं। दशकों से रुके बरवाडीह, भटगांव और श्योपुर रेल लाइन का अधूरा काम कराएं।
एक खूबसूरत तस्वीर भाईचारे की
देश, छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ के किसी कोने के शहर गांवों की असली तस्वीर यही है। उस सुकमा की भी जहां कुछ अप्रिय घटनाएं हाल ही में हुई। जैन मुनि मणिप्रभ सुरेश्वर यहां के प्रवास पर हैं। मुस्लिम समाज के लोग उनका स्वागत कर रहे हैं।
यही है बस्तर का एंबुलेंस?
बस्तर में सडक़ और स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाने की कोशिश को नक्सल विरोध का सामना करना पड़ता है। कई बार ग्रामीणों को सामने रखकर नक्सली सडक़ और अस्पताल खोलने के खिलाफ आंदोलन करते हैं। ग्राम सभा से प्रस्ताव पारित नहीं होने देते। सडक़ों को मंजूरी यदि दे भी दी गई तो उसकी चौड़ाई ज्यादा नहीं हो इसका भी दबाव रहता है। दूर-दूर तक फैले बस्तर में कई नए जिले राज्य बनने के बाद से बन चुके पर जिला मुख्यालय से दूरी दर्जनों गांवों की कम नहीं हुई हैं। ऐसा ही एक गांव बोदली है, जो अपने बस्तर जिला मुख्यालय से 135 किलोमीटर दूर है। दंतेवाड़ा जिले में यह शामिल नहीं है, जबकि यह सिर्फ 35 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां का एक 14 साल का बालक कमलू पेड़ से गिरकर दो दिन पहले घायल हो गया। 108 पर फोन करके ग्रामीण एंबुलेंस का इंतजार करते रहे। 10 घंटे तक कोई रिस्पांस नहीं मिला। तब तक जड़ी बूटी के जरिये इलाज चलता रहा। जिला मुख्यालय बस्तर 135 किलोमीटर दूर, सडक़ें दुरुस्त नहीं। दंतेवाड़ा पास है पर दूसरा जिला है, वहां से एंबुलेंस आई नहीं। रास्ते में एबुंलेंस मिल जाएगी इस उम्मीद में कांवर में कमलू को लिटाकर परिजन सडक़ पर निकल गए। 9 किलोमीटर चलते रहे, कोई मदद नहीं मिली। आखिरकार, एक ने बारसूर जाकर प्राइवेट जीप बुक कराई और फिर कमलू को अस्पताल पहुंचाया गया। अब कमलू की स्थिति में सुधार है। पर सवाल उठता है कि विस्तृत रूप से फैले बस्तर में, जहां अब भी सडक़ें दुरुस्त नहीं हो पाई हैं, अस्पताल मीलों दूर हैं, वहां जिला मुख्यालय की बाधा अनिवार्य रूप से होनी चाहिए। क्यों नहीं स्वास्थ्य की आपात सेवाओं के लिए एक दूसरे जिले के बीच तालमेल होना चाहिए। यहां तो किसी तरह से प्राइवेट गाड़ी की व्यवस्था कर ली गई और घायल बालक की जान भी बचा ली गई लेकिन दूर-दूर बसे बीजापुर, नारायणपुर, सुकमा जिलों के सैकड़ों गांवों में कितने ही लोग इलाज के अभाव में दम तोड़ देते होंगे और उनकी खबर बाहर भी नहीं आती होगी।