राजपथ - जनपथ
सिंहदेव के करीबियों को झटका
स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के इलाके में कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान चल रही है। सिंहदेव के करीबी दो अधिवक्ता संतोष सिंह, और हेमंत तिवारी को सरकारी वकील हटाया गया, तो इसको लेकर चर्चा शुरू हो गई।
बताते हैं कि संतोष सिंह को भाजपा नेता आलोक दुबे की शिकायत पर हटाया गया। आलोक दुबे, सिंहदेव के खिलाफ काफी मुखर हैं। उन्होंने आरोप लगाया था कि संतोष सिंह ने जमीन संबंधी कई मामलों में गलत अभिमत देकर करोड़ों का वारा-न्यारा किया है। आलोक दुबे ने इसकी कलेक्टर से शिकायत की थी।
यही नहीं, हेमंत तिवारी को लेकर यह कहा गया कि वो सिंहदेव परिवार के जमीन से जुड़े एक प्रकरण पर शासन की पैरवी करने से खुद को अलग करने की गुजारिश की थी। इसके बाद सिंहदेव समर्थक दोनों सरकारी अधिवक्ताओं को हटा दिया गया है।
चर्चा तो यह भी है कि दोनों को पद मुक्त करने से पहले सिंहदेव से पूछा तक नहीं गया। अब जब दोनों अधिवक्ताओं को हटाया गया है, तो सिंहदेव समर्थक उन पर अप्रत्यक्ष रूप से कार्रवाई के रूप में देख रहे हैं। सिंहदेव ने तो अब तक कुछ नहीं कहा, लेकिन अंबिकापुर के राजनीतिक गलियारों में खूब चर्चा हो रही है।
रेरा का खेला जारी है
सरकार ने रेरा चेयरमैन, और सदस्य के लिए विज्ञापन निकाले थे। हाईकोर्ट के जस्टिस संजय के अग्रवाल की अध्यक्षता में समिति की बैठक हो भी गई। चयन समिति ने चेयरमैन के लिए हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स संजय शुक्ला, और रिटायर्ड पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) नरसिम्ह राव के नाम का पैनल सरकार को भेजा है। तकरीबन तय है कि संजय शुक्ला ही रेरा के चेयरमैन होंगे।
नई खबर यह है कि सदस्य के लिए नाम तो बुलाए थे। आधा दर्जन से अधिक नाम आए भी थे, लेकिन सदस्य की नियुक्ति की प्रक्रिया रोक दी गई है। रेरा में सदस्य के दो पद हैं। इनमें से एक पद पर धनंजय देवांगन की नियुक्ति हो चुकी है।
धनंजय को पहले अपीलेट अथॉरिटी में नियुक्त किया गया था। वहां से इस्तीफा देकर रेरा सदस्य के लिए आवेदन किया था, और वो सलेक्ट भी हो गए हैं। सरकार की मंशा साफ है कि रेरा में चेयरमैन के अलावा एक ही सदस्य रखा जाएगा। दूसरे सदस्य की फिलहाल जरूरत नहीं है। क्योंकि केसेस भी कम है। बहरहाल, रेरा चेयरमैन की नियुक्ति संभवत: इस माह के अंत में हो सकती है।
पुराना पंजीयन भी नया नहीं
नौकरी के लिए धक्के खाना तो आम बात है पर इन दिनों छत्तीसगढ़ के युवा बेरोजगारी भत्ता पाने के लिए ठोकरें खा रहे हैं। जितनी कड़ी शर्तें नौकरी के आवेदन के लिए नहीं हैं, उससे ज्यादा तो बेरोजगारी भत्ते के लिए है। मसलन, बेरोजगारी भत्ते की पात्रता केवल 35 वर्ष या उससे कम उम्र के लोगों को होगी। जबकि छत्तीसगढ़ के स्थानीय निवासी अलग-अलग वर्गों में 40 वर्ष तक नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं। महिलाओं को 5 साल की और छूट है। आवेदन करने वाले युवाओं का रोजगार कार्यालय में दो साल का जीवित पंजीयन होना जरूरी है। यहां पर जीवित शब्द पर ध्यान देना जरूरी है। रोजगार पंजीयन एक बार हो जाने के बाद उसका साल दर साल नवीनीकरण भी कराना होता है। कई युवा तीन चार साल या उससे पहले रोजगार कार्यालय में पंजीयन करा चुके थे लेकिन नवीनीकरण की तरफ ध्यान नहीं दिया। कोरबा के रोजगार कार्यालय में चक्कर काट रहे ऐसे ही युवाओं ने अपनी तकलीफ साझा की और कहा कि कोविड के कारण तो दो साल पहले लोग घरों से निकल नहीं रहे थे। बेरोजगारी भत्ता देने के नियम में यह बंदिश लगाई जाएगी, यह पता होता तो वे नवीनीकरण भी समय पर करा लेते। चुनावी घोषणा में यह बात नहीं थी। सीधे अब चार साल बाद भत्ते की घोषणा करने के बाद अजीब नियम बना दिया गया।
बीते साल मई महीने में सरकारी सेवा के लिए चुनी गई एक महिला अभ्यर्थी के मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने फैसला दिया था कि नौकरी की पात्रता के लिए रोजगार कार्यालय का जीवित पंजीयन होना जरूरी नहीं है। मध्यप्रदेश और दूसरे राज्यों में भी हाईकोर्ट के ऐसे फैसले आ चुके हैं। मगर, बेरोजगारों के लिए शायद मुमकिन नहीं कि वे हाईकोर्ट जा सकें।
नक्सलगढ़ में पूना वेश
नक्सलगढ़ बस्तर में लोगों का विश्वास जीतने के लिए वहां की पुलिस कई तरह की सामाजिक गतिविधियां चलाती है। इसी दिशा में एक पहल हुई है ‘पूना वेश’ की। इसका मतलब होता है नई सुबह। आदिवासी बच्चों को यहां प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कराई जाती है। अंतागढ़ में कल इस सेंटर का उद्घाटन हुआ। ऐसा सेंटर पहले ताड़ोकी और कोयलीबेड़ा में भी खोला जा चुका है। खास बात यह है कि कोचिंग के लिए खुद जिले के एसपी, डीएसपी, टीआई, डॉक्टर और विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल हो चुके युवा अपनी मुफ्त सेवाएं देते हैं।12वीं के बाद किस तरह करियर बनाया जा सकता है इसकी जानकारी भी छात्रों को दी जाती है।
वंदेभारत इतनी सुस्त ट्रेन
बिलासपुर नागपुर के बीच वंदेभारत ट्रेन 5.30 घंटे में 412 किलोमीटर की दूरी तय करती है। रास्ते में इसका कुल सात मिनट स्टापेज है। रायपुर, दुर्ग, गोंदिया में 2-2 मिनट और राजनांदगांव में 1 मिनट। वंदेभारत ट्रेनों की श्रृंखला शुरू की जा रही थी तो बताया गया कि यह 130 किलोमीटर तक की रफ्तार से दौड़ेगी। अब मध्यप्रदेश के एक आरटीआई कार्यकर्ता ने जानकारी हासिल की है, उससे मालूम हो रहा है कि पिछले साल ये ट्रेनें 84 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से दौड़ीं, इस साल तो 81 किलोमीटर की ही रफ्तार से चल रही हैं। बिलासपुर नागपुर ट्रेन की समय सारिणी देखने से ही मालूम हो जाता है कि इसका शेड्यूल ही करीब 82 किलोमीटर प्रति घंटे का है। इसकी टाइमिंग के दौरान कई ट्रेनों और मालगाडिय़ों को रोके जाने के बावजूद यह आजकल 15-20 मिनट की देरी से चलने लगी है। शताब्दी, राजधानी, दुरंतो आदि दूसरी तेज ट्रेनों की स्पीड भी करीब 70 किलोमीटर है। आम लोग जिन सुपर फास्ट ट्रेनों में सफर करते हैं उनकी औसत गति भी 53 किलोमीटर प्रति घंटा है। वंदेभारत ट्रेनों में किराया अधिक होने के कारण वैसे भी यात्रियों की रुचि नहीं ले रहे हैं। कुछ दिन पहले बिलासपुर नागपुर वंदेभारत को लेकर रिपोर्ट आई थी कि इसमें औसत 600 से 700 यात्री सफर कर रहे हैं जबकि सीटें 1140 हैं। अब स्पीड को लेकर हुए नए खुलासे का क्या असर होगा, देखना होगा। कोई आरटीआई कार्यकर्ता शायद आने वाले दिनों में यह भी पता करे कि इसके परिचालन से रेलवे को कुछ फायदा हो भी रहा है या तेजस की तरह भारी नुकसान। यह जानना जरूरी इसलिए है क्योंकि रेलवे हर टिकट में यह बताती है कि यात्री किराये का कितना प्रतिशत वह खुद वहन कर रहा है।