राजपथ - जनपथ
कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करोगे, तो...
विधानसभा चुनाव में पांच माह बाकी रह गए हैं। मगर भाजपा के बड़े नेता पिछली बुरी हार को अब तक भुला नहीं पा रहे हैं। रह-रहकर बैठकों में हार पर चर्चा हो जाती है। कुछ इसी तरह चर्चा दुर्ग की संभागीय बैठक में भी हुई। प्रदेश प्रभारी ओम माथुर ने बैठक में कहा बताते हैं कि मुझे उत्तरप्रदेश जैसे बड़े राज्य का प्रभार दिया गया था। मैंने वहां काम किया। इसके बाद बड़े राज्य गुजरात, और फिर मध्यप्रदेश में भी अपने दायित्व का निर्वहन किया।
माथुर ने आगे कहा कि उन्हें छोटे राज्य छत्तीसगढ़ का प्रभार दिया गया है। यहां भी वो काम कर रहे हैं। मगर उन्हें इस बात की पीड़ा महसुस हो रही है कि 15 साल की सत्ता में रहने के बाद सरकार, और संगठन कार्यकर्ताओं के आक्रोश को कैसे भांप नहीं पाये, और पार्टी सिर्फ 15 सीटों पर ही सिमटकर रह गई। उन्होंने चेताया कि कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करोगे, तो बरसों तक सरकार में नहीं आ पाओगे। माथुर की इस टिप्पणी की पार्टी हल्कों में खूब चर्चा हो रही है।
न आने की वजहें और मतलब
दिवंगत पूर्व सीएम अजीत जोगी की शनिवार को जयंती के मौके पर सर्वधर्म प्रार्थना सभा में अच्छी खासी भीड़ उमड़ी। वैसे तो सीएम भूपेश बघेल को भी प्रार्थना सभा में आना था, और वो मुख्य अतिथि भी थे। मगर तबियत ठीक नहीं होने की वजह से वो नहीं आ पाए। अलबत्ता, सरकार के मंत्री टीएस सिंहदेव, डॉ. शिव डहरिया, मोहम्मद अकबर, और सांसद ज्योत्सना महंत समेत कई पूर्व विधायक भी सभा में शामिल होकर जोगीजी को श्रद्धांजलि दी।
प्रार्थना सभा में हिस्सा लेने जोगी परिवार के कभी बेहद करीबी रहे मेयर एजाज ढेबर भी डेढ़ दशक बाद सागौन बंगले पहुंचे। भाजपा से भी नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल समेत आधा दर्जन नेता प्रार्थना सभा में शामिल हुए। लोगों की निगाहें उनकी अपनी पार्टी के विधायक धर्मजीत सिंह, और प्रमोद शर्मा को ढूंढ रही थी, लेकिन वो नहीं पहुंचे। धर्मजीत की जोगी परिवार से दूरियां जग जाहिर है, और दोनों विधायकों ने एक तरह से पार्टी भी छोड़ दी है।
प्रार्थना सभा के पहले जोगी परिवार के कांग्रेस में शामिल होने की अटकलें भी लगाई जाती रही है। यह भी चर्चा रही कि कोटा से रेणु जोगी की जगह कांग्रेस की टिकट पर ऋचा जोगी चुनाव लड़ सकती हैं। रेणु जोगी और अमित कांग्रेस का प्रचार करेंगे, लेकिन सीएम चाहे किसी भी कारण से न आ पाए हो, जोगी परिवार के कांग्रेस में शामिल होने की अटकलों पर फिलहाल विराम लग गया है।
जो बाघ का निवाला छीन ले...
उदंती सीतानदी टाइगर में नक्सली गतिविधियों के चलते विकास की गति ही धीमी नहीं है, बल्कि यहां जाने में पर्यटक भी कम दिलचस्पी लेते हैं। इसका एक बड़ा हिस्सा सिहावा विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है जहां के ग्रामीणों ने सडक़, बिजली जैसी सुविधाओं की मांग पर मार्च माह में एक बड़ी रैली भी निकाली थी। पर इन दिनों यहां पहुंचने वालों के लिए हार्नबिल पक्षी का आकर्षण बना हुआ है, जो पिछले कुछ महीनों से बड़ी संख्या में दिखाई दे रहे हैं। ये महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश की ओर से आए हो सकते हैं क्योंकि दक्षिणी राज्यों में ये बहुत पाए जाते हैं। नगालैंड में भी पाया जाता है। यहां इस पक्षी के नाम पर एक सालाना उत्सव भी होता है। उदंती में सैलानियों को इनका दीदार हो सके, इसके लिए वन विभाग उनके साथ जानकार मैदानी कर्मचारियों को भेजता है। सीतानदी अभयारण्य में बीते विश्व वन्यजीव दिवस के दौरान इस अभयारण्य की ट्रैकिंग के बाद पक्षियों के 152 प्रजातियों की पहचान की गई थी, जो संभवत: किसी दूसरे अभयारण्य से अधिक है। हार्नबिल का हिंदी नाम धनेश भी है, पर ज्यादा चलन में अंग्रेजी नाम ही है। सींग जैसा आकार और मजबूत चोंच होने के कारण इसका यह नाम पड़ा। इसी कठोर चोंच के भरोसे वह बाघ के मुंह से निवाला छीनकर फुर्र भी हो जाती है। ([email protected])