राजपथ - जनपथ
एक मई को पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का भी जन्मदिन था। वे भाजपा के बड़े लीडर हैं, और मिलनसार भी हैं। ऐसे में उन्हें जन्मदिन की बधाई देने सुबह से रात तक बंगले में कार्यकर्ताओं का मजमा लगा रहा। खाने-पीने के तमाम इंतजाम थे। बावजूद इसके वहां पहले जैसी रौनक गायब थी। हर कोई एक-दूसरे से दिग्गज आदिवासी नेता नंदकुमार साय के पार्टी छोडऩे पर बतियाते नजर आ रहे थे।
एक-दो अनुशासित कार्यकर्ता तो साय का हिसाब-किताब लेकर बैठे थे। वो यह बताने से नहीं चूक रहे थे कि नंदकुमार साय भाजपा में 32 साल तक अलग-अलग पदों पर रहे। पार्टी ने उनका पूरा सम्मान दिया। बावजूद इसके पार्टी छोडऩा समझ से परे है। यह भी तर्क दिया जा रहा था कि साय का कोई जनाधार नहीं रह गया है। उनकी पुत्री, और बहू तक पंचायत चुनाव हार चुकी है। मगर कई लोग ऐसे भी थे जो यह मानकर चल रहे थे कि साय के जाने से पार्टी को बहुत डैमेज हुआ है, और इसे कंट्रोल करने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। कुछ लोग तो साय के पार्टी छोडऩे के लिए रमन सिंह, और सौदान सिंह को जिम्मेदार ठहरा रहे थे।
बृजमोहन के कई समर्थक तो चिंतित दिखे, और कुछ तो उन्हें बधाई देते वक्त साय का पार्टी छोडऩे पर प्रतिक्रिया जानने के लिए उत्सुक थे। बृजमोहन कहते सुने गए कि जशपुर में उनकी पार्टी नेताओं से बात हुई है, और दिलासा दे रहे थे कि उनके जाने से कोई नुकसान नहीं होगा। मगर इस बात पर आम राय थी कि नंदकुमार साय चुनाव से पहले भाजपा का माहौल खराब कर गए।
शहीद तो ड्राइवर भी हुआ
दंतेवाड़ा के अरनपुर में आईईडी ब्लास्ट कर जिस गाड़ी को उड़ाया गया, उसे एक निजी वाहन चालक धनीराम यादव चला रहा था। डीआरजी ने यह गाड़ी किराये पर ली थी। नक्सली पुलिस वाहनों को पहचान कर लेते हैं, इसलिए निजी वाहनों को सर्चिंग और जवानों को लाने-ले-जाने के लिए किराये पर लिया जाता है। इन गाडिय़ों को लेकर चलने वाले ड्राइवरों को भी उतना ही खतरा होता है, जितना जवानों को। पर इनकी जोखिम का दर्जा समान नहीं माना जाता। पुलिस विभाग का ड्राइवर यदि शहीद होता तो उसे बाकी जवानों के परिजनों के बराबर मुआवजा मिलता। इस घटना में शहीद प्रत्येक जवान के परिवार को 35 लाख रुपये मिले हैं, पर धनीराम के परिवार को केवल 5 लाख। धनीराम की पत्नी को इस बात से ऐतराज है। बस्तर में मीडिया से उन्होंने कहा कि जब पति को भी तिरंगा में लिपटाया गया और सलामी दी गई तो मुआवजा भी बराबर मिलना चाहिए।
निजी वाहनों में पुलिस बल को लेकर धुर नक्सल क्षेत्र में घुसते रहे दूसरे ड्राइवरों का कहना है कि हम जाने से मना करें तो हमारे साथ पिटाई भी की जाती है। निजी वाहनों के मालिक कोई और होते हैं, जिन्हें जान का खतरा तो होता ही नहीं, गाड़ी को नुकसान हो तो क्लेम भी मिल जाता है। मृतक बलराम यादव तो करीब 21 साल से अपने मालिक की अलग-अलग गाडिय़ां चलाता रहा है। उसे कुल 7 हजार वेतन मिलते थे। कुछ भत्ते आदि मिल जाते थे, जिससे घर चलता था। अब धनीराम अपने पीछे न केवल पत्नी को बल्कि दो बच्चे भी छोड़ गया है। एक बेटी है। उसका करियर संवारने का वक्त आ चुका, वह 11वीं कक्षा में पढ़ रही है। इस पांच लाख से उन्हें भविष्य सुधारने में कितनी मदद मिलेगी, कहा नहीं जा सकता। बस्तर में नक्सल मोर्चे के खिलाफ नेतृत्व कर रहे पुलिस अफसर शायद अब इस बारे में सोचें कि वे साथ के सिविलियन्स के साथ कोई अनहोनी हो जाती है तो उसके परिवार को आर्थिक, सामाजिक मदद में भेदभाव न हो।
कलेक्टर की 10 माह में विदाई
कुछ कलेक्टर किसी जिले में थोड़े दिन ही काम करते हैं, पर वहां अपनी छाप स्थायी रूप से छोड़ जाते हैं। बलौदाबाजार-भाटापारा से आईएएस रजत बंसल का तबादला हो गया। वे पिछले साल जून के आखिरी हफ्ते में बस्तर से यहां आए थे। वहां नागरिकों ने एक विदाई समारोह उनके लिए रखा था, जिसमें उन्होंने गाना भी गाया था- रुक जाना नहीं...। बलौदाबाजार में कल जब नये कलेक्टर चंदन कुमार को पदभार सौंपकर वे वापस रायपुर रवाना हो रहे थे तो पलारी मुख्य सडक़ पर उनकी विदाई के लिए भावुक भीड़ खड़ी थी। यह देखकर बंसल गाड़ी से उतरे। सबसे बुके, फूल स्वीकार किया। उन्हें एक सिद्धेश्वर भगवान की प्रतिमा भी भेंट की गई। भीड़ के बीच से अमेरा ग्राम की सोनी कुर्रे आगे आईं, उसने कहा कि आपकी कोशिशों से मुझे सीएम साहब ने बेटी के लीवर ट्रांसप्लांट के लिए 22 लाख रुपये दिए, अब मेरी बेटी स्वस्थ हो गई है। ऐसे ही कई लोगों ने अपने अनुभव बताए कि उनसे किस तरह मदद मिली। बंसल ने कहा- मुझे भी यहां से जाने का दुख तो हो रहा है, पर शासकीय जिम्मेदारी है। यहां काम करना अच्छा लगा। कभी भी कोई जरूरत हो रायपुर आकर मिलें।
बहुत कम अफसर होते हैं जो आम लोगों के दिलों में जगह बना पाते हैं। अपने प्रदेश के कुछ जिलों में तो ऐसे भी शीर्ष अधिकारी देखे गए हैं जो नागरिकों, संगठनों के प्रतिनिधियों से दुर्व्यवहार की वजह से चर्चा में होते हैं। हाल के वर्षों में भी ऐसा हुआ है।
हाफ योजना का दुरुपयोग?
क्या बिजली बिल हाफ योजना का लाभ लेने के लिए ऐसा भी किया जा रहा है कि एक ही घर में चार-पांच मीटर लगवा लिए जाएं ताकि रीडिंग 400 यूनिट से ज्यादा न आए। सोशल मीडिया पर राजधानी रायपुर के एक पेज में इस तरह की कुछ तस्वीरों के साथ यही दावा किया जा रहा है। एक बिल्डिंग में यदि अलग-अलग लोगों के कई फ्लैट्स या ऑफिस हों तो एक ही दीवार पर कई मीटर लगा होना तो गलत नहीं है, पर यदि एक ही घर में ऐसा किया जा रहा है तो सीएसपीडीसीएल के मैदानी कर्मचारियों की मिलीभगत से ही यह मुमकिन है।
सभी मौजूदा एमएलए को टिकट?
कांग्रेस ने मौजूदा विधायकों का संगठन के जरिये परफार्मेंस का पता किया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी सर्वे कराया था। प्रदेशभर में चल रही भेंट मुलाकात का एक मकसद यह भी है। इसके चलते कई मौजूदा विधायकों को चिंता है कि अगली बार उन्हें टिकट मिलेगी या नहीं। दूसरी तरफ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने दूसरा ही बयान दे दिया है। उनका कहना है कि वे तो चाहते हैं कि सभी मौजूदा 71 विधायकों को टिकट मिले। मरकाम ने यह कहा तो इसका मतलब यह है कि वे अपनी टिकट की बात भी कर रहे हैं। मरकाम का यह भी कहना है कि इस बार 75 सीटों का टारगेट लेकर चुनाव लड़ेंगे। इन दोनों बातों को जोडक़र देखें तो कहा जा सकता है कि सभी विधायकों ने अच्छा काम किया। सर्वे की जरूरत ही नहीं।( [email protected])