राजपथ - जनपथ
दिग्गज आदिवासी नेता नंदकुमार साय के झटके से भाजपा उबर नहीं पा रही है। हल्ला है कि केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अरुण साव को फोन पर डांट पिलाई है। साव मंगलवार को लेह-लद्दाख में थे, इसलिए इसकी पुष्टि नहीं हो पाई। साय प्रकरण के बाद तो संगठन के प्रमुख रणनीतिकार ओम माथुर और अजय जामवाल की बोलती बंद हो गई है। पवन साय तो डैमेज कंट्रोल के लिए जशपुर निकल गए हैं।
बात यहीं खत्म नहीं होती है। पार्टी के शीर्षस्थ नेताओं ने पलटवार के लिए प्लान तैयार किया है। चर्चा है कि कांग्रेस के किसी प्रभावशाली नेता को भाजपा में शामिल होने के लिए तैयार किया जा सकता है। कहा जा रहा है कि शाह खुद इन सब चीजों को देख रहे हैं। कुछ लोग दावा कर रहे हैं कि कांग्रेस के एक बड़े नेता से अमित शाह की चर्चा हो चुकी है। हल्ला यह भी है कि सब कुछ ठीक रहा, तो कर्नाटक चुनाव के बाद बड़ा धमाका हो सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
साय को रोकना नहीं हो पाया क्यूँकि
नंदकुमार साय एपिसोड में मान मनौव्वल का खूब ड्रामा भी चला। पवन साय, और एक-दो अन्य नेता भी साय बंगले पहुंच गए थे। अमित चिमनानी जैसे कई तो ऐसे थे जिन्हें साय पहचानते तक नहीं हैं।
चर्चा है कि संगठन नेताओं ने सबसे पहले रेप के आरोपों से घिरे, और हाल ही में जमानत पर छूटे पूर्व ओएसडी को दूत बनाकर साय के पास भेजा गया था। साय बंगले के बाहर पुलिस फोर्स देखकर ओएसडी की अंदर जाने की हिम्मत नहीं हुई।
बताते हैं कि भाजपा नेताओं ने साय को रोकने के लिए उनके पोते से सोशल मीडिया पर बयान दिलवा दिया कि सायजी पार्टी में ही रहेंगे। बस अज्ञात जगह पर मौजूद साय को इस बात की जानकारी हुई, तो उन्होंने अपने पोते को फोन पर जमकर फटकार भी लगाई।
मान मनौव्वल के तनाव भरे माहौल के बीच पार्टी के नेता हंसी-मजाक भी खूब कर रहे थे। एक नेता ने चुटकी ली कि साय इसलिए आसानी से चले गए कि वो इनकम टैक्स रिटर्न नहीं भरते हैं। इनकम टैक्स पेयी होते, तो आयकर-ईडी की टीम ढूंढकर ले आती। सोशल मीडिया में एक टिप्पणी आई कि साय के कांग्रेस प्रवेश से उनके बाल और अमरजीत भगत की मूंछ, दोनों बच गई।
जंगल में बेचैनी बहुत है
मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के इतिहास में पहला मौका है जब एपीसीसीएफ स्तर के अफसर श्रीनिवास राव को फारेस्ट मुखिया बनाया गया है। इससे उनसे सीनियर अफसरों की नाराजगी स्वाभाविक है। इसका नजारा हेड ऑफ फारेस्ट फोर्स के पद से रिटायर होने वाले संजय शुक्ला के विदाई समारोह में भी देखने को मिला। श्रीनिवास से सीनियर पीसीसीएफ अतुल शुक्ला, सुधीर अग्रवाल, अनिल राय, और तपेश झा समारोह से दूर रहे। उन्होंने अलग-अलग व्यक्तिगत तौर पर संजय से मिलकर उन्हें रेरा चेयरमैन के नए दायित्व के लिए बधाई भी दी।
आरक्षण के आदेश पर सभी खुश क्यों?
सितंबर 2022 में आए हाईकोर्ट के उस आदेश से हर कोई असमंजस में था जिसमें 58 प्रतिशत आरक्षण के सन् 2012 के प्रावधान को असंवैधानिक ठहराये जाने के बाद प्रदेश में आरक्षण की स्थिति शून्य हो गई थी। इस आदेश में यह साफ नहीं था कि 58 प्रतिशत आरक्षण नहीं होगा तो कौन सा होगा? नतीजतन भर्तियों, प्रमोशन और एडमिशन पर रोक लग गई। इससे युवाओं, छात्रों में असंतोष बढ़ता जा रहा था। राज्यपाल के हस्ताक्षर नहीं करने को कांग्रेस ने भाजपा के खिलाफ मुद्दा जरूर बना रखा था लेकिन डेड लॉक की स्थिति बनने से सरकार के अलावा उन लोगों में भी बेचैनी थी जो आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाने के विधेयक को पारित होते देखना चाहते थे। प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने इस स्थिति की भांपते हुए अक्टूबर महीने में हाईकोर्ट के आदेश पर स्थगन के लिए अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर स्थगन के बाद अब जरूर यह स्थिति बन गई है कि 58 प्रतिशत के आधार पर भर्तियां हो सकेंगी। भाजपा ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जो प्रतिक्रिया दी है उससे यही प्रतीत होता है कि सन् 2012 में जो प्रावधान उसकी सरकार ने किये थे उसे सुप्रीम कोर्ट ने सही मान लिया है। पर, वस्तुस्थिति यह नहीं है। कानून के जानकारों ने आदेश को पढक़र यह साफ किया है कि भाजपा की यह दलील गलत है। दरअसल, सरकार की इस चिंता को सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया है कि भर्तियां रुकने से जन-शक्ति का अभाव रोजमर्रा के प्रशासनिक कामकाज में दिक्कतें खड़ी कर सकता है। 58 प्रतिशत आरक्षण सही है, यह तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा ही नहीं है। इस बिंदु पर तो ग्रीष्म अवकाश के बाद सुनवाई होनी है। पर इस आदेश ने सभी को अपने-अपने हिस्से की प्रसन्नता दे दी है। राज्यपाल शायद यह सोच रहे हों कि अब विधेयक पर हस्ताक्षर का दबाव कम रहेगा। कांग्रेस यह सोच रही है कि चुनाव के समय एक भी भर्ती नहीं हो पा रही थी, युवाओं की नाराजगी से बच गए। भाजपा को खुशी है कि उनके शासनकाल में तय किए गए 58 प्रतिशत पर ही भर्ती हो रही है, ये बात वे मतदाताओं को बता सकेंगे। युवा और छात्र इसलिये खुश हैं कि प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए उनकी तैयारी व्यर्थ नहीं जाएगी।
गीली सडक़ पर धूल की खोज...
बारिश तो अपने साथ धूल बहा ले गई, सडक़ धुल चुकी है। पर पता नहीं रायपुर की सडक़ पर यह भारी-भरकम झांकी क्यों उतारी गई है। तस्वीर मंगलवार की ही है।
हादसों को बुलावा देते आवारा पशु
एक भारतीय के साथ यूरोप से घूमने आया मित्र रायपुर एयरपोर्ट से बस्तर के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग पर पहुंचा। गाय-भैंसों का बड़ा झुंड बीच सडक़ पर इत्मीनान बैठा हुआ था। पहली बार भारत आया यूरोपियन मित्र सीट से उछल पड़ा। गाड़ी रुकवाई और बैग से कैमरा निकालकर फोटो खींचना चालू कर दिया। दोस्त ने पूछा, ऐसी क्या विशेष बात देखी। उन्होंने कहा जानवरों में तो कोई विशेष अंतर नहीं है लेकिन मैंने अपने जीवन में इस तरह से राष्ट्रीय राजमार्ग को कब्जाए हुए जानवरों का झुंड कभी नहीं देखा। इस वाकये का जिक्र बस्तर के एक किसान नेता ने अपने ब्लॉग में किया है।
बालोद में बीती रात एक आवारा पशु को बचाने की कोशिश में कार ट्रक से जा भिड़ी। तीन को जान गंवानी पड़ी और इतने ही लोग घायल भी हो गए। आवारा पशुओं के चलते हो रही दुर्घटनाओं की संख्या इतनी अधिक है कि अब हाईवे पर भी लोग रफ्तार में गाड़ी चलाने से बचते हैं। पिछले साल जारी पशुधन जनगणना रिपोर्ट में बताया गया था कि में करीब 25 लाख आवारा पशु सडक़ों पर हैं। ये दुर्घटनाओं के बड़े कारण हैं। एक और रिपोर्ट में बताया गया था कि कोरोना महामारी से ज्यादा पशुओं के सडक़ में होने के चलते हुई दुर्घटनाओं में लोग मारे गए।
छत्तीसगढ़ में हजारों गौठान बनाए गए हैं। रोका-छेका अभियान भी चलता है। इन्हें ग्रामीणों की आमदनी से जोड़ा गया है, पर समस्या हल नहीं हो रही है। आवारा पशुओं को लेकर छत्तीसगढ़ की तरह मध्यप्रदेश में भी समय-समय पर हाईकोर्ट की फटकार पड़ती है। इसके बाद वहां देसी गाय पालने पर 900 रुपये प्रतिमाह अनुदान देने का ऐलान सरकार ने कर दिया है। पर सिर्फ गायों को अनुदान देने से क्या होगा, गोवंश में दूसरे जानवर भी हैं। छत्तीसगढ़ में गौठानों को सशक्त बनाने के लिए सरकारी सहायता दी ही जा रही है। यूपी में भी लगभग छत्तीसगढ़ की तरह कार्यक्रम चल रहे हैं। वहां योगी सरकार ने गौठानों में सीएनजी बनाने तक का प्लान तैयार किया है। पर आंकड़ा बताता है कि 11.84 लाख आवारा पशु सडक़ों पर हैं, जो राजस्थान के 12.72 लाख पशुओं से थोड़ा कम है। छत्तीसगढ़ का स्थान मध्यप्रदेश और गुजरात के बाद पांचवां है। यहां 1 लाख 85 हजार पशु सडक़ों पर हैं। गौठानों या पशुपालन केंद्रों पर बनाई गई योजनाओं का जमीन पर ठीक तरह से क्रियान्वयन हो तो समस्या पूरी नहीं तो कुछ हद तक तो दूर हो ही सकती है। बजट प्रत्येक राज्य ने इस समस्या से निपटने के लिए भारी-भरकम रखा है, पर सडक़ों पर डेरा डाल बैठे पशुओं की संख्या लाखों में हो तो समझ सकते हैं कि बजट का सदुपयोग भी हो रहा है, या नहीं। ([email protected])