राजपथ - जनपथ
मन की बात में मनमानी की बात
चर्चा है कि पीएम नरेंद्र मोदी के मन की बात कार्यक्रम को लेकर भाजपा के अंदरखाने में खूब तमाशा हुआ है। प्रदेश में मन की बात सुनने के लिए 16 जगहों पर विशेष इंतजाम किए गए थे। यहां पार्टी के बड़े नेताओं की तैनाती की गई थी।
प्रदेश प्रभारी ओम माथुर, और प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव ने मन की बात सुनने आरंग के भानसोज गांव पहुंचे थे। यहां बड़ी संख्या में जिले के कार्यकर्ता भी थे। बताते हैं कि मन की बात कार्यक्रम के कवरेज दूरदर्शन की टीम को भानसोज पहुंचना था। मगर ऐसा नहीं हुआ, और दूरदर्शन टीम बालोद के कार्यक्रम का कवरेज कर चली गई। बालोद में मन की बात सुनने कुछ कारोबारी और स्थानीय नेता ही थे।
सुनते हैं कि भानसोज के कार्यक्रम का कवरेज नहीं होने पर अरुण साव ने दूरदर्शन के लोगों से जानकारी चाही, तो पता चला कि दिल्ली से बालोद जाने के लिए निर्देशित किया गया था। चर्चा है कि साव ने दिल्ली दूरदर्शन मुख्यालय में संपर्क किया, तो पीएमओ से निर्देश मिलने की बात कही गई।
बाद में साव ने माथुर, और अजय जामवाल से चर्चा की। और कवरेज का स्थान बदलने पर ऐतराज किया, तो वस्तु स्थिति की जानकारी लेने की कोशिश की गई। यह बात उभरकर सामने आई कि प्रदेश के एक छुटभैय्ये नेता ने एक पूर्व संगठन की शह पर अपने संपर्कों का उपयोग कर दूरदर्शन के कवरेज का स्थल ही बदलवा दिया।
चर्चा है कि साव ने बड़े नेताओं के समक्ष इस पर कड़ी आपत्ति जताई है। हल्ला तो यह भी है कि बाद में छुटभैय्ये नेता ने अपने कृत्य के लिए प्रदेश अध्यक्ष से माफी भी मांगी है। इस पूरे वाक्ये की पार्टी के अंदर खाने में खूब चर्चा हो रही है।
सभी के विदिशा जाने की तैयारी
प्रदेश भाजपा में ताकतवर रहे संगठन मंत्रियों के यहां विवाह समारोह चल रहा है। इसमें पार्टी के दिग्गज नेताओं का जमावड़ा है। इसके बीच नंदकुमार साय एपिसोड की चर्चा भी हो रही है।
पिछले दिनों प्रदेश भाजपा के पूर्व महामंत्री (संगठन) रामप्रताप सिंह के पुत्र, और पुत्री का विवाह समारोह था। रामप्रताप जशपुर के रहवासी हैं, और पार्टी छोडक़र जाने वाले दिग्गज आदिवासी नेता नंदकुमार साय भी जशपुर के ही हैं।
बताते हैं कि रामप्रताप सिंह भी नंदकुमार साय को निमंत्रण भेजा था, लेकिन वो नहीं आए। अलबत्ता, पवन साय तीन दिन तक जशपुर में डेरा डाले रहे। इस दौरान नंदकुमार साय के पार्टी छोडऩे से उपजे हालात पर स्थानीय नेताओं से चर्चा करते रहे।
इसी तरह, छत्तीसगढ़ भाजपा संगठन के सबसे प्रभावशाली नेता सौदान सिंह के भतीजे का 10 तारीख को विवाह है। विवाह विदिशा में है। सौदान सिंह ने तमाम प्रमुख नेताओं, और विधायकों को शादी में शामिल होने का न्योता दिया है। तकरीबन सभी प्रमुख नेताओं के विदिशा जाने की तैयारी भी है। चुनाव नजदीक हैं, और तमाम प्रमुख नेता साथ होंगे, तो कुछ न कुछ बात तो होगी ही।
तस्वीरें दो, हालत एक जैसी...
ये दो तस्वीरें हैं। पहली तस्वीर जिसमें महिला ने चेहरे को साड़ी से ढंका है, 2017 की है। दूसरी तस्वीर कल की है। दोनों ही कांकेर जिले की है। पहली तस्वीर में एक शव है, जिसे खाट पर लिटाकर परिजन अस्पताल से वापस ले जा रहे हैं, क्योंकि उन्हें मुक्तांजलि गाड़ी नहीं मिली। दूसरी तस्वीर में मरीज है, जिसे भी खाट पर ही लिटाकर 8 किलोमीटर दूर अस्पताल पहुंचाया गया, क्योंकि उन्हें एंबुलेंस नहीं आ सकी। इन 6 सालों में ग्रामीण, खासकर आदिवासी बाहुल्य इलाकों में स्वास्थ्य सेवा में कितना सुधार हुआ है, एक अंदाजा तो लगा ही सकते हैं।
आरक्षण विधेयक पर नया पेंच
सन् 2023 के विधानसभा और करीब एक साल बाद होने वाले 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा विरोधी दलों की कोशिश वोटों के हिंदुत्व या राष्ट्रवाद के नाम पर ध्रुवीकरण होने रोकने की है। बीते एक दशक से भाजपा सरकारों की तमाम नाकामियों को विपक्ष ने मुद्दा बनाया, पर असरदार नहीं रहे। जातिगत गणना या सर्वेक्षण पर जोर इसी का विकल्प है।
बिहार में मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने भाजपा की जगह राष्ट्रीय जनता दल से नाता जोड़ा तो केंद्र पर जातिगत सर्वेक्षण नहीं कराने का आरोप लगाया। सरकार से भाजपा को अलग करने के बाद बिहार में सर्वेक्षण शुरू हुआ। कुछ ही दिन इसका दूसरा चरण पूरा होना था लेकिन इस पर हाईकोर्ट ने तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी। रोक अंतरिम है, अगली सुनवाई जुलाई में रखी गई है। जातिगत जनगणना के विरोध में दी गई अनेक दलीलों में से एक यह भी थी कि यह केंद्र सरकार का काम है, राज्य जनगणना नहीं करा सकती। राज्य सरकार की यह दलील कोर्ट ने नहीं मानी कि यह जनगणना नहीं सिर्फ सर्वेक्षण है।
कर्नाटक चुनाव में राहुल गांधी और अन्य कांग्रेस नेताओं की जनसभाओं में-जिसकी जितनी आबादी, उसकी उतनी भागीदारी की बात कही जा रही है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस केंद्र से जातिगत गणना के साथ जनगणना कराने की मांग कर चुकी है। केंद्र सरकार शायद ध्रुवीकरण में बिखराव की आशंका के चलते नहीं करा रही है। जब जनगणना की घोषणा हो तब पता चल सकेगा कि वह क्या जातियों की अलग-अलग गणना भी कराएगी, जैसा कि कई राज्यों में विपक्ष की मांग है। अभी भी अगर जनगणना की तैयारी शुरू कर ली जाए तो रिपोर्ट आने में दो साल लग जाएंगे।
पटना हाईकोर्ट की रोक के बाद यह तय है कि ऐसी कोई शुरूआत दूसरे राज्यों की ओर से गई तो उसे भी कोर्ट में चुनौती मिल जाएगी। आरक्षण पर छत्तीसगढ़ विधानसभा में पारित विधेयक पर राज्यपाल का हस्ताक्षर नहीं होने का एक आधार यह भी बताया गया है कि आरक्षण के समर्थन में स्पष्ट आंकड़े नहीं है। ऐसे आंकड़े जुटाने के लिए अब यदि छत्तीसगढ़ सरकार अपनी ओर से बिहार की तरह कोई कोशिश करेगी तो उसे भी आसानी से चुनौती दे दी जा सकेगी। यानि आरक्षण विधेयक के राजभवन से बाहर आने की निकट भविष्य में कोई संभावना नहीं दिखती, पर चुनाव के लिए यह एक बड़ा मुद्दा जरूर बना रहेगा।
कांकेर में सडक़ किनारे दीवार पर लिखा हुआ यह नोटिस शायद शादी-ब्याह में नाचने वालों
के लिए है। इसे फेसबुक पर बस्तर के एक पत्रकार तामेश्वर सिन्हा ने पोस्ट किया है।