राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : दो राज्यों में मारपीट की नौबत
06-May-2023 4:06 PM
राजपथ-जनपथ : दो राज्यों में मारपीट की नौबत

दो राज्यों में मारपीट की नौबत 

महानदी जल विवाद न्यायाधिकरण पिछले दिनों छत्तीसगढ़ दौरे पर था। न्यायाधिकरण के सदस्य के अलावा विधिक सलाहकार, और दोनों ही राज्य ओडिशा, और छत्तीसगढ़ के आला सिंचाई अफसर भी थे। दौरे की शुरुआत महानदी के धमतरी जिले स्थित उद्गम स्थल से शुरू हुई। कई मौके ऐसे आए जब अपना-अपना पक्ष रखते दोनों राज्यों के अफसर भिड़ गए, और उनके बीच तू-तू, मैं-मैं भी हुई। 

सुनते हैं कि जांजगीर-चांपा के डैम के निरीक्षण के बीच ओडिशा के एक अफसर ने यह कह दिया कि छत्तीसगढ़ ज्यादा जल स्टोरेज कर रहा है। इसको लेकर सीडब्ल्यूसी ने चि_ी लिखी है। उस समय तो छत्तीसगढ़ के अफसर थोड़ी देर के लिए चुप रह गए। फिर आपस में सीडब्ल्यूसी के पत्र पर चर्चा हुई। 

थोड़ी देर बाद स्थिति स्पष्ट हुई कि सीडब्ल्यूसी ने कभी इस तरह का पत्र लिखा ही नहीं है। बस फिर क्या था छत्तीसगढ़ के अफसर गुस्से में आ गए। एक सीनियर इंजीनियर ने ओडिशा के दल से सीडब्ल्यूसी पत्र दिखाने के लिए कहा, तो ओडिशा के अफसर बगलें  झांकने को मजबूर हो गए। इस पर छत्तीसगढ़ी इंजीनियर अपना आपा खो बैठे, और उन्होंने झूठ बोलने के लिए सबके सामने ओडिशा के अफसरों को गालियां बकना शुरू कर दिया। इसके बाद मारपीट की नौबत आ गई। तब हड़बड़ाए अन्य लोगों ने उन्हें किसी तरह शांत किया। बाद में सिंचाई सचिव पी अलबंगन ने छत्तीसगढ़ी इंजीनियर को राज्य के हितों को लेकर सतर्क रहने की सराहना की, साथ ही साथ उन्हें भाषा पर नियंत्रण रखने की भी नसीहत दे गए।

एक अफसर को हटाकर दूसरे से...

महानदी जल विवाद पर छत्तीसगढ़ का पक्ष हमेशा से मजबूत रहा है। पिछली सरकार में सिंचाई ठेकों में भ्रष्टाचार को लेकर विभाग जरूर कुख्यात रहा है, लेकिन उस वक्त भी इस संवेदनशील मुद्दे पर अपना पक्ष हर फोरम में बेहतर ढंग से रखा। खुद तत्कालीन सीएम डॉ. रमन सिंह भी इसको लेकर गंभीर रहे हैं। 

कुछ लोग बताते हैं कि दिल्ली में जल विवाद के निपटारे के लिए तत्कालीन केंद्रीय मंत्री उमा भारती की मध्यस्थता में बैठक हुई थी। जिसमें दोनों राज्यों के सीएम नवीन पटनायक, और डॉ. रमन सिंह भी थे। उस समय गणेश शंकर मिश्रा सिंचाई सचिव थे। छत्तीसगढ़ सरकार को बैठक में अपना प्रेजेंटेशन देना था, लेकिन इस गंभीर विषय पर तत्कालीन सीएम डॉ. रमन सिंह के कहने पर गणेश शंकर मिश्रा की जगह तत्कालीन सीएस विवेक ढांड ने प्रेजेंटेशन दिया। ढांड लंबे समय तक सिंचाई सचिव भी रहे हैं, और इसकी बारीकी से अवगत रहे हैं। उनके प्रेजेंटेशन के बाद पूरा माहौल छत्तीसगढ़ के पक्ष में हो गया। ओडिशा के अफसरों के लिए ज्यादा कुछ कहने को नहीं रह गया था, और फिर आपसी चर्चा से विवाद सुलझाने के लिए कहा गया। 

काम नहीं आए आइसोलेशन कोच..

 कोविड-19 के दौरान रेल के डिब्बों को जब आइसोलेशन कोच बनाया जा रहा था तभी लोग सवाल कर रहे थे कि क्या इनका इस्तेमाल किया जाना व्यवहारिक हो पाएगा। हालांकि इसका रेलवे ने बड़ा महिमामंडन किया था। अस्पतालों में जब बिस्तर की कमी पड़ गई तो लोगों ने घरों में रहकर उपचार कराना ठीक समझा। रेलवे ने भी कोच तैयार तो कर दिए पर डॉक्टर और स्टाफ लगाने की जिम्मेदारी राज्य सरकार पर डाल दी थी। इधर राज्य की स्वास्थ्य टीम अपने ही अस्पतालों में ठीक तरह से मरीजों की देखभाल नहीं कर पा रहे थे, रेल के डिब्बों में क्या कर पाते। 18 लाख रुपये की लागत से तैयार किए गए 55 आइसोलेशन कोच एक भी बार काम में नहीं लाया गया। ये सभी कोच दुर्ग की कोचिंग डिपो में खड़े-खड़े कंडम हो रहे हैं।

मछुआरों के बच्चे अंतर्जाल में...

छत्तीसगढ़ के प्राथमिक स्कूलों में शिक्षा का स्तर कितना नीचे है इस पर असर की रिपोर्ट हर साल आ जाती है। पर कुछ ऐसे स्कूल भी हैं जहां शिक्षकों की लगन ने नामुमकिन सा बदलाव ला दिया है। ऐसा एक स्कूल रायपुर जिले के पठारीडीह में चल रहा है। खारून नदी के तट पर बसे इस गांव में ज्यादातर मछुआरों का परिवार हैं। यहां शिक्षक उत्तम देवांगन के कमरे में कम्प्यूटर देखकर बच्चों ने उसके बारे में जानना चाहा। शिक्षक ने पहले एक कम्प्यूटर लाकर बच्चों के सीखने के लिए रखा। फिर कुछ लोगों से मदद मिल गई और कम्प्यूटर सेट लाए गए। साथ ही साथ उन्होंने अंग्रेजी सिखाना शुरू किया। अब स्थिति यह है कि बच्चे फर्राटे से अंग्रेजी टाइपिंग कर लेते हैं। अंग्रेजी बोलने और खुद से लिखने की कोशिश भी कर रहे हैं। हिंदी टाइपिंग और कम्प्यूटर के दूसरे कमांड भी सीख रहे हैं। काम अच्छा होता देख अभिभावक भी सहयोग कर रहे हैं। सीख यह है कि स्कूल को उत्कृष्ट बनाने के लिए सरकार की किसी मदद या योजना की जरूरत नहीं है। शिक्षक और अभिभावक चाहें  तो रास्ते खुल जाते हैं। 

नींद सबकी एक जैसी जरूरत...

नींद के लिए गद्देदार बिस्तर की जरूरत नहीं, केवल थका होना जरूरी है, ताकि जब यह पूरी हो जाए तो दिमाग और शरीर तरोताजा होकर नए दिन, नए काम की शुरूआत हो सके। फिर वह जगह कोई भी हो सकती है। शौचालय के पास, मवेशियों के बीच। राजनांदगांव रेलवे स्टेशन की यह फर्श कम से कम साफ सुथरी दिखाई दे रही है। सफर की थकान उतारने के लिए काफी है।

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