राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : ईडी का अटैचमेंट कमजोर तो नहीं?
11-May-2023 4:26 PM
	 राजपथ-जनपथ : ईडी का अटैचमेंट कमजोर तो नहीं?

ईडी का अटैचमेंट कमजोर तो नहीं?

ईडी ने कोल स्कैम केस में प्रेस नोट जारी कर अफसर, कारोबारी, और नेताओं की संपत्ति अटैच करने की सूचना दी है। मगर जानकारों को लगता है कि कुछ अटैचमेंट की कार्रवाई हड़बड़ी में की गई है। 

मसलन, विधायक देवेन्द्र यादव की जो संपत्ति अटैच की गई है, वह पुश्तैनी बताई जा रही है। युवा आयोग के सदस्य विनोद तिवारी के जिस दूकान को अटैच किया गया है, वह तो 2015 में खरीदी थी, और उस पर 30 लाख का लोन भी है। 

यही नहीं, कांग्रेस प्रवक्ता आरपी सिंह के जिस घर को अटैच करने की कार्रवाई की गई, उसे बनाने में आरपी का कोई आर्थिक योगदान नहीं दिखता है। कम से कम कागजात तो यही बता रहे हैं। दरअसल, आरपी सिंह की पत्नी प्रोफेसर है और सैलरी भी दो-ढाई लाख रूपए महीना है। 

आरपी सिंह की पत्नी के नाम पर वर्ष 2006 में दो प्रापर्टी थी जिसे बेचकर उन्होंने नया मकान बनवाया। इस मकान में पति का नाम भी साथ रखा। मकान निर्माण के लिए अतिरिक्त राशि जुटाने के लिए दोनों ने बैंक से लोन भी लिया, और मकान के पेपर बैंक में मॉडगेज है। 

बावजूद इसके ईडी ने मकान को अटैच कर लिया है। आरपी सिंह, और विनोद तिवारी, दोनों ही काफी मुखर रहे हैं, और पिछली सरकार के खिलाफ काफी शिकायतें कर रखी हैं। इस पर ईओडब्ल्यू-एसीबी जांच कर रही है। तीनों खुले तौर पर ईडी की कार्रवाई को राजनीति से प्रेरित करार दे रहे हैं। साथ ही ईडी की कार्रवाई को हाईकोर्ट, और ट्रिब्यूनल में चुनौती देने के लिए कानूनी सलाह ले रहे हैं।

दूसरी तरफ, आईएएस रानू साहू के खिलाफ ईडी के प्रापर्टी अटैचमेंट  की कार्रवाई पहली नजर में पुख्ता मानी जा रही है। वजह यह है कि खुद रानू साहू ने कुछ साल पहले तक राज्य सरकार को अपने नाम से कोई प्रापर्टी नहीं होने की सूचना दी थी। इसके बाद कोरबा कलेक्टर रहते कई प्रापर्टी खरीदी है, जो कि घोषित आय से कई गुना ज्यादा है। ऐसे में  उन्हें खुद को पाक साफ बताना आसान नहीं रहेगा। देखना है आगे क्या होता है।

कारोबारियों के क्या उसूल? 

सीएम भूपेश बघेल ने शराब घोटाला केस में डिस्टिलर, और ईडी के बीच साठगांठ का शक जताया है। सीएम की टिप्पणी की खूब चर्चा हो रही है। प्रदेश में आधा दर्जन डिस्टिलर हैं, और ये तीन घरानों के नियंत्रण में है। इनमें से 2 तो भाटिया हैं, और एक केडिया। ईडी ने भाटिया के प्रतिष्ठानों में रेड डाली थी। साथ ही डिस्टिलर के अफसरों के यहां भी कार्रवाई हुई थी। 

सुनते हंै कि तीनों डिस्टिलर संचालकों की आपस में बोलचाल नहीं के बराबर थी।   केडिया ने तो सीधे कभी बाकी दोनों सेे बातचीत तक नहीं की थी। रेड के बाद अब स्थिति बदल गई है। तीनों आपस में मिलजुल रहे हैं, और लगातार बैठकें हो रही है।  चूंकि शराब तो डिस्टिलर में बनती है, और स्वाभाविक है पैसा भी डिस्टिलर संचालकों  ने ज्यादा कमाते हैं, और कमाया भी है। तीनों ही अपार राजनीतिक संपर्कों के लिए जाने जाते हैं। ऐसे में खुद को बचाने के लिए अगर पाला बदल लिया हो, तो भी हैरानी नहीं होगी, कारोबार के कोई लंबे-चौड़े उसूल नहीं होते हैं, कमाई उसका अकेला उसूल होता है। 

बिलासपुर, कोरबा का सूची से बाहर होना

छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल के बोर्ड नतीजों पर नजर डालने से यह दिख रहा है कि छोटे शहरों गांवों के कई स्कूलों में अच्छी पढ़ाई हो रही है और छात्र भी मेहनत कर रहे हैं। 10वीं बोर्ड की प्रावीण्य सूची में तो पहले से चौथे तक जशपुर के ही छात्र छात्राओं का नाम है।

जशपुर जिले में स्कूल शिक्षा विभाग को लेकर बहुत अच्छी खबरें नहीं आती रही हैं। एक छात्रावास में मूक बधिर बच्चों से यौन उत्पीडऩ और दुष्कर्म की घटना हुई थी। शराब पीकर स्कूल पहुंचने वाले कई शिक्षकों की कई शिकायतें हुई और उनको निलंबित भी किया गया। इनमें एक महिला शिक्षक भी थीं। एक और शिक्षिका के खिलाफ अभी-अभी छात्रों को धमकाने का मामला भी सामने आया था। रिजल्ट आने के एक दिन पहले ही यहां के जिला शिक्षा अधिकारी जेके प्रसाद को ट्रांसफर, पोस्टिंग और स्वामी आत्मानंद स्कूलों में भर्ती में गड़बड़ी के आरोपों के चलते निलंबित किया गया।? यहां दूसरे जिलों की तरह कई ऐसे स्कूल हैं जहां एक भी शिक्षक नहीं। और कहीं दो-दो हेड मास्टर प्रभार के लिए झगड़ा कर रहे हैं।

कांकेर, सरगुजा, गरियाबंद जैसे जिलों के ग्रामीण स्कूलों से भी प्रावीण्य सूची में बच्चों ने जगह बनाई। इसके विपरीत दुर्ग जिले से दसवीं बोर्ड में केवल एक छात्रा आदिवासी वर्ग की सानिया मरकाम को जगह मिली है और 12वीं में किसी को नहीं। बिलासपुर और कोरबा दो ऐसे जिले हैं जहां से 10वीं 12वीं के 48 लोगों की सूची में एक भी स्कूल का नाम नहीं आ पाया। राजधानी रायपुर से 10वीं 12वीं बोर्ड की प्रावीण्य सूची में कुल 5 नाम आए हैं। राजधानी में स्कूलों और विद्यार्थियों की संख्या के लिहाज से यह संख्या कुछ कम ही है।

इस मेरिट लिस्ट का मतलब यह है ग्रामीण और दूरस्थ इलाकों के बच्चे कम संसाधनों के बावजूद अच्छी मेहनत कर रहे हैं। बहुत से ऐसे शिक्षक और स्कूल हैं जहां बच्चों के करियर की तरफ ध्यान दिया जा रहा है। एक और निष्कर्ष या निकाला जा सकता है कि स्वामी आत्मानंद स्कूलों का फैसला उपयोगी साबित हो रहा है क्योंकि इसके 10 विद्यार्थियों ने टॉप टेन में जगह बनाई है। दूसरी ओर कुल मिलाकर सरकारी स्कूलों के बच्चे कम सफल हुए हैं। 48 टॉप टेन की सूची में 27 विद्यार्थी निजी स्कूलों से निकले हैं। स्वामी आत्मानंद स्कूलों का प्रदर्शन मेरिट में नहीं होता तो सरकारी स्कूलों की संख्या और कम होती।

डेढ़ लाख बच्चे फेल हो गए

10वीं, 12वीं बोर्ड परीक्षा में शामिल 6 लाख 53321 बच्चों का परिणाम जारी किया गया है। इनमें से 5 लाख 6221 पास हो पाए। दसवीं में करीब 18 हजार तो 12वीं में 23 हजार छात्र पूरक की श्रेणी में हैं। फेल परीक्षार्थियों की संख्या मामूली नहीं है। क्या ये सब परीक्षा को लेकर लापरवाह रहे होंगे। सिलेबस पूरा नहीं होना, विषय विशेष के शिक्षकों की स्कूलों में कमी, शिक्षकों का नियमित रूप से कक्षाएं नहीं लेना और उनकी गैरहाजिरी पर अफसरों का ध्यान नहीं देना भी हो सकता है। 1 लाख 47 हजार बच्चों का फेल हो जाना यह भी बताता है कि कोविड-19 महामारी के दौरान बच्चों की पढ़ाई की क्षमता पर जो असर हुआ है उसकी भरपाई पूरी तरह नहीं हो पाई है। छात्रों को ऑनलाइन परीक्षा लेकर उदारता से पास किया, पर सभी रिपोर्ट बताती है कि उनकी लर्निंग क्षमता पर इसके चलते बड़ा असर हुआ। अगली कक्षा में स्कूल आ गए पर पिछली ऑनलाइन पढ़ाई के कारण उस साल की जो चीजें याद होनी चाहिए, नहीं हैं। शिक्षा विभाग पिछले साल से बेहतर रिजल्ट आने को लेकर खुशी जता रहा है पर अफसरों को इतनी बड़ी संख्या में छात्रों के विफल होने की वजह तलाश करनी चाहिए और उनके भविष्य के बारे में सोचना चाहिए।

बसों की चली खूब मनमानी

रायपुर में एक सप्ताह तक चले रेलवे के सुधार कार्य के चलते हजारों लोगों ने आसपास की दूरी सडक़ मार्ग से नापने का विकल्प चुना। इसका बस चालकों और एजेंटों ने खूब फायदा उठाया और यात्रियों को चूना लगता रहा। एक यात्री ने सोशल मीडिया पर अपनी तकलीफ बयान की है। 9 मई की शाम वे बिलासपुर जाने के लिए भाटागांव बस अड्डा पहुंचे। परिवार साथ था, इसलिए सीट मिलने पर ही चढऩा चाहते थे। खचाखच रवाना हो रही एक बस एजेंट ने कहा- बस आगे 10-15 किलोमीटर बाद सीट मिल जाएगी, इसके बाद कोई बस नहीं है। रात में परेशान हो जाओगे। उम्मीद में यात्री परिवार सहित चढ़ गए। रास्तेभर कहीं जगह नहीं दी गई। कंडक्टर बिलासपुर आते तक आश्वासन ही देते रह गया। एजेंट ने बताया कि पीछे बिलासपुर के लिए कोई बस नहीं, रायपुर से इसके बाद कई बसें बिलासपुर पहुंची। उनसे किराया ठीक लिया गया या अधिक यह भी मालूम नहीं, क्योंकि साथी यात्री अलग-अलग किराया बता रहे थे।

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