राजपथ - जनपथ
जांच से इंद्रावती में हडक़ंप
चावल घोटाले की जांच के लिए केन्द्रीय टीम इंद्रावती भवन पहुंची, तो खाद्य महकमे में हडक़ंप मच गया। जांच टीम देर रात तक फाइलें खंगालती रही, और अफसरों से भी पूछताछ की। बताते हैं कि चावल की अफरा-तफरी का खेल कोरोनाकाल में हुआ था, और इसका खुलासा तब हुआ जब राज्य सरकार ने राशन दूकानों का सत्यापन कराया। लेकिन चर्चा है कि गड़बड़ी को सार्वजनिक करने में विभाग के तीन रिटायर्ड अफसरों की अहम भूमिका रही है।
सुनते हैं कि रिटायर्ड अफसर सेवा में रहते असंतुष्ट रहे हैं। और जब सेवा से पृथक हुए, तो विभाग की गड़बडिय़ों को उजागर करने का बीड़ा उठाया। चर्चा है कि रिटायर्ड अफसरों ने ही कागजात विपक्ष के नेताओं तक पहुंचाए। इसके बाद पूर्व सीएम रमन सिंह सक्रिय हुए, और गड़बडिय़ों पर विधानसभा में जोरशोर से मामला उठाया। खाद्य मंत्री अमरजीत भगत ने माना था कि राशन दूकानों के सत्यापन में गड़बडिय़ां सामने आई है। लेकिन जांच रिपोर्ट उनसे पहले तत्कालीन सीएम तक पहुंच गई। इसके बाद उन्होंने बिना देर किए कुछ और बिन्दुओं को जोडक़र सीबीआई जांच के लिए केन्द्रीय खाद्य मंत्री पीयूष गोयल को चिट्ठी लिख दी।
आगे क्या होगा, ये तो केन्द्रीय टीम की जांच रिपोर्ट पर निर्भर करेगा। मगर जांच के मसले पर केन्द्र, और राज्य सरकार के बीच टकराव के आसार दिख रहे हैं। वजह यह है कि राज्य सरकार ने गड़बडिय़ों की जांच एसीबी-ईओडब्ल्यू से करा रही है। गबन हुए चावल की वसूली का काम भी चल रहा है। लेकिन संभव है कि चुनावी साल में केन्द्र राज्य की कार्रवाई से संतुष्ट न हो, और केस सीबीआई के हवाले कर दे। जिसे राज्य सरकार ने बैन कर रखा है। कुल मिलाकर चावल घोटाले के मसले पर प्रदेश की राजनीति गरम रहेगी।
सालों बाद दिखा भेडिय़ा
भेडिय़ों पर कई किस्से कहानियां प्रचलित हैं। एक जंगल गए चरवाहे की कहानी, भागो भेडिय़ा आया.. तो बचपन में सुनाई जाती थी जिसमें सीख यह थी कि यदि बार-बार झूठ बोलोगे तो सच को भी लोग सच नहीं मानेंगे। इंसानों के बीच एक खास तरह के असामाजिक तत्व, दरिंदे या भेडिय़ा कह दिये जाते हैं। मगर असल भेडिय़ा एक खतरनाक किंतु सामाजिक प्राणी है। सामाजिक इस मायने में कि ये झुंड बनाकर ही शिकार करते हैं। किस्सों कहानियों और गांव शहर में मौजूद भेडिय़ों के अस्तित्व पर पिछले कुछ वर्षों से संकट चल रहा है। देश में अब कुल 3100 भेडिय़े रह गए हैं। छत्तीसगढ़ के जंगलों में भी कभी ये बहुतायत में पाये जाते थे। वन्य जीव प्रेमियों को यह जानकर खुशी हुई कि बस्तर के कांगेर नेशनल वैली पार्क में कई साल बाद हाल ही में दिखा है। वन विभाग के लगाए ट्रैप कैमरों में तीन भेडिय़े पानी पीते कैद हुए हैं। भेडिय़ों की मौजूदगी बताती है कि उनके लिए आहार जैसे हिरण सहित चरने वाले कई जानवर मौजूद हैं। बताया गया है कि वन विभाग ने स्थानीय आदिवासी युवकों को पेट्रोलिंग गार्ड नियुक्त किया है। यह प्रयोग जंगल और वन्यप्राणियों की हिफाजत में मददगार साबित हो रहा है।
मोदी अब छत्तीसगढ़ आएंगे?
वैसे तो चुनावी साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का छत्तीसगढ़ दौरा कई बार हो सकता है, चुनाव प्रचार के पहले भी। वहीं, इस बात की संभावना भी जताई जा रही है कि उनका अगला दौरा बस्तर का होगा। यहां का नगरनार स्टील प्लांट लगभग तैयार है और जल्दी ही कमीशनिंग होनी है। परियोजना का निर्माण कार्य काफी लंबा खिंचा। सन् 2003 में तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने इसकी आधारशिला रखी थी। करीब 23 हजार करोड़ का प्रोजेक्ट है। इसलिए उद्घाटन के लिए प्रधानमंत्री से कम में बात बनेगी नहीं। यदि उनका दौरा फायनल हो जाता है तो बस्तर के विकास में एक कड़ी और जुड़ जाएगी। साथ ही भाजपा को बस्तर और छत्तीसगढ़ में अपने लिए अनुकूल वातावरण बनाने का मौका भी मिलेगा।
घोषणा पत्र को सिंहदेव की ना
कांग्रेस ने सन् 2018 में घोषणा पत्र तैयार करने को चुनाव अभियान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया। एक समिति बनी जिसके अध्यक्ष तब के नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव थे। करीब एक साल तक उन्होंने प्रदेशभर में दौरा किया। विभिन्न सामाजिक, व्यापारिक संगठनों, छात्रों, युवाओं, महिलाओं से बात कर सुझाव लिए। ऐतिहासिक जीत के बाद कुछ समूहों, संगठनों की मांगें पूरी होती गई, कुछ अब तक नहीं हो पाई हैं। अनियमित कर्मचारियों की मांगें अब तक अधूरी हैं। पर इन चार-साढ़े चार सालों में सिंहदेव को जगह-जगह एक मुसीबत का सामना करना पड़ा कि जब घोषणा पत्र आपने तैयार की, तो मांगें पूरी क्यों नहीं हो रही है। सरकार में तो आप ही हैं, वादे आपने ही किए। अंबिकापुर में उनकी बातचीत का एक वीडियो वायरल हुआ था. जिसमें वे कह रहे थे कि सरकार के पास पैसे ही नहीं हैं तो मांग पूरी कैसे हो। सिंहदेव को बार-बार लोगों को समझाना पड़ा कि मैंने सिर्फ घोषणा पत्र तैयार किया है, निर्णय तो पूरे मंत्रिमंडल और सरकार को लेना है। मेरे हाथ बंधे हैं।
ऐसी परिस्थिति में मीडिया ने उनसे राजनांदगांव में सवाल पूछ लिया कि क्या अगली बार फिर घोषणा पत्र आप ही तैयार करेंगे? सिंहदेव ने नहीं कहा। यह भी कहा कि वे ऐसी किसी समिति में नहीं हैं। सुझाव मांगा जाएगा तो जरूर दे देंगे। वैसे यह सवाल भी गैरजरूरी था क्योंकि उन्होंने अभी तक तो चुनाव ही लडऩे का मन नहीं बनाया है।