राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : संदेह से ऊपर रहना था...
16-May-2023 4:43 PM
	 राजपथ-जनपथ : संदेह से ऊपर रहना था...

संदेह से ऊपर रहना था...

पीएससी राज्य सेवा परीक्षा के चयनित अभ्यर्थियों की सूची जारी होने के बाद से विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। सूची में अफसरों, नेताओं, और ताकतवर लोगों के बेटे-बेटियों, और नजदीकी रिश्तेदारों  की भरमार है। अगर कोई प्रतिभाशाली है, तो उन्हें आगे बढऩे से कोई नहीं रोक सकता। मगर कुछ सवाल जरूर उठ रहे हैं जिसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिल पाया है। मसलन, पीएससी चेयरमैन के परिवार के तीन सदस्य क्रमश:  डिप्टी कलेक्टर, और डीएसपी व श्रम अधिकारी के पद पर चयनित हुए हंै। 

नियमों में साफ है कि परिवार के नजदीकी रिश्तेदारों के परीक्षा में शामिल होने की दशा में चयन प्रक्रिया से जुड़े लोगों को घोषणा पत्र भरकर देना होता है, और वो नियमानुसार चयन प्रक्रिया से अलग हो जाते हैं। मगर पीएससी चेयरमैन ने ऐसा किया है अथवा नहीं, यह साफ नहीं हो पाया है। न सिर्फ पीएससी राज्य सेवा बल्कि कई और परीक्षाओं में धांधली की शिकायत आई है। आयुष टीचिंग स्टॉफ की भर्ती में ऐसी ही धांधली को लेकर कई अभ्यार्थी हाईकोर्ट चले गए हैं। 

पीएससी की कार्यप्रणाली पारदर्शिता का अभाव रहा है। वर्ष-2005 की राज्य सेवा की परीक्षा में धांधली को राज्य की जांच एजेंसी ईओडब्ल्यू  ने भी पकड़ा था। हाईकोर्ट ने गड़बड़ी की शिकायत को सही पाया था, और नई चयन सूची जारी करने के आदेश दिए थे। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। प्रकरण पर सुनवाई अभी भी लंबित है।

वैसे पीएससी चेयरमैन आलोचकों के निशाने पर है। वजह यह है कि प्रशासनिक कैरियर में वो बेदाग नहीं रहे हैं। उन पर जांजगीर-चांपा के जिला पंचायत सीईओ रहते मनरेगा घोटाले के छींटे पड़े थे। उनकी दो वेतन वृद्धि भी रोकी गई थी। हालांकि बाद में वो कांकेर और नारायणपुर कलेक्टर  रहे। सरगुजा कमिश्नर भी बनाए गए। सीएम के सचिव भी रहे। अब गड़बड़ी के आरोप लग रहे हैं, तो पुराने मामलों पर चर्चा हो रही है। प्रसिद्ध रोमन कहावत है कि सीजर की पत्नी को संदेह से ऊपर रहना चाहिए। मगर चेयरमैन उक्त कहावत पर फिट नजर नहीं आ रहे हैं।

कर्नाटक नतीजे और वंदेभारत

नागपुर-बिलासपुर के बीच चलने वाली वंदेभारत ट्रेन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 11 दिसंबर को हरी झंडी दिखाई थी। इसे नागपुर से लेकर बिलासपुर तक के सभी भाजपा सांसदों ने केंद्र की एक बड़ी उपलब्धि बताया। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और सांसद संतोष पांडेय ने इस ट्रेन को राजनांदगांव में भी स्टापेज दिलाया। रायगढ़ से इस ट्रेन को शुरू करने की मांग होने लगी थी। मगर बड़ी खामोशी से ठीक 5 माह बाद यह ट्रेन हटा ली गई है। इसकी बोगियां सिकंदराबाद, यानि हैदराबाद भेज दी गई है। उसकी जगह बिना जलसा किए तेजस एक्सप्रेस चला दी गई।

तेलंगाना के सिंकदराबाद (हैदराबाद) से चलने वाली यह दूसरी वंदेभारत ट्रेन है। यह ट्रेन हैदराबाद से तिरुपति बालाजी तक चलाई जा रही है, जिसके लिए बिलासपुर-नागपुर की बोगियां भेज दी गई हैं। तेलंगाना विधानसभा का कार्यकाल 16 जनवरी 2024 तक है। इस साल दिसंबर में यहां चुनाव प्रस्तावित है। यह वंदेभारत ट्रेन जिस चित्तूर जिले के तिरुपति को जोड़ रही है वह आंध्रप्रदेश में है। यहां विधानसभा का कार्यकाल 11 जून 2024 तक है। यानि करीब एक साल के भीतर इन दोनों राज्यों में विधानसभा चुनाव है। अप्रैल मई में देश में लोकसभा चुनाव भी होने हैं। आंध्रप्रदेश विधानसभा में स्थिति यह है कि 175 में से 173 सीटों पर भाजपा ने चुनाव लड़ा था लेकिन उसके हाथ एक भी सीट नहीं आई। यही हाल लोकसभा का है। एक भी भाजपा सांसद नहीं। लोकसभा, विधानसभा दोनों में वाईएसआर कांग्रेस का दबदबा है। इधऱ तेलंगाना विधानसभा में भी बीआरएस का दबदबा है, 117 सीटों में से सिर्फ 3 भाजपा के पास है। लोकसभा की 17 सीटों में 4 भाजपा के पास है और बीआरएस के पास 9 सीटें हैं।

यह संयोग ही है कि एग्जिट पोल में कर्नाटक से भाजपा की हार जब बताई जाने लगीं, उसी समय रेलवे बोर्ड से वंदेभारत को बिलासपुर-नागपुर के बीच बंद करने की खबर आई। हालांकि संभावना है कि इसका निर्णय पहले हुआ होगा। इसे दक्षिण के इन दोनों राज्यों के मतदाताओं को खुश करने की कोशिश के रूप में लिया जा रहा है। दूसरी ओर, महाराष्ट्र में तो भाजपा की गठबंधन सरकार है ही, विदर्भ की लोकसभा सीटों पर भी दबदबा है। छत्तीसगढ़ में विधानसभा में सीटें जरूर कम हैं, पर सांसद तो 11 में से 9 हैं। इन दोनों राज्यों सहित एमपी, गुजरात, यूपी, राजस्थान आदि में भाजपा अपना अधिकतम बेहतर प्रदर्शन कर चुकी है। दिल्ली में मोदी सरकार को 2024 में फिर से बिठाने के लिए दक्षिण से सीटें लाना जरूरी है।  कर्नाटक चुनाव के बाद यह चुनौती और बढ़ गई है। वंदेभारत एक्सप्रेस को इसी का हिस्सा मान सकते हैं। विदर्भ और छत्तीसगढ़ के मतदाताओं को तो बहलाया जा सकता है।

ग्रामीण बचें, काश बाघ भी बच जाएं...

तेंदूपत्ते की तोड़ाई के लिए जंगल के भीतर जा रहे ग्रामीणों का इन दिनों उन वन्यप्राणियों से मुठभेड़ हो रहा है, जो पानी की तलाश में इधर-उधर भटक रहे हैं। तीन दिन पहले खैरागढ़ अंचल के केरलागढ़ के जंगल में तेंदूपत्ता तोडऩे गया एक ग्रामीण बाघ के हमले से घायल हो गया। उसके आसपास दूसरे लोग भी पत्ता तोड़ रहे थे। उनके शोर से घबराकर बाघ भाग गया। पर, बाघ का पता नहीं चल सका है। कल ही कोरबा के पसान इलाके में एक तेंदुआ बस्ती के भीतर घुसकर एक बैल का शिकार कर गया। बीते मार्च में सूरजपुर जिले के कुदरगढ़ जंगल में एक बाघ के हमले से दो युवकों को अपनी जान गंवानी पड़ी। मार्च में ही रामानुजगंज में एक बाघ बस्तियों के पास  घूम रहा था। ग्रामीण उन्हें जगह-जगह लाठियां पत्थर लेकर दौड़ाते रहे।  ऐसी घटनाओं के बाद आसपास के कई गांवों में भय फैल ही जाता है। ग्रामीण मौका पाकर बाघों पर हमला कर देते हैं। सरगुजा में पिछले साल दो भैंसों का शिकार करने का बदला ग्रामीण ने बाघ की हत्या करके लिया। कुछ साल पहले राजनांदगांव में एक बाघ और एक बाघिन को ग्रामीणों ने घेरकर लाठियों से पीट-पीटकर मार डाला था। अचानकमार अभयारण्य के कोटा क्षेत्र में पिछले साल एक शावक मृत मिला था, जिसकी भी हत्या की आशंका जताई गई थी। एटीआर में ही एक बाघिन रजनी घायल अवस्था में मिली थी, जिसकी कुछ महीनों के बाद कानन पेंडारी में मौत हो गई थी। हाल ही में बिलासपुर से सिर्फ 13 किलोमीटर दूर एक तेंदुआ एक फॉर्म हाउस में ग्रामीणों से डर कर छिपा था, जिसे वन विभाग ने रेस्क्यू किया। दो साल पहले नागझीरा, राजनांदगांव के फॉरेस्ट रिजर्व में मां के साथ पटरी पार कर रहे शावक बाघ की मालगाड़ी के पहिये के नीचे आने से मौत हो गई थी। पिछले साल कटनी रेल मार्ग पर बेलगहना और खोंगसरा के बीच एक 6 साल के तेंदुए की ट्रेन से कटकर मौत हो गई थी। पिछले साल ही जून माह में कोरिया जिले के गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान में एक बाघ की मौत हो गई। यहां बाघों के प्राकृतिक आवास के इलाके में वन विभाग के अधिकारी सडक़ बना रहे थे।

बाघों के मामले में छत्तीसगढ़ का ट्रैक रिकॉर्ड खराब है। पहले 48 बाघ थे अब 19 बताए जा रहे हैं। नया आंकड़ा अभी अलग से नहीं बताया गया है। पर कमी दूर करने मध्यप्रदेश से और बाघ लाकर वनों में छोडऩे की योजना बनाई गई है। पर इस तरह से हो रही असमय मौतों को देखते हुए लगता है कि बाघों का संकट उतना बड़ा नहीं है, जितना जो हैं उन्हें बचा लेने का है। जरूरी यह है कि इधर उधर भटक रहे बाघों की सुरक्षा के लिए ही वन विभाग ठीक तरह से प्रबंध कर ले।

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