राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : अब तक रमन को ही तोहमत !
22-May-2023 4:23 PM
राजपथ-जनपथ : अब तक रमन को ही तोहमत !

अब तक रमन को ही तोहमत !

भाजपा के रणनीतिकारों के बीच आपसी खींचतान की पार्टी के अंदरखाने में खूब चर्चा हो रही है। राष्ट्रीय संगठन मंत्री शिवप्रकाश ने तो पहले काफी सक्रियता दिखाई, लेकिन ओम माथुर की प्रदेश संगठन के प्रमुख के तौर पर एंट्री के बाद एक तरह से छत्तीसगढ़ से दूरियां बना ली है। 

सुनते हैं कि माथुर ने पहले शिवप्रकाश, पवन साय, और अजय जामवाल से चर्चा कर कोर ग्रुप के सदस्यों के नाम तय कर लिए थे। चुनाव अभियान समिति, और घोषणा पत्र समिति का भी ऐलान होना था, लेकिन वो सब अटक गया है। एक खबर और आई है कि पूर्व सीएम रमन सिंह भी ओम माथुर से नाखुश हैं। यद्यपि पिछले दिनों रमन सिंह ने माथुर समेत तमाम प्रमुख नेताओं को अपने यहां चाय पर आमंत्रित किया था, लेकिन आपस में दूरियां कम होने का नाम नहीं ले रही है। 

चर्चा है कि रमन सिंह इस बात को लेकर नाराज हैं कि माथुर कार्यकर्ताओं की बैठक में यदा-कदा विधानसभा चुनाव में बुरी हार के लिए  रमन सरकार को दोषी ठहरा देते हैं। अब कांग्रेस सरकार को साढ़े चार साल हो गए हैं, मगर माथुर जैसे नेता भाजपा सरकार में हुए बेहतर कार्यों को नहीं गिनाते हैं। जबकि प्रदेश में अधोसंरचना का विस्तार, और गरीबी उन्मूलन के लिए चावल जैसी योजना रमन सरकार ने लांच की थी। ऐसे में डॉक्टर साब की नाराजगी स्वाभाविक है। 

याददाश्त इतनी कमजोर तो नहीं है 

सीएम भूपेश बघेल के विधानसभा क्षेत्र पाटन में कांग्रेस के भरोसे के सम्मेलन में अपार भीड़ उमड़ी। इससे पहले इतनी भीड़ पाटन इलाके में किसी भी दल की सभा में नहीं जुटी थी। कार्यक्रम में राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को भी आना था, लेकिन वो व्यस्तता की वजह से नहीं आ पाए। भीड़ देखकर प्रदेश प्रभारी शैलजा काफी खुश थीं। 

सब कुछ अच्छा होने के बाद भी एक-दो बातें ऐसी हो गई जिसकी पार्टी के भीतर खूब चर्चा हो रही है। मसलन, सीएम ने अपने उद्बोधन में प्रदेश प्रभारी से लेकर ब्लॉक स्तर तक के तमाम पदाधिकारियों का जिक्र तो किया, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम का नाम लेना भूल गए। अब मरकाम के अध्यक्ष को हटाने या फिर पद पर बनाए रखने का मसला केन्द्रीय नेतृत्व के समक्ष विचाराधीन है। ऐसे में मरकाम का नाम नहीं लेने के मायने तलाशे जा रहे हैं। 

यह बात किसी से छिपी नहीं है कि चुनाव को देखते हुए सीएम बस्तर के सांसद दीपक बैज को अध्यक्ष के रूप में देखना चाहते हैं। जबकि सिंहदेव खुले तौर पर मरकाम के साथ हैं। चाहे कुछ भी हो, भरोसे के सम्मेलन में सीएम का मरकाम पर भरोसे को लेकर संशय नजर आया।

धर्मजीत सिंह का भाजपा में जाना तय?

जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के संस्थापकों में से एक, पर निष्कासित लोरमी विधायक धर्मजीत सिंह ठाकुर बहुत जल्दी ऐलान करने वाले हैं कि वे किस पार्टी में जाएंगे। उनकी पृष्ठभूमि कांग्रेस की है लेकिन जिन परिस्थितियों में उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर स्व. अजीत जोगी के साथ नई पार्टी बनाई, वह उनके मुताबिक अब भी विद्यमान है। यही वजह है कि डॉ. चरण दास महंत के खुले निमंत्रण और टीएस सिंहदेव की सहमति के बावजूद उनकी कांग्रेस से दूरी दिखती है।
रविवार को एक कार्यक्रम में सिंह ने अचानकमार अभयारण्य के संदर्भ में छिड़ी बात पर डॉ. रमन सिंह के कार्यकाल की तारीफ और मौजूदा वन मंत्री मोहम्मद अकबर की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि डॉ. सिंह के दौर में उनकी बात कम से कम सुन तो ली जाती थी लेकिन अब कोई सुनता भी नहीं।
धर्मजीत सिंह जिस दल में रहेंगे बिलासपुर मुंगेली जिले की कुछ सीटों पर असर डालेंगे। प्रदेश में करारी हार के बावजूद इन दोनों जिलों में सन् 2018 में भाजपा का प्रदर्शन अच्छा रहा। इधर कांग्रेस संगठन की ओर से कहा गया है कि उनका फोकस हारी हुई सीटों पर है। पर धर्मजीत सिंह की कांग्रेस वापसी की कोई गंभीर कोशिश नहीं हो रही है।
दूसरी ओर भाजपा उन्हें लेने के लिए उत्सुक है। उनको तखतपुर से टिकट भी दी जा सकती है। पिछले चुनाव में भाजपा प्रत्याशी हर्षिता पांडेय तीसरे नंबर थी और कांग्रेस से करीब 10 हजार कम वोट उन्हें मिले। दूसरे स्थान पर जेसीसी के संतोष कौशिक थे, जो अब कांग्रेस में जा चुके हैं। पहले के विधानसभा चुनावों में तखतपुर में भाजपा का अच्छा प्रदर्शन होता रहा है लेकिन पिछली बार के नतीजे से लगता है कि यह सीट उससे फिर फिसल सकती है। धर्मजीत सिंह ऐसे में उनके लिए एक बेहतर विकल्प हो सकते हैं।

बस्तर पर छोटे दलों की निगाह

पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बस्तर संभाग की सीटों पर जिस तरह एकतरफा जीत मिली उसने तीसरे दलों का भी ध्यान खींचा है। उन्होंने भी अपने हिस्से की जगह तलाश करनी शुरू कर दी है। आम आदमी पार्टी ने कोमल हुपेण्डी को कमान दी है। बहुजन समाज पार्टी की जिम्मेदारी हेमंत पोयम को मिली है। दोनों ने ही सन् 2018 में बस्तर से विधानसभा चुनाव लड़ा था। कोमल हुपेंडी भानुप्रतापपुर से तो हेमंत ने अंतागढ़ से। इधर सर्व आदिवासी समाज ने छत्तीसगढ़ की 50 से 55 सीटों पर लडऩे का ऐलान कर दिया है, जिसमें बस्तर की सभी सीटें होंगी। 

भानुप्रतापपुर उप-चुनाव में 23 हजार से अधिक वोट हासिल होने के बाद इस सामाजिक संगठन की राजनीतिक महत्वाकांक्षा उभरकर आई है। पामगढ़, मालखरौदा, चंद्रपुर, अकलतरा सहित प्रदेश की करीब आधा दर्जन दलित और ओबीसी सीटों पर असर और वर्तमान में दो विधायकों वाली बहुजन समाज पार्टी, संगठन का नेतृत्व आदिवासी वर्ग को सौंपने का यदि लाभ उठाने में सफल होती है तो यह आप और सर्व आदिवासी समाज के बाद तीसरी पार्टी होगी जो कांग्रेस-भाजपा के पारंपरिक वोटों पर बस्तर में सेंध लगाएगी। इन तीनों दलों की कोई सीट नहीं भी निकलती है तो भी दोनों प्रमुख दलों के समीकरण को बिगाडऩे वाला है। बस्तर की सीटों से ही प्रदेश में सरकार बनने का रास्ता निकलता है इसलिये इन तीनों दलों की मौजूदगी कांग्रेस भाजपा दोनों की चिंतित कर रही है।

चिडिय़ों के लिए दाना-पानी

भीषण गर्मी में पक्षियों की जान बचे, प्यास बुझे इसके लिए कोरबा में छात्र, युवाओं की एक टीम टीन के कनस्तर के घोंसले बना रही है। भीतर लकड़ी और भूसा है, जिससे तापमान न बढ़े। भीतर दाना और पानी दोनों रख रहे हैं।

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