राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : तबादले क्यों?
27-May-2023 4:03 PM
राजपथ-जनपथ : तबादले क्यों?

तबादले क्यों?

आखिरकार आईपीएस अफसरों के तबादले की बहुप्रतीक्षित सूची शुक्रवार को जारी हो गई। इसमें सांप्रदायिक विवाद से झुलसे बेमेतरा, और कबीरधाम जिला एसपी का तबादला अपेक्षित था, और उनका तबादला हो भी गया। 

एक-दो एसपी के तबादले पर सोशल मीडिया में खूब प्रतिक्रिया हो रही है। मसलन, दुर्ग एसपी अभिषेक पल्लव को कबीरधाम का एसपी बनाया गया है। कबीरधाम वैसे तो काफी छोटा जिला है, लेकिन पिछले कुछ समय से सांप्रदायिक झगड़े के चलते माहौल तनावपूर्ण रहा। ऐसे में वहां चुनावी साल पहले की तरह शांति व्यवस्था कायम रखना पल्लव के लिए चुनौती भी है। 

पल्लव ने अपराधियों का वीडियो वायरल करते थे। जिसकी लोगों के बीच काफी चर्चा रही। इसी तरह यातायात व्यवस्था को बहाल करने के लिए कुछ इसी अंदाज में बाइकर्स पर भी कार्रवाई की। अब तबादले के बाद कई लोग सोशल मीडिया पर खुशी जाहिर कर रहे हैं। 

इसी तरह सरगुजा एसपी भावना गुप्ता के तबादले पर सोशल मीडिया में फेसबुक पर यहां तक लिखा गया कि सरगुजा को मुक्ति मिली है। हालांकि भावना पर कोई गंभीर आरोप नहीं है। उन्हें बेमेतरा एसपी बनाया गया है। इन सबके बावजूद अभी और तबादले की गुंजाइश बाकी रह गई है। 

आगे और कौन? 

विधानसभा चुनाव आचार संहिता से पहले रायपुर, बलौदाबाजार, जशपुर, और बस्तर एसपी को इधर से उधर किया जा सकता है। ये सभी डीआईजी हो चुके हैं। इसी तरह आईजी की लिस्ट भी जारी हो सकती है।

बस्तर आईजी सुंदरराज पी को करीब साढ़े तीन साल से अधिक हो चुके हैं। एक ही जगह पर तीन साल से अधिक समय से पदस्थ अफसरों को बदलने का चुनाव आयोग का नियम है। लेकिन आयोग नक्सल इलाकों के लिए छूट दे सकती है। सुंदरराज ने नक्सल मोर्चे पर काफी अच्छा काम किया है। कुल मिलाकर एक और सूची आना बाकी है। 

कम अनुभवी को दंतेवाड़ा का जिम्मा

2019 बैच केे गौरव राय को दंतेवाड़ा जैसे घोर नक्सल जिले का जिम्मा दिए जाने के फैसले पर आईपीएस बिरादरी हैरत में पड़ गया। सरकार ने इस बैच को पुलिस कप्तानी देने की शुरूआत करते गौरव राय को सीधे दंतेवाड़ा में भेज दिया। 

बताते हैं कि गौरव के पास नक्सल क्षेत्र में काम करने का अनुभव नाममात्र है। राजनांदगांव में सीएसपी रहते सरकार नेे पिछले साल गौरव को बीजापुर में एएसपी पदस्थ किया। गौरव महज 4-5 माह में ही राजधानी लौटकर एसीबी में रहे। गौरव राय के पास साईबर अपराधों की पकडऩे की काबिलियत है, लेकिन नक्सल जिलों में काम करने के सीमित अनुभव के बावजूद  सरकार ने दंतेवाड़ा में सरप्राईजिंग पोस्टिंग कर दी। भौगोलिक रूप से दंतेवाड़ा नक्सलियों के लिए काफी मायने रखता है। 

सुनते  हंै कि सरकार के करीबी अफसरों को इस बात की भनक नही थी कि युवा अफसर गौरव सीधे दंतेवाड़ा भेज दिए जाएंगे। पिछले विस चुनाव से पहले कम अनुभवी अफसर अभिषेक पल्लव को पदस्थ करने पर नक्सलियों ने कई वारदातें की थी।  जिसमें भीमा मंडावी विधायक रहते एक विस्फोट में मारे गए थे। वैसे सरकार नेे गौरव को भेजने से पहले रणनीतिक तौर पर काफी विचार किया होगा, पर अनुभव की कमी भी पोस्टिंग में मायनेे रखती है।

सत्तारूढ़ विधायक की जिद

राज्य के उत्तरी इलाके के आखिरी जिले बलरामपुर के पुलिस अधीक्षक मोहित गर्ग के तबादले के पीछे क्षेत्रीय विधायक बृहस्पति सिंह की जिद का असर रहा। लगभग तीन माह पूर्व एक मामले को लेकर विधायक सिंह एसपी के खिलाफ धरने पर बैठ गए थे। विधायक लगातार सरकार पर अपने जिले से एसपी को हटाने के लिए दबाव बनाए हुए थे। 2013 बैच के गर्ग करीब आठ माह पूर्व उस वक्त मुख्यधारा में लौटे जब कवर्धा में एसपी रहते साम्प्रदायिक दंगे हुए। गर्ग को अच्छे रणनीतिककार अफसरों में शुमार किया जाता है। बीजापुर और नारायणपुर जैसे घोर नक्सल क्षेत्र में अच्छी पारी खेलकर लौटे गर्ग को मैदानी इलाकों टिकने के लिए विषम राजनीतिक परिस्थितियों से जूझना पड़ा है। बलरामपुर में उनकी विधायक से आपसी अनबन जगजाहिर थी। विधायक से मनमुटाव   होने के कारण महकमे में गर्ग को हटाए जाने की चर्चा लंबे समय से थी। सुनते हैं कि विधायक किसी भी सूरत में एसपी को हटाने के लिए भिड़े हुए थे। विधायक को नाराज नहीं करके, एसपी को ही हटाना सरकार ने मुनासिब समझा। इसमें साफ संदेश है कि सत्तारूढ़ दल के विधायक से बैर लेना एसपी को महंगा पड़ गया। 

तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम...

नये संसद भवन के उद्घाटन से जुड़े अनेक विवादों के बीच लोगों का ध्यान इस ओर भी जाता है कि करीब 980 करोड़ की लागत वाले इस विशाल परिसर का निर्माण 29 महीने में हो गया। हो सकता है कि इसे शीघ्रता से इसलिए भी तैयार किया गया हो ताकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उद्घाटन कर सकें।

अब छत्तीसगढ़ में भी चुनाव होने वाले हैं। बहुत से शिलान्यास और भूमि पूजन के शिलालेख धूल खा रहे हैं। 2 महीने में जिस काम को पूरा होना था, 2 साल बाद भी उनमें एक ईट नहीं रखी गई है। जो विधायक कांग्रेस की सरकार दोबारा लाना चाहते हैं और अपनी टिकट पक्की करनी चाहते हैं, कम से कम उनको तो याद कर लेना चाहिए कि उन्हें कहां-कहां ऐसे शिलालेख छोड़ कर भूल गए हैं। यह बार नवापारा के आदिवासी कन्या आश्रम के बाहर रखा हुआ पीडब्ल्यूडी का 2 साल पुराना पत्थर है। मुख्यमंत्री सुगम सडक़ योजना के तहत मुख्य मार्ग से इस आश्रम तक एक सडक़ 15.66 लाख की लागत से 2 माह के भीतर बननी थी, मगर अब तक इस सडक़ के लिए एक ट्रैक्टर गिट्टी भी नहीं बिछाई गई है। पूरे राज्य में इस तरह के अधूरे और रुके हुए कामों की लंबी सूची बन सकती है।

अपनी ही सरकार के खिलाफ सडक़ पर

एनएचएआई के पास या तो बजट की कमी है या फिर मॉनिटरिंग की। बीते 3 साल से हाईकोर्ट में प्रदेश की खराब सडक़ों पर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई चल रही है। न्याय मित्रों ने प्रदेश की 32 सडक़ों की हालत या तो जर्जर बताई या फिर लंबे समय से निर्माणाधीन। प्रदेश की पीडब्ल्यूडी के अधीन कई सडक़ों की मरम्मत हाईकोर्ट की फटकार के बाद हो गई। पर एनएचएआई पर इसका असर नहीं हुआ है। अंबिकापुर से रायगढ़ के बीच सन् 2016 से बन रही सडक़ अब तक अधूरी है। किसान, व्यापारी और आम यात्री परेशान हैं। प्रधानमंत्री को भी शिकायत भेजी गई लेकिन जैसा कि होता है, पीएम ऑफिस से एक पत्र कलेक्टर को आया और जवाब मांग लिया गया।

एनएचएआई केंद्र की भाजपा सरकार के अधीन है, मगर भाजपा कार्यकर्ताओं को कल इस सडक़ को जल्द बनाने की मांग पर चक्काजाम करना पड़ा। यह भी चेतावनी दी गई कि यदि एक माह में पूरा नहीं किया गया तो एनएचएआई दफ्तर जाकर वहां घेराव करेंगे। यह अजीब सी बात है कि प्रदेश की एकमात्र केंद्रीय मंत्री सरगुजा से हैं और रायगढ़ से भी सांसद भाजपा की ही हैं। मगर वे एनएचएआई के अफसरों पर दबाव नहीं बना पा रही हैं और उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं को सडक़ पर आना पड़ रहा है।

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