राजपथ - जनपथ
बैचमेट अब अगल-बगल मुखिया
मुख्य सचिव अमिताभ जैन के बैचमेट अनुराग जैन मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव नियुक्त हुए हैं। 89 बैच के अफसर अनुराग जैन का छत्तीसगढ़ से भी नाता रहा है। वो कांकेर के एडिशनल कलेक्टर रह चुके हैं। दोनों के बीच बहुत अच्छे संबंध हैं।
आईएएस के 89 बैच के अफसर केन्द्र सरकार के कई विभागों में सचिव हैं, तो इस बैच के अफसर रिटायरमेंट के बाद पांच राज्यों में रेरा के चेयरमैन बन चुके हैं। अनुराग से परे अमिताभ जैन को मुख्य सचिव के पद पर तीन साल हो चुके हैं। अगले साल जून में उनका रिटायरमेंट है।
छत्तीसगढ़ के अब तक के सभी मुख्य सचिवों में आरपी बगई को छोडक़र बाकी सभी को कुछ न कुछ दायित्व मिला है। ऐसे में किसी तरह के विवादों से दूर रहने वाले अमिताभ जैन को भी रिटायरमेंट के बाद जिम्मेदारी मिलना तय माना जा रहा है। वैसे भी नीति आयोग के उपाध्यक्ष का अतिरिक्त दायित्व है ही।
पंजाब के विवाद का यहां से रिश्ता
छत्तीसगढ़ की रहने वाली पंजाब कैडर की आईएएस अनिंदिता मित्रा की पोस्टिंग को लेकर केंद्र, और पंजाब सरकार के बीच ठन गई है। अनिंदिता, छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस एसके राजू की पत्नी हैं। अनिंदिता के आईएएस बनने के बाद राजू ने भी अपना कैडर चेंज करा पंजाब चले गए थे।
केन्द्र ने अनिंदिता की पोस्टिंग चंडीगढ़ में निगम आयुक्त के पद पर की थी। उन्हें तीन माह का एक्सटेंशन भी दिया जा चुका था। एक्सटेंशन खत्म होने के बाद पंजाब सरकार ने उनकी एक विभाग में पोस्टिंग भी कर दी। इसके बाद फिर उन्हें एक्सटेंशन दिया गया है। चूंकि केन्द्र सरकार ने एक महीना देर से ऑर्डर जारी किया है। इसलिए पंजाब सरकार उन्हें रिलीव करने से मना कर दिया है। यह अपनी तरह का एक अलग मामला है, जिसकी अफसरों के बीच काफी चर्चा है।
हड़ताल के किस्से
शुक्रवार को पांच लाख कर्मचारियों की काम बंद कलम बंद हड़ताल सफल रही। जैसा कि 110 संगठनों वाले फेडरेशन में आशंका जताई जा रही कि शुक्रवार को सामूहिक अवकाश लेकर बहुतेरे तीन दिन के टूर पर निकल जाएंगे। उसके सच होने की खबरें आ रही हैं। हालांकि ऐसे लोगों पर नजर रखने फेडरेशन और अन्य कर्मचारी संगठन के नेताओं को जिम्मेदारी दी गई थी। बावजूद इसके राजधानी से लेकर सुदूर ब्लाक के कर्मचारी ने वही किया। कुछ तीन दिन के लिए निकल गए तो कुछ घंटे दो घंटे पंडाल में बिताकर लौट गए । यह तो बात हुई व्यक्तिगत हिस्सेदारी की। लेकिन यहां तो दो संगठनों के नदारद होने की चर्चाएं वाट्सएप ग्रुप में चल रही है । बताया गया है कि नियमित व्याख्याता संघ और वाहन चालक संघ का एक भी पदाधिकारी शामिल नहीं हुआ। यह गैरहाजिरी ,पूरे प्रदेश स्तर पर रही या किसी एक जिले में फेडरेशन इसकी पड़ताल कर रहा है। हालांकि दोनों ही संघों के मुखिया रिप्लाई में खारिज कर रहे हैं। सवाल जवाब के दौर चल रहे हैं। ऐसे में यह विवाद थमता नजर नहीं आ रहा।
अब भगवान का ही सहारा
थाने का शुद्धिकरण और अपराध नियंत्रण के लिए श्रीफल विच्छेदन के बाद से पुलिस को जवाब देते नहीं बन रहा। बड़े साहब भी नाराज हैं। लेकिन थाना स्टाफ कहता है, जिस पर गुजरती है न वही जानता है । सब कुछ ठीक चल रहा था, जब से नए थानेदार आए थे। करीब चार महीने तक मॉल की सैर, पीवीआर में सिनेमा, परिवार के साथ लंच डिनर हो रहा था। फिर अचानक पीआरए शूट आउट ने सारा रूटीन बदल दिया। और उस पर चोरियां, हिट एंड रन, हत्या के प्रयास और फिर 7 दिन में 2 हत्याकांड। बल को पेट्रोलिंग के बजाए श्रीमानों की ड्यूटी में लगाया जाए तो अपराधियों को मैदान खाली मिलेगा ही। पुलिस परेशान न हो तो क्या करे? भौतिक उपाय काम न आए तो पूजा पाठ, ज्योतिष का सहारा तो लेना ही होगा न। क्या गलत किया।
मवेशियों की मुसीबत
हाईवे पर मवेशियों के चलते हो रही लगातार दुर्घटनाएं हो रही हैं। मवेशी सडक़ों से हटने का नाम नहीं ले रहे हैं और हाईकोर्ट ने इन्हें हटाने के लिए अफसरों को कई बार डांट पिला दी है। यहां तक कि अदालत ने राजधानी से लेकर पंचायत तक की समितियां बनाने का निर्देश दिया है। जिलों में इन दिनों कलेक्टर्स ने तहसीलदार और एसडीएम को मवेशी खदेडऩे के काम में लगा दिया है। हाईवे पर अफसर मवेशियों को डेरा डाले देखते हैं तो उन्हें हटाते हैं और आगे बढ़ जाते हैं। लौटते में देखते हैं कि मवेशी फिर वहीं पर, सडक़ पर आकर जम गए हैं। दरअसल, हो यह रहा है कि किसानों की फसल इन दिनों पकने के लिए तैयार है। मवेशी उनकी कमाई को चट न कर जाएं इसलिये उन्हें भीतर घुसने नहीं दिया जा रहा है। जो अनुपयोगी हो चुके मवेशियों को बेचना चाहते हैं, उन्हें खरीदार नहीं मिल रहे। गौरक्षकों का डर सताता है। इन रक्षकों को सडक़ में हो रही दुर्घटनाएं दिखाई नहीं दे रही है। थोड़ी ही संख्या ऐसे पशुपालकों की है, जो घर में मवेशियों को बांधकर रख रहे हैं। पिछली सरकार ने ढेरों की संख्या में गौठान बनाए थे। इनमें से बहुत से तो उसी समय उजड़ चुके थे, अब बचे हुए गौठान भी उजाड़ हो चुके हैं। मवेशी हटाने के काम में फंसे एक अफसर का कहना है कि अब हाईकोर्ट लाठी दिखाए या कलेक्टर, मवेशी तो फसल कटने के बाद ही सडक़ से हटेंगे।
बेकार भी नहीं स्काई वाक
राजधानी रायपुर के स्काई वॉक के विवादित ढांचे का मामला भले ही छह साल से अधर में लटका हुआ हो, लेकिन इसकी उपयोगिता बारिश होने पर समझ में आती है।