राजपथ - जनपथ
समुद्र सिंह के यहां छापेमारी से विशेषकर आबकारी अफसर-कर्मियों में खुशी की लहर है। समुद्र सिंह रिटायर होने के बाद 9 साल तक संविदा पर रहे। रमन सरकार में उनकी हैसियत विभागीय सचिव से कहीं ज्यादा रही है। वे अमर अग्रवाल के बेहद करीबी रहे हैं। समुद्र सिंह को फंड जुटाने में भी माहिर माना जाता रहा है। यही वजह है कि हर कोई उनके आगे नतमस्तक रहा।
सुनते हैं कि समुद्र सिंह के दबाव के चलते ही विभाग में एडिशनल कमिश्नर का पद स्वीकृत नहीं हो पाया था और कई अफसरों का प्रमोशन भी रूका था। अब जब उनके यहां छापेमारी हो रही है, तो उनसे प्रताडि़त अफसर काफी खुश हैं। चर्चा तो यह भी है कि विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा के कई बड़े नेताओं को उनकी वजह से परेशानी का सामना करना पड़ा था।
किस प्रत्याशी के यहां पेटी भेजना है, समुद्र सिंह ने रमन सरकार के रणनीतिकारों के साथ बैठक कर तय की थी। हाल यह रहा कि सत्तारूढ़ पार्टी के ही विरोधी खेमे के कई नेताओं को मतदाताओं को लुभाने के लिए अन्य स्त्रोतों से शराब का इंतजाम करना पड़ा। ईओडब्ल्यू की टीम ने समुद्र सिंह से जुड़ी फाइलें खंगालनी शुरू की है, तो देर सबेर अमर के लिए भी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। अब एक दिक्कत यह भी है कि समुद्र सिंह के सबसे करीबी रहे एक अफसर जो कि पिछली सरकार में एक बड़ी कमाऊ जगह पर जमे रहे, और जिनका दावा सत्ता से एक रिश्तेदारी का था, वे आज एक बड़े ताकतवर मंत्री के ओएसडी बने बैठे हैं। उस जगह पर रहकर वे एसीबी के छोटे अफसरों को तो प्रभावित करने की हालत में हैं ही। यह भी हैरानी की बात है कि पिछली सरकार के सबसे चहेते और सबसे भ्रष्ट अफसरों में से कुछ किस तरह, कितनी आसानी से नई सरकार में कमाऊ जगहों पर टिके हुए हैं, या एक कमाऊ जगह से दूसरी कमाऊ जगह पर चले गए हैं।