राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : बड़े वकील महंगी फीस
12-May-2019
 छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : बड़े वकील महंगी फीस

रमन सरकार में ताकतवर रहे अफसरों के खिलाफ जांच-पड़ताल चल रही है। उनके खिलाफ गंभीर शिकायतें हैं। इन शिकायतों को देखकर भाजपा के भी कई नेता हैरान हैं। यह सवाल भी उठा रहे हैं कि आखिर भाजपा सरकार रहते हुए उन पर नकेल डालने की कोशिश क्यों नहीं हुई। सुनते हैं कि जांच-पड़ताल के बावजूद पूर्व सीएम का अमन सिंह-मुकेश गुप्ता जैसे अफसरों पर भरोसा कम नहीं हुआ है। इसकी झलक इस बात से मिलती है कि पूर्व सीएम के दामाद डॉ. पुनीत गुप्ता, निलंबित डीजी मुकेश गुप्ता और नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक की जनहित याचिका की पैरवी एक ही वकील यानी महेश जेठमलानी कर रहे हैं। अलबत्ता, अमन सिंह की तरफ से सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह और पूर्व एडिशनल सालिसिटर जनरल मानविंदर सिंह पैरवी कर रहे हैं। 

महेश जेठमलानी सुप्रीम कोर्ट के नामी वकील राम जेठमलानी के बेटे हैं। महेश का भी वकालत पेशे में काफी नाम है। उनकी फीस प्रति पेशी 10 लाख के आसपास बताई जाती है। सुनते हैं कि महेश की निलंबित डीजी मुकेश गुप्ता से पुरानी जान-पहचान है। रमन सरकार के समय एक मानहानि मुकदमे के लिए मुकेश गुप्ता की तरफ से पहली बार पैरवी आए थे। तब से छत्तीसगढ़ सरकार के कई मुकदमों की पैरवी सुप्रीम कोर्ट में कर चुके हैं। इन दिग्गज वकीलों की फीस जुटा पाना किसी भी सामान्य नौकरशाह के लिए कठिन है। चूंकि जांच-पड़ताल में घिरे अफसर हरफनमौला माने जाते हैं ऐसे में इन्हें फीस जुटाने में कोई समस्या होगी, ऐसा लगता नहीं है। हल्ला तो यह भी है कि रमन सरकार में एक बार दिग्गज वकील को खुफिया मद से करीब 37 लाख भुगतान किए गए थे। अब खुफिया मद का कोई ऑडिट तो होता नहीं है। इसलिए अब इसकी जांच भी संभव नहीं है। 

छुपाने में लगे अफसर...
छत्तीसगढ़ सरकार में कई विभागों या स्थानीय संस्थाओं के अधिकारियों से मीडिया समाचार के बारे में रोज ही कई सवाल करता है। इससे गलत खबर छपना या दिखना भी रूकती है, और सरकारी सच भी सामने आ जाता है। लेकिन बहुत सी छपी हुई खबरों में सरकार का पक्ष बताने वाले अधिकारियों की भाषा देखें तो लगता है कि वे कोई भी जवाब देने से ठीक उस तरह बचते हैं जिस तरह अदालत के कटघरे में कोई पेशेवर गवाह वकील के पूछे हर सवाल के जवाब में घुमाफिराकर जवाब दे रहा हो। न तो इससे सच सामने आता, और न ही झूठ को प्लांट किया जा सकता है। नतीजा यह निकलता है कि सरकार मानो किसी मुजरिम की तरह बच निकलने की कोशिश कर रही हो। और बहुत से मामलों में ऐसा होता भी है। मीडिया के पास सरकार से जुड़ी हुई वही खबरें तो पहुंचती हैं जिनमें कुछ गड़बड़ी होती है। ऐसे में सरकार अगर जवाब देने को उपलब्ध न हो, तो कुल मिलाकर नुकसान सरकार का ही होता है। अब भूपेश बघेल मुख्यमंत्री हैं जो कि पन्द्रह बरस के रमन राज, और उसके पहले के तीन बरस के जोगी राज में भी, विपक्ष की तरह ही रहे, मीडिया के साथ उनके दोस्ताना ताल्लुकात रहे। मीडिया के दो पुराने पेशेवर रहे लोग, विनोद वर्मा और रूचिर गर्ग, आज उनके सरकारी सलाहकार भी हैं, लेकिन सरकारी अफसरों का रूख पहले की तरह ही छुपाने या घुमाने का बना हुआ है। अभी तो नई सरकार की गलतियां, या उसके गलत काम सामने आए भी नहीं हैं, और पिछली सरकार के जिन गलत कामों को नई सरकार उजागर करना चाह रही है, उनके बारे में भी आज के अफसर गोलमोल जवाब देकर पहले के गलत कामों को छुपाने में लगे हैं। नुकसान तो मौजूदा सरकार का ही है। 
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