राजपथ - जनपथ
विधानसभा चुनाव में बुरी हार के बाद प्रदेश में लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन से भाजपा हाईकमान खुश है। सुनते हैं कि पीएम नरेन्द्र मोदी ने विष्णुदेव साय की पीठ थपथपाई और कहा कि आप लोगों ने कमाल कर दिया। दरअसल, हाईकमान को इतने बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद नहीं थी। विधानसभा चुनाव में हार के बाद पार्टी में हताशा का वातावरण था। पार्टी कार्यक्रमों में कार्यकर्ताओं की मौजूदगी लगातार कम हो रही थी।
कार्यकर्ताओं की नाराजगी भांपकर पार्टी ने सभी सांसदों की टिकट काटकर नए चेहरों को चुनाव मैदान में उतारा। पार्टी का यह प्रयोग सफल रहा। खास बात यह रही कि टिकट कटने के बाद भी सांसदों का गुस्सा नहीं फूटा। पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह तक ने भी अपने बेटे अभिषेक की टिकट कटने का विरोध नहीं किया। जबकि पिछली बार अभिषेक की टिकट के लिए अड़ गए थे। और पार्टी के शीर्षस्थ नेताओं की नाराजगी मोल ले ली थी। और तो और देश में पिछड़ा वर्ग को सबसे सीनियर सांसदों में से एक, और छत्तीसगढ़ के सबसे सीनियर सांसद रमेश बैस ने भी पूरे वक्त मुंह में गुटखा बनाए रखा, और नाराजगी का एक शब्द भी नहीं कहा।
ये अलग बात है कि मोदी फैक्टर की वजह से प्रदेश में भाजपा को बड़ी जीत मिली है, लेकिन टिकट नहीं मिलने के बावजूद पूर्व सांसदों के अनुशासित रहने की जमकर तारीफ भी हो रही है। इसका प्रतिफल भी मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री रमेश बैस को राज्यपाल बनाने जाने की चर्चा है। बाकी पूर्व सांसदों को भी संगठन में अहम जिम्मेदारी मिल सकती है।
रणविजय का क्या होगा?
कोरबा सीट से भाजपा प्रत्याशी ज्योतिनंद दुबे को कम मतों से हार का सामना करना पड़ा। पार्टी के कई लोग यह मानते हैं कि दुबे की जगह राज्यसभा सदस्य रणविजय सिंह को प्रत्याशी बनाया जाता, तो परिणाम पक्ष में आ सकता था। रणविजय पिछले तीन-चार साल से कोरबा लोकसभा क्षेत्र में काफी घूम रहे थे। उन्होंने कोरबा के सभी विधानसभा क्षेत्रों में अपनी टीम खड़ी कर ली थी, लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दी।
जशपुर राजघराने के प्रमुख रणविजय शालीन और मिलनसार हैं। पार्टी ने उन्हें भविष्य की राजनीति को देखते हुए राज्यसभा में भेजा था, लेकिन विधानसभा चुनाव में जशपुर की तीनों सीट हाथ से निकल गई। इससे रणविजय की साख को भी धक्का लगा। राज्यसभा में बोलने लायक भी उनके पास कुछ था नहीं और वे वहां मूकदर्शक बने रहे। यही सब वजह है कि पार्टी ने उन्हें लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ाया। इन सबके बावजूद रणविजय ने रायगढ़ से भाजपा प्रत्याशी गोमती साय के लिए भरपूर मेहनत की। उनके प्रयासों को पार्टी हल्कों में काफी सराहा जा रहा है। रणविजय के राज्यसभा सदस्य के रूप में कार्यकाल को एक साल ही बाकी रह गया है। ऐसे में पार्टी उन्हें संगठन में कोई अहम जिम्मेदारी देकर उनका कद बढ़ा सकती है।