राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : तनख्वाह की फिक्र न करें
08-Jun-2019
 छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : तनख्वाह की फिक्र न करें

भाजपा के पूर्व सांसदों के पीए (निज सचिव) और अन्य कर्मचारी, नए नवेले सांसदों के यहां अपनी संभावनाएं तलाश रहे हैं। कुछ पूर्व सांसद इसके लिए सिफारिश भी कर रहे हैं। सुनते हैं कि इसी सिलसिले में छत्तीसगढ़ के एक पूर्व सांसद का एक कर्मचारी, पिछले दिनों एक नए सांसद से मिलने पहुंचा। सांसद के पास पहले ही उस कर्मचारी के लिए सिफारिश आ चुकी थी। कर्मचारी को लेकर समस्या यह थी कि उसे निजी तौर पर ही रखा जा सकता था। इसके लिए वेतन आदि की व्यवस्था खुद सांसद को करनी पड़ती। सांसद को दुविधा में देख कर्मचारी ने खुद ही कह दिया कि उन्हें (सांसद) वेतन आदि की चिंता करने की जरूरत नहीं है। पूर्व सांसद ने एक कंपनी से उनके लिए हर महीने वेतन की व्यवस्था कर दी है। उन्हें सिर्फ उनके दफ्तर में जगह चाहिए। अब सांसद, ऐसे प्रभावशाली कर्मचारी को लेकर असमंजस में हैं। कंपनी से पुराने सांसद के किस तरह रिश्ते हैं, कोई समस्या तो नहीं आ जाएगी, यह सोचकर परेशान है। 

पहला विदेश दौरा
छत्तीसगढ़ के उद्योग मंत्री कवासी लखमा के साथ अफसरों का एक प्रतिनिधि मंडल निवेश की संभावना तलाशने कनाडा जा रहा है। पहले सीएम भी जाने वाले थे, लेकिन मां के अस्पताल में भर्ती होने की वजह से उनके जाने का कार्यक्रम टल गया। नई सरकार के लोगों का यह पहला विदेश दौरा है। जबकि रमन सरकार के लोग दर्जनों बार निवेश की संभावना तलाशने विदेश जा चुके हंै। 

सुनते हैं कि पिछली सरकार के पावरफुल लोग जब विदेश यात्रा पर जाते थे, तो अपने साथ सीएसआईडीसी के एक इंजीनियर को ले जाते थे। इंजीनियर अपने नाम पर लाखों रुपये एडवांस ले लिया करता था। इस पैसे से पिछली सरकार के लोग जमकर खरीदारी करते थे। इंजीनियर को फ्री स्टाइल  खेलने की छूट रहती थी। महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट उन्हीं के हाथों में होता था। इसलिए इंजीनियर भी खुशी-खुशी से खातिरदारी के लिए तैयार रहता था। अब सरकार बदल गई है, लेकिन विदेश यात्रा की प्रकृति भी पहले जैसी है। ये अलग बात है कि इस बार इंजीनियर साथ नहीं है। अलबत्ता, उससे ऊपर के एक अफसर जरूर साथ हंै। अब वहां इस अफसर का किस तरह उपयोग होता है, यह देखना है। 

जांच भी चले और इलाज भी
आखिरकार डीकेएस सुपर स्पेश्यलिटी अस्पताल के अधीक्षक डॉ. केके सहारे को हटा दिया गया। वे अस्पताल निर्माण से जुड़ी अनियमितताओं को लेकर इतने व्यस्त हो गए थे कि मरीजों की तरफ ध्यान ही नहीं दे रहे थे। स्वास्थ्य मंत्री ने गरियाबंद के सुपेबेड़ा में किडनी बीमारी से पीडि़तों को डीकेएस में मुफ्त इलाज की घोषणा की थी, लेकिन मरीजों को इलाज के लिए भटकना पड़ रहा था। जबकि सरकार डीकेएस में ज्यादा से ज्यादा स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने की दिशा में प्रयास कर रही है। डॉ. सहारे का हाल यह था कि वे पूर्व अधीक्षक डॉ. पुनीत गुप्ता के खिलाफ मामले खोजने में ही पूरा समय दे रहे थे। यह सब देखकर सरकार ने मरीजों के हितों को ध्यान में रखकर डॉ. सहारे को हटाने का फैसला लिया। डॉ. सहारे को डीकेएस घोटाले और जांच के संबंध में नोडल अधिकारी बने रहेंगे। यानी वे अपना पुलिस और जांच का काम पूर्ववत करते रहेंगे, और अस्पताल चलाने के लिए एक दूसरा अफसर तैनात कर दिया गया है।

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