राजपथ - जनपथ
प्रदेश में सत्ता हाथ से जाने के बाद भाजपा के नेता-विधायक काम धंधे मेें लग गए हैं। पिछले दिनों बड़े पैमाने पर पेट्रोल पंप का आबंटन हुआ, इसमें सबसे ज्यादा भाजपा या भाजपा से जुड़े लोगों की लॉटरी निकली। ऐसा नहीं है कि आबंटन में कोई गड़बड़ी हुई है। अभी तक प्रदेश में डेढ़ सौ से अधिक पंपों के लिए आबंटन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। पूरी प्रक्रिया पारदर्शी रही और आबंटन लॉटरी के जरिए हुआ।
सुनते हैं कि नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक की किस्मत थोड़ी खराब रही। वे भी अपने परिजनों के नाम से पेट्रोल पंप लेने के लिए प्रयासरत थे, लेकिन लॉटरी में परिजनों का नाम नहीं निकला। पूर्व मंत्री लता उसेंडी को बस्तर के बेहतर लोकेशन में पेट्रोल पंप आबंटित होने की खबर है। कुछ पूर्व मंत्रियों और एक-दो विधायकों को भी पेट्रोल पंप मिल गया है। चर्चा तो यह भी है कि कुछ नेताओं ने पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के जरिए जुगाड़ लगाने की कोशिश भी की, लेकिन उन्हें फटकार मिली।
वैसे पेट्रोल पंप में निवेश जोखिम बहुत कम रहता है और आय नियमित होती है। यही वजह है कि पेट्रोल पंप लेेने के लिए राजनेता ज्यादा उत्सुक रहते हैं। पूर्व सीएम अजीत जोगी, अमितेश शुक्ल, लाभचंद बाफना सहित कई नेताओं-परिजनों को पेट्रोल पंप आबंटित हुआ था। कई साल पहले दिग्गज राजनेता विद्याचरण शुक्ल ने अनौपचारिक चर्चा में माना था कि उन्होंने सौ से अधिक लोगों को पेट्रोल पंप दिलवाए हैं। खुद उनके परिवार के पास 5 पेट्रोल पंप रहे हैं। छत्तीसगढ़ राज्य बनने से पहले कांग्रेस के लोगों का पेट्रोल पंप व्यवसाय में दबदबा रहा है, लेकिन अब भाजपा के लोगों ने कांग्रेसियों को काफी पीछे छोड़ दिया है। वैसे भी भाजपा के ज्यादातर बड़े नेता व्यवसाय से राजनीति में आए हैं और जोखिमों से बचने के लिए पेट्रोल पंप में निवेश को बेहतर मानते हैं।
ऐसे में कांग्रेस नेता सुभाष धुप्पड़ शायद अकेले ऐसे नेता रहे जिन्होंने बहुत मेहनत करके अपने चलते हुए दो पंपों को कंपनी को वापिस किया, कंपनी लेना नहीं चाहती थी, और उनके पीछे लगी रही कि वे इसे चलाएं, लेकिन वे अड़े रहे, और आखिर में पंप से छुटकारा पाए। वैसे कांग्रेस के कुछ दूसरे नेताओं के नाम यह तोहमत भी दर्ज है कि उन्होंने अनुसूचित जाति, जनजाति के लोगों को मिले हुए पेट्रोल पंपों को लेकर खुद चलाया।
...और पेट्रोल पंपों से पहले...
पेट्रोल पंप से पहले कांग्रेस के नेता राशन दुकानें चलाया करते थे, और उन्हें उस वक्त के पैमाने से कमाई का धंधा माना जाता था। फिर जब अजीत जोगी रायपुर के कलेक्टर थे, उन्होंने अधिकतर छात्र नेताओं को गिट्टी क्रशर का काम खुलवा दिया, और जीप-टैक्सी का परमिट दे दिया। ये दोनों ही काम सरकार जब चाहे दबोच सकती थी, और इस तरह छात्र नेताओं पर कलेक्टर का कब्जा बने रहा, धीरे-धीरे छात्र राजनीति बड़ी कमाई का जरिया बन गया, और छात्र आंदोलन खत्म हो गए।
कांग्रेस के नेताओं ने अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से एक और धंधे पर अपना एकाधिकार बना रखा था, सहकारी संस्थाओं का। मंडी से लेकर बैंक तक, और हाऊसिंग सोसाइटियों तक सत्यनारायण शर्मा, राधेश्याम शर्मा, गुरूमुख सिंह होरा, मोहम्मद अकबर जैसे कांग्रेस नेताओं का कब्जा रहा, और कांग्रेस की राजनीति इनके सहारे च