राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : प्रमोशन मिला, ओहदा नहीं...
12-Aug-2019
 छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : प्रमोशन मिला, ओहदा नहीं...

प्रमोशन मिला, ओहदा नहीं...

बड़े अफसरों के बीच अपनी बैच के साथी अफसरों के लिए अच्छी भावना प्रमोशन के दो मौकों के बीच बनी रहती है, लेकिन प्रमोशन के वक्त हर किसी को जंगल की जिंदगी की तरह अपनी खुद की परवाह करनी होती है। सरकार में ऊंचे ओहदों पर बैठे हुए लोग चाहे किसी भी विभाग के हैं, किसी भी सेवा में हों, जब प्रमोशन का मौका आता है तो उनके बीच गलाकाट मुकाबला खड़ा हो जाता है। पिछले कुछ बरसों में छत्तीसगढ़ में एक साथ तीन-तीन, या उससे भी अधिक लोगों के प्रमोशन का मौका आया, और लोग इस गलाकाट मुकाबले में बेचैन होते दिखे। फिलहाल सबसे ताजा मामला पुलिस में तीन नए बने एडीजी का है, जिन्हें ओहदा तो मिल गया है, लेकिन नई कुर्सियां नहीं मिली हैं। अब इतनी ऊंची कुर्सियां राज्य में हैं तो सही, खाली भी हैं, लेकिन सरकार भी फैसला लेने में खासा वक्त ले रही है, सबके सामने कुछ न कुछ चुनौतियां रखी गई हैं कि उन पर खरा उतरकर दिखाएं। सरकारी नौकरी में प्रमोशन तो आगे-पीछे हक से मिल सकता है, लेकिन उस दर्जे की किस कुर्सी पर बिठाना है, यह तो सरकार का विशेषाधिकार रहता है। फिलहाल पुलिस के तीनों लोग प्रमोशन के पहले की कुर्सियों पर ही बैठे हैं।

ओवैसी से सामना
संसद भवन में तेजतर्रार मुस्लिम सांसद असउद्दीन ओवैसी के साथ बातचीत में मशगूल पूर्व मंत्री प्रेमप्रकाश पांडेय, अजय चंद्राकर और शिवरतन शर्मा की हंसती-मुस्कुराती तस्वीर वायरल हुई, तो भाजपा के कई कार्यकर्ता नाराज हो गए और सोशल मीडिया में अपने नेताओं को जमकर कोसा था। लेकिन पिछले दिनों सांसद सुनील सोनी, असउद्दीन ओवैसी से भिड़ गए। 

मौका था एनआईए विधेयक पर चर्चा का। ओवैसी ने लोकसभा में विधेयक पर चर्चा के दौरान हरेक प्रावधान का कड़ा विरोध किया और विधेयक को अल्पसंख्यक विरोधी तक करार दिया। उन्होंने कहा कि सरकार अगर आतंकवाद के खिलाफ गंभीर है तो फिर वे मक्का मस्जिद ब्लास्ट, समझौता ब्लास्ट और अजमेर ब्लास्ट के खिलाफ अपील क्यों नहीं करते। आरोप लगाया कि इनका अप्रोच उस समय सॉफ्ट होता है जब पीडि़त मुसलमान हो और आरोपी हिन्दू। आतंकी गतिविधियों की जांच के लिए एनआईए को और अधिकार दिए जाने के इस विधेयक पर उनके तर्क सुनील सोनी को बर्दाश्त नहीं हुए।
 
सुनते हैं कि बिल पास होने के बाद संसद भवन के सेंट्रल हॉल में जब ओवैसी बैठे थे, तो सुनील सोनी उनके पास पहुंचे और कहा कि आप जैसों के कारण आम देशभक्त मुसलमानों को कटघरे में खड़ा होना पड़ता है। इस पर ओवैसी भी भड़क गए और उन्होंने सुनील सोनी को तीखे स्वर में कहा कि आप मुझे समझाएंगे? इस पर सोनी ने उन्हें कहा कि वे समझा नहीं रहे हैं, बता रहे हैं। यह कहकर वहां सेे निकल गए। 

कैमरे की चतुराई...
जो लोग मीडिया के काम बारीकी से नहीं देखते उन्हें यह अंदाज नहीं लगता कि किसी जगह पर भीड़ या जुलूस का आकार क्या है। मीडिया के कैमरे और उनके पीछे के लोग इस बात को जानते हैं कि जिन नजारों को वे कैमरों में कैद कर रहे हैं, वे अगर बड़े न दिखे, तो फिर मीडिया पर या मीडिया में दिखेंगे भी नहीं। इसलिए अपने काम की मौजूदगी दर्ज कराने के लिए उन्हें उस घटना को महत्वपूर्ण और बड़ा भी बताना होता है, जिसे दर्ज करने के लिए उन्होंने वक्त लगाया है, और दिन भर के अपने काम को दिखाने के लिए उन्हें यह छपने लायक या प्रसारित होने लायक भी साबित करना है। नतीजा यह होता है कि कैमरों के पीछे के चतुर लोग उसी भीड़ को अलग-अलग तरफ से दिखाकर उसे महत्वपूर्ण बता सकते हैं। जिस तस्वीर या वीडियो में कैमरा लोगों के सिर के नीचे की ऊंचाई पर रहे, वहां जान लीजिए कि भीड़ बहुत कम है, गिने-चुने सिर और गिने-चुने पोस्टर अधिक दिखाने के लिए कैमरे को नीचे रखा जाता है। और जब भीड़ सैलाब की तरह बड़ी हो तो फोटोग्राफर किसी इमारत की छत पर पहुंच जाते हैं और जनसैलाब को दिखाने लगते हैं। भीड़ कम तो कैमरे की ऊंचाई कम, और भीड़ अधिक तो कैमरे की ऊंचाई अधिक। अब उत्तरप्रदेश के बलात्कार-हत्या के आरोपी भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के समर्थकों ने अभी उन्नाव में अपने विधायक की बेकसूरी का दावा करते हुए एक जुलूस निकाला, तो कैमरे की ऊंचाई लोगों के कंधों से ऊपर नहीं जा पाई, मतलब यही कि भीड़ महज कुछ सिरों की थी, और पीछे का खाली हिस्सा दिखता तो भला कौन सा अखबार इस तस्वीर को जगह देता, या कौन सा चैनल ऐसे वीडियो को दिखाता। इसलिए फोटोग्राफर और कैमरापर्सन के अपने पापी पेट का सवाल रहता है, और वे इस छोटी सी तरकीब को इस धंधे में आते ही सीख लेते हैं। 

पत्रकारिता विवि में संघीय राजनीति
कुशाभाई ठाकरे पत्रकारिता विवि में सरकार बदलने के बाद सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। तभी तो कुलपति नप गए और अब कुलसचिव को निपटाने की जोर आजमाइश हो रही है। दरअसल, बीजेपी के राज में संघ से जुड़े शिक्षकों और कर्मचारियों ने खूब जलवा काटा, अब सरकार बदल गई तो उन्हें बदलने में समय तो लगेगा, लेकिन इतने बरस की भाई साहब वाली आदत आसानी से कहां छूटने वाली है। जहां भी अपनी बिरादरी का कोई दिखता है, प्रेम छलकने लगता है। इसी प्रेम ने वहां एक बार फिर संघ के विचारधारा वाले लोगों की एंट्री के लिए जोड़-तोड़ शुरू कर दिया। अब जब मामला खुल गया तो वहां के एक बड़े गुरुजी पूरा ठीकरा कुलसचिव पर फोडऩे की मुहिम में लग गए हैं। विवि के शिक्षकों का कहना है कि दरअसल बड़े गुरूजी कुलसचिव बनने की फिराक में है, इसलिए कुलसचिव को दांव पेंच में उलझाकर सरकार के सामने उनकी छवि खराब करना चाहते हैं, ताकि सरकार की नाराजगी के चलते उनकी रवानगी हो जाए। इसलिए वो उनके खिलाफ खबरें प्लांट करवाने में लगे रहते हैं। अब उनकी यह पोल भी खुलने लगी है। अब बेचारे बड़े गुरुजी अपने अरमानों का गला घुटते देख मुंह लटकाए घूम रहे हैं। पत्रकारिता पढ़ाने वाले बड़े गुरूजी की दाल नहीं गलने पर वहां के कर्मचारी भी खूब मजे ले रहे हैं।  ([email protected])

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