राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : तबादलों के सौदों का मौसम
22-Aug-2019
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : तबादलों के सौदों का मौसम

तबादलों के सौदों का मौसम

ट्रांसफर का सीजन चल रहा है। सरकार कोई भी हो, ट्रांसफर-पोस्टिंग लेन-देन की खबरें चर्चा में रहती हैं। इस बार भी छोटे-बड़े नेता और दलाल सक्रिय दिख रहे हैं। कई विभाग ऐसे हैं, जहां बिना लेन-देन के ट्रांसफर मुश्किल सा दिखता है। इनमें परिवहन और आबकारी विभाग हैं। ये दोनों विभाग बेहद कमाऊ माने जाते हैं। कुछ पुराने परिवहन अफसर याद करते हैं कि अविभाजित मध्यप्रदेश में सिर्फ एक बार ही लेन-देन नहीं हुआ था, वह भी राष्ट्रपति शासन का दौर था। उस वक्त राज्यपाल कुंवर मेहमूदअली खान ने बड़े पैमाने पर परिवहन अफसरों के तबादले किए। तब छत्तीसगढ़ के रिटायर्ड मुख्य सचिव शिवराज सिंह ट्रांसपोर्ट कमिश्नर के पद पर थे। 

शिवराज सिंह के प्रस्तावों को कुंवर मेहमूदअली खान ने जस के तस मंजूरी दे दी। बिना पैसे के भारी भरकम तबादले की उन दिनों काफी चर्चा रही। छत्तीसगढ़ बनने के बाद विशेषकर परिवहन और आबकारी में तो सीएम हाउस तक का दखल रहा है। सीएम रमन सिंह भी उस वक्त विवादों में घिर गए जब उनके रिश्तेदार संजय सिंह की परिवहन में पोस्टिंग हुई और उनके खिलाफ भारी भ्रष्टाचार की शिकायतें आई। बाद में खुद रमन सिंह को इस मामले में सफाई देनी पड़ी। बाद में संजय सिंह को वापस पर्यटन बोर्ड भेज दिया गया। मगर, इस बार ट्रांसफर सीजन में कमाऊ विभागों से ज्यादा स्कूल शिक्षा विभाग में लेन-देन की खबरें चर्चा में है। खुद स्कूल शिक्षा मंत्री ने एक प्रकरण को पुलिस को जांच के लिए सौंपा है। 

स्कूल शिक्षा मंत्री के दावे के बावजूद उनके विभाग में लेन-देन की चर्चा थम नहीं रही है। रायपुर के सबसे पुराने स्कूल के प्राचार्य का तबादला रूकवाने के लिए एक विधायक और कांग्रेस पार्षद, मंत्री बंगले पहुंच गए। सुनते हैं कि प्राचार्य पिछले चार सालों से वहां हैं और वे पिछली सरकार के एक प्रभावशाली मंत्री के करीबी भी रहे हैं। सरकार बदलने के बाद जब उनके तबादले के प्रस्ताव पर चर्चा हुई, तो कांग्रेस विधायक और पार्षद, प्राचार्य का तबादला रोकने के लिए अड़ गए। इसमें भी लेन-देन की चर्चा है। कुछ सूची तो छोटे-बड़े नेताओं की आपसी खींचतान के चलते जारी नहीं हो पा रही है। 

अब जंगल में मंगल

राज्य बनने के बाद पीसीसीएफ (मुख्यालय) को डीजीपी की तरह अधिकार दिया जा रहा है। यानी पीसीसीएफ (मुख्यालय) रेंजर तक के तबादले कर सकेंगे। इसके लिए फाइल शासन को भेजने की जरूरत नहीं है। यह सब विभागीय मंत्री मोहम्मद अकबर की पहल पर हो रहा है। 
वैसे तो, पिछले 15 साल में वन विभाग ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिए कुख्यात रहा है। दागी-बागी टाइप अफसर मलाईदार जगहों पर रहे हैं। लेकिन इस बार कुछ व्यवस्था बदली है। सिर्फ जरूरी तबादले ही हो रहे हैं और उन अफसरों को आगे लाया जा रहा है, जो कि बरसों से लूप लाइन पर रहे हैं, उन्हें काम करने का बेहतर अवसर दिया जा रहा है। इस अवसर का फायदा उठाकर कुछ बेहतर  किया तो ठीक, अन्यथा हटाने में देर नहीं लगेगी।

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