राजपथ - जनपथ
शिक्षाकर्मी, जितनी संख्या, उतने किस्से
कुछ शिक्षाकर्मी नेताओं के तबादले से सोशल मीडिया में कोहराम मचा है। कई शिक्षाकर्मी सरकार को भला-बुरा कह रहे हैं। सर्वाधिक चर्चा वीरेंद्र दुबे की हो रही है, जो कि शिक्षाकर्मी संघ के एक बड़े धड़े के प्रदेश अध्यक्ष हैं। वे मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र पाटन के एक स्कूल में पदस्थ थे, जिन्हें बेमेतरा जिले में भेजा गया है। वैसे तो शिक्षाकर्मी नेताओं को स्कूल में कभी पढ़ाते नहीं देखा गया, वे ज्यादातर समय टीवी डिबेट पर या फिर अपने संगठन को मजबूत करने में ही लगे रहते हैं।
शिक्षाकर्मियों की संख्या भी पौने दो लाख से अधिक हो गई है। ऐसे में संगठन के पास अच्छा-खासा चंदा भी इक_ा हो जाता है। शिक्षाकर्मियों में एकजुटता भी है और नियमितीकरण की मांग को लेकर पिछली सरकार को हिलाकर रख दिया था। ऐसे में शिक्षाकर्मी नेताओं पर कभी कार्रवाई नहीं हो पाती। हड़ताल के वक्त कई बार शिक्षाकर्मी नेताओं को बर्खास्त भी किया गया, लेकिन जल्द ही उन्हें बहाल भी कर दिया गया।
हाल यह है कि वीरेंद्र दुबे जैसे अन्य शिक्षाकर्मी नेता महंगी गाडिय़ों में देखे जा सकते हैं। और चुनाव के वक्त राजनीतिक दल के लोग उनसे समर्थन जुटाने की कोशिश में रहते हैं। कांग्रेस ने शिक्षाकर्मियों का समर्थन हासिल करने के लिए वीरेंद्र दुबे गुट के शिक्षाकर्मी चंद्रदेव राय को कांग्रेस ने टिकट भी दी थी और वे बिलाईगढ़ से अच्छे मतों से चुनाव भी जीते, मगर वीरेंद्र दुबे का जुड़ाव कांग्रेस के बजाए भाजपा से रहा है।
चर्चा हैं कि शिक्षाकर्मी नेताओं को भाजपा के पाले में लाने में पूर्व कलेक्टर ओपी चौधरी की अहम भूमिका रही है। वे प्रशासनिक सेवा में आने से पहले शिक्षाकर्मी रह चुके हैं। शिक्षाकर्मी नेताओं के समर्थन के बावजूद प्रदेश में भाजपा सरकार नहीं बन पाई। अलबत्ता, खुले तौर पर प्रचार करने वाले नेता कांग्रेस सरकार के निशाने पर आ गए हैं।
पिछले दिनों एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में वीरेंद्र दुबे ने सीएम भूपेश बघेल से पूछ लिया कि सरकार शिक्षकों के लिए क्या कर रही है? इस पर सीएम ने कहा कि शिक्षकों के लिए बहुत कुछ किया है। रमन सरकार ने संविलियन की सिर्फ घोषणा की थी, लेकिन हमने उसे पूरा किया और 11 सौ करोड़ रुपये बजट में प्रावधान भी किया। साथ ही उन्होंने मंच से ही वीरेंद्र दुबे से कहा कि आपसे अलग से यह जरूर जानना चाहूंगा कि पिछली सरकार में शिक्षाकर्मियों का आंदोलन हुआ था, तो आप एक बजे रात को रहस्यमय तरीके से जेल से निकलकर किससे मिलने के लिए गए थे? फिर अगले दिन आंदोलन खत्म भी हो गया। सीएम की बात सुनकर हड़बड़ाए वीरेंद्र दुबे चुपचाप खिसक लिए।
बाद में खबर छनकर आई कि उस वक्त के कलेक्टर ओपी चौधरी, वीरेंद्र दुबे और एक-दो अन्य नेताओं को चुपचाप जेल से अमन सिंह से मिलाने ले गए थे। कुछ डील भी हुई और शिक्षाकर्मियों का आंदोलन खत्म हो गया, लेकिन शिक्षाकर्मियों का विश्वास अपने नेताओं पर से उठ गया और उन्होंने विधानसभा चुनाव में रमन सरकार के खिलाफ माहौल तैयार करने में अहम भूमिका निभाई।