राजपथ - जनपथ
भट्ट ने बिठाया भट्ठा
नान घोटाले के आरोपी शिवशंकर भट्ट के कोर्ट के समक्ष धारा 164 के बयान से भाजपा बैकफुट पर आ गई है। भट्ट ने कई खुलासे किए हैं, जिन्हें खारिज करना मुश्किल है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि भाजपा के कई बड़े नेताओं से उनका याराना था। वे सबसे पहले सुभाष राव के करीब आए और फिर एक-एक कर पार्टी में संगठन में हावी नेताओं के नजदीकी बन गए। भट्ट, रमेश बैस और रमन सिंह के केन्द्रीय मंत्री रहते उनके स्टॉफ में रहे। ऐसे में उन्हें कांग्रेस से जुड़ा बताकर उनके आरोपों को खारिज नहीं किया जा सकता है।
इसका क्या जवाब होगा?
फिर यह भी याद रखने की जरूरत है कि भट्ट को पिछली भाजपा सरकार के पहले कार्यकाल में, 2006 में 20 हजार रुपये रिश्वत लेते पकड़ा गया था, और एसीबी ने मुकदमा चलाने के लिए सरकार से इजाजत मांगी। मंत्री ने फाईल महाधिवक्ता को भेज दी, और बरस दर बरस सोची-समझी रफ्तार से गुजरते चले गए। रमन सरकार के पहले कार्यकाल में पकड़ाया मामला, रमन सरकार के तीसरे कार्यकाल में जाकर, दस बरस बाद 2015 में अनुमति पा सका, और यह भी तब हुआ जब नागरिक आपूर्ति निगम के मामले में भट्ट वैसे भी घेरे में आ चुका था। अब रिश्वत लेते पकड़ाने के मामले में दस बरस इजाजत देने में लगाने के पीछे सरकार की नीयत क्या थी, इसे समझाने के बाद ही भट्ट की साख चौपट की जा सकती है।
अफरा-तफरी का स्थाई कारोबार
भट्ट ने एक बड़ा खुलासा कस्टम मिलिंग की नीति में बदलाव को लेकर किया है। वर्ष-2013 से पहले नीति थी कि राइस मिलर्स अग्रिम में चावल जमा करेंगे अथवा धान की कीमत की बैंक गारंटी देंगे। मगर, यह नीति बदल दी गई। इसमें बदलाव से राइस मिलरों को बड़ा फायदा हुआ। करीब डेढ़ सौ राइस मिलरों ने निर्धारित समय अवधि में चावल नहीं जमा कराया। वे इसका उपयोग खुद के व्यवसाय के लिए करते रहे। इसके बाद आए प्रमुख सचिव डॉ. आलोक शुक्ला ने जायज-नाजायज तरीकों का इस्तेमाल कर अधिकांश लोगों से किसी तरह चावल वसूली कर ली। ये अलग बात है कि वे भी नान से जुड़े एक मामले में फंसे हुए हैं। मगर, अभी भी 20-25 मिलर्स से वसूली नहीं हो पाई है। यह सब दस्तावेजी प्रमाण हैं और इसकी जांच हुई, तो पिछली सरकार के कई लोग मुश्किल में पड़ सकते हैं। छत्तीसगढ़ में मिलिंग के लिए धान लेकर उसकी अफरा-तफरी करना सत्तारूढ़ पार्टी के कारोबारियों के लिए एक पसंदीदा धंधा बन चुका है और धान की हर बाली इनके नाम जानती है, लेकिन सत्ता हांकते मंत्री-अफसर इस पर इतने बरसों में भी महज इन्हें बचाते दिखते रहे हैं।
स्मार्ट सिटी और विधायक
रायपुर को स्मार्ट सिटी बनाने का काम चल रहा है। इस परियोजना में अरबों फूंके जा चुके हैं। मगर, यहां के कार्यों-खर्चों को लेकर शहर के चारों विधायक उदासीन प्रतीत हो रहे हैं। कम से कम जिला स्तरीय सतर्कता-निगरानी समिति की बैठक से यह बात उभरकर सामने आई है। यह बैठक दो दिन पहले हुई थी और इस बैठक में सभी विधायकों को मौजूद रहना था। बैठक में स्मार्ट सिटी पर प्रमुख रूप से चर्चा होनी थी। मगर, बैठक के फोटो सेशन के बाद कुलदीप जुनेजा और विकास उपाध्याय उठकर चले गए। बाकी दोनों पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और सत्यनारायण शर्मा बैठक में आए ही नहीं।
चारों विधायकों की गैरमौजूदगी के बावजूद बैठक करीब पांच घंटे चली। बैठक की अध्यक्षता कर रहे सांसद सुनील सोनी ने कई गैरजरूरी खर्चों पर नाराजगी जताई। साइकिल ट्रैक-पेंटिंग के नाम पर करोड़ों फूंक दिए गए। उन्होंने पूछ लिया कि अंडरग्राउंड ड्रेनेज सिस्टम के बिना शहर को कैसे स्मार्ट बनाया जा सकता है? यह सुनकर स्मार्ट सिटी परियोजना से जुड़े अफसर खामोश रह गए। फिर उन्होंने आगे कहा कि अंडर ग्राउंड ड्रेनेज सिस्टम के लिए केन्द्र धनराशि देने के लिए तैयार है तुरंत इसका प्रस्ताव भेजने के लिए कहा। स्मार्ट सिटी का काम पिछले चार साल से चल रहा है, लेकिन इसकी बारीक समीक्षा पहली बार हुई है और वह भी शहर के चारों विधायकों की गैरमौजूदगी में हुई।
तू समझता है अगर फिजूल मुझे, तू करके हिम्मत जरा भूल मुझे।
मुझे तीन बार फेल होने के बाद पता चला था समबाहु और विषमबाहु राक्षसों के नहीं त्रिभुजों के नाम थे..
मेरा सम्पर्क भले ही तुमसे टूट गया है, किन्तु मैं तुम्हारे घर का चक्कर लगाता रहूंगा