राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : हमेशा बोझ से लदा जीएडी...
15-Oct-2019
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : हमेशा बोझ से लदा जीएडी...

हमेशा बोझ से लदा जीएडी...

सरकारी अधिकारी-कर्मचारी संगठन प्रमोशन से जुड़ी विसंगतियों को दूर करने की मांग करते रहे हैं। पर जीएडी की तरफ से कोई ठोस पहल नहीं हो पा रही है। वैसे तो जीएडी सचिव डॉ. कमलप्रीत और रीता शांडिल्य, दोनों की साख अच्छी है, लेकिन उन पर काम का दबाव  ज्यादा है। राज्य गठन के बाद जीएडी में अनुभवी पंकज द्विवेदी और चंद्रहास बेहार जैसे अफसरों को बिठाया गया था, जिन्होंने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के बीच अधिकारी-कर्मचारियों के बंटवारे व प्रमोशन-आरक्षण जैसे विषय को काफी हद तक सुलझाया। 

बेहार को नियमों का काफी जानकार माना जाता है। यही वजह है कि रिटायरमेंट के कई साल बाद भी सरकार उनकी सेवाएं लेती रही है। वे प्रशासन अकादमी में प्रशिक्षु अफसरों की क्लास भी लेते हैं। सुनते हैं कि बेहार ने अपनी तरफ से नियम शाखा को मजबूत बनाने के लिए कई सुझाव दिए हैं। उन्होंने पत्र भी लिखा है। वे बिना किसी वेतन के मदद करने के तैयार भी हैं। परन्तु सरकार तो सरकार है जब तक कोर्ट का कोई सख्त निर्देश नहीं होता, समस्या का हल नहीं ढूंढा जाता है। 


पत्रकारों में चुहलबाजी का दौर
विवेकानंद तकनीकी विश्वविद्यालय में कुलपति को ही एक और कार्यकाल मिल गया इसलिए वह चर्चा से बाहर हो गया। लेकिन अब कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति का चयन होना है जो कि अटकलों में बना हुआ है। राज्य सरकार ने एक बड़ी समझदारी का फैसला लेकर इस ओहदे के लिए बाकी शर्तें घटा दीं, और पत्रकारिता का लंबा अनुभव ही एक शर्त रखी है। अब तक जितने कुलपति थे वे पत्रकारिता-शून्य थे, और एक पत्रकार के आने से यह विश्वविद्यालय जिंदा हो सकता है। ऐसे में पत्रकार एक-दूसरे से चुहलबाजी में लगे हुए हैं कि उनका नाम कुलपति के लिए चल रहा है। जिन लोगों को वहां किसी कार्यक्रम में बुलाया गया, उनके नाम को भी संभावित मान लिया जा रहा है। जो पत्रकार मुख्यमंत्री से अच्छे परिचित हैं, उनको भी सुपात्र समझा जा रहा है। इसके अलावा मुख्यमंत्री के तीन सलाहकार, विनोद वर्मा, रूचिर गर्ग, और प्रदीप शर्मा पत्रकार रहे हुए हैं, इसलिए देश के बहुत से अच्छे पत्रकारों से उनकी मित्रता रही है, और इस तरह संभावित नामों की लिस्ट बड़ी लंबी हो जा रही है। आने वाले दिनों में छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता के लिए यह एक महत्वपूर्ण फैसला हो सकता है कि इस विश्वविद्यालय से पत्रकार बनने लायक पढ़ाई करवाने वाले कुलपति आते हैं, या फिर इसकी बर्बादी जारी रहेगी। चूंकि सरकार ने नियम बदले हैं, इससे कुछ उम्मीद जागती है कि शायद कोई अच्छा कुलपति लाया जाए। फिलहाल जो चयन समिति बनी है, उसमें देश के एक सबसे अच्छे पत्रकार रहे ओम थानवी सदस्य हैं, जो कि राजस्थान के पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति भी हाल ही में बने हैं। उनके नाम से भी ऐसा लगता है कि वे किसी औने-पौने नाम पर समझौता नहीं करेंगे। तब तक पत्रकारों के बीच कुछ को सरकार का करीबी साबित करने का मजाक चल रहा है, और कुछ लोगों के बारे में यह मजाक चल रहा है कि वे अपनी बागी तेवर दिखाकर अपनी मौजूदगी दर्ज कर रहे हैं कि वे हैं ना...

हिंदुस्तान में लोगों की हसरतें नंबर प्लेटों पर दिखती हैं। चूंकि पुलिस का कोई भरोसा कानून लागू करने में रहता नहीं है, इसलिए छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में ही सड़कों पर हजारों गाडिय़ां तरह-तरह के अहंकारी नारों वाली दिखती हैं जो नंबर के बजाय दबदबा लिखवाकर चलती हैं। अब रायपुर के संजीत त्रिपाठी को कल रात आजाद चौक के पास डॉ. सुरेंद्र शुक्ला के नर्सिंग होम की पार्किंग में यह स्कूटर दिखी जो कि बेरला के राजा अंशुल भैया की है। अब दुर्ग जिले के ही मुख्यमंत्री भी हैं, वहीं के गृहमंत्री हैं, और अब पता लग रहा है कि उसी जिले के बेरला में एक राजा भी हैं। अब पुलिस की क्या हिम्मत हो सकती है किसी राजा को छूने की?

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