राजपथ - जनपथ
बड़ा और कड़ा फैसला
आखिरकार दाऊजी ने रायगढ़ के गारे पेलमा खदान से राज्य पॉवर कंपनी के संयंत्रों तक कोयला परिवहन के ठेके को निरस्त करने के आदेश दे दिया। उनके इस फरमान से पार्टी में हलचल मची हुई है, जो कि कोयला परिवहन कारोबार से जुड़े हैं। गारे पेलमा के माइनिंग ऑपरेटर अडानी समूह हैं और परिवहन में भी उनकी एकतरफा चलती है। मगर टेंडर में जो रेट आए थे वह काफी ज्यादा थे। इसके बाद उन्होंने पॉवर कंपनी के चेयरमैन शैलेन्द्र शुक्ला से चर्चा के बाद कड़ा और बड़ा फैसला ले लिया।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि अडानी समूह के खदानों में परिवहन का ठेका अंबिकापुर के कई बड़े लोगों के पास रहा है। यहां के परिवहन ठेकेदारों का दबदबा इतना है कि अंबिकापुर के मुख्य चौराहे में गांधीजी की प्रतिमा को किनारे लगा दिया गया। ताकि गाडिय़ों के आने-जाने में दिक्कत न हो। दिलचस्प बात यह है कि राजनेता तो दूर, बात-बात पर धरना प्रदर्शन और कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने वाले सामाजिक कार्यकर्ता भी इसको लेकर खामोश रहे। मगर इस बार दाऊजी के फैसले से अडानी-समर्थकों को गहरी चोट पहुंची है। इससे पहले लेमरू हाथी अभ्यारण्य के फैसले से अडानी समूह को बड़ा झटका लगा था। क्योंकि हसदेव अरण्ड इलाके में अडानी समूह को पीएल मिला हुआ था। विरोधी भी मानने लग गए हैं कि राज्यहित में बड़ा और कड़ा फैसला दाऊजी ही ले सकते हैं।
रमन सिंह की एक और पारी?
पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को प्रदेश भाजपा की कमान सौंपी जा सकती है। पार्टी हल्कों में इसकी चर्चा चल रही है। संगठन चुनाव में जिस तरह छोटे-बड़े फैसलों में रमन सिंह की राय ली जा रही है, उससे उन्हें अध्यक्ष बनाने की अटकलों को बल मिला है। 15 साल के सीएम रमन सिंह विधानसभा चुनाव में बुरी हार के बाद अभी भी पार्टी का सबसे लोकप्रिय चेहरा हैं।
जिलाध्यक्षों के चयन में उनकी राय को महत्व मिलने के संकेत हैं। खुद प्रदेश के चुनाव अधिकारी रामप्रताप सिंह और महामंत्री (संगठन) पवन साय जिलाध्यक्षों का नाम तय करने के पहले उनसे मंत्रणा कर चुके हैं। वैसे तो पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया है, लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में उनकी पूछ परख नहीं रह गई है। उन्होंने खुद भी दिल्ली आना-जाना एकदम कम कर दिया है। प्रदेश के नेता भी छोटी-मोटी शिकायतों को लेकर प्रदेश अध्यक्ष या अन्य किसी नेता के पास जाने के बजाए रमन सिंह के पास जाना ज्यादा पसंद कर रहे हैं।
सुनते हैं कि रमन सिंह ने राजनांदगांव में स्थानीय सांसद संतोष पाण्डेय और अन्य पूर्व विधायकों के विरोध के बावजूद महापौर मधुसूदन यादव को जिलाध्यक्ष बनाने के पक्ष में राय दे दी है। उन्होंने यह तर्क दिया है कि हेमचंद यादव के निधन के बाद पार्टी के पास कोई बड़ा यादव चेहरा नहीं है। चर्चा तो यह भी है कि मधुसूदन यादव को अध्यक्ष बनाने के लिए रमन सिंह के पुत्र अभिषेक सिंह का ज्यादा दबाव है।
रमन सिंह सिर्फ दुर्ग-भिलाई में ज्यादा कुछ नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि वहां सरोज पाण्डेय, और पे्रम प्रकाश पाण्डेय की दिलचस्पी है। बाकी जगह रमन सिंह की पसंद-नापसंदगी को तवज्जो मिल रही है। ऐसे में उन्हें प्रदेश की कमान सौंपने की अटकलें चल रही है, तो बेवजह नहीं हैं। उनके उत्साही समर्थक मानते हैं कि जिस तरह वर्ष-2003 में रमन सिंह के अध्यक्ष रहते प्रदेश में भाजपा सरकार बनाने में कामयाब हुई थी, उसी तरह चार साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में फिर से रमन सिंह की अगुवाई में सरकार बनाने में कामयाब होंगे। मगर क्या केन्द्रीय नेतृत्व भी ऐसा सोचता है, यह अगले महीने साफ हो जाएगा। ([email protected])