राजपथ - जनपथ
ये गेड़ी, भौंरा की मस्ती है...
छत्तीसगढ़ में इन दिनों दो बातें खूब चर्चा में है। पहली बात किसानों की धान खरीद और दूसरी सूबे के मुखिया भूपेश बघेल का ठेठ देसी अंदाज। कभी वो गेड़ी चढ़ते नजर आते हैं, तो कभी भौंरा चलाते या फिर नदी में आकर्षक डुबकी लगाते सुर्खियों में रहते हैं। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि वे अपने इस अंदाज के कारण खूब वाहवाही बटोर रहे हैं। इस बीच धान खरीद को लेकर भी खूब सियासत हो रही है। कांग्रेस बीजेपी दोनों एक दूसरे पर बरस रहे हैं। मामला कुछ भी हो लेकिन किसान की चिंता बढ़ गई है, क्योंकि धान खरीद 1 दिसंबर शुरू होगी। ऐसे में किसान को रोजमर्रा के कामकाज और खर्च के लिए धान बेचना ही पड़ता है। दिक्कत ये है कि समर्थन मूल्य से कम कीमत पर कोचिया या व्यापारी को धान बेचने में भी खतरा बना हुआ है। खेत-खलियान से जैसी ही गाड़ी निकलती है, पुलिस और प्रशासन की पैनी नजर उस पर टूट पड़ती है। कोई किसान सपड़ा गया तो समझो गए काम से, क्योंकि उनका सीआईडी दिमाग कहता है कि हो सकता है कि धान की तस्करी हो रही हो? पुलिस और प्रशासन को समझाने-बुझाने और कागज दिखाने में कम से कम दो तीन दिन का समय बीत जाता है। जैसे तैसे गाड़ी छूटती है तो मंडी में और व्यापारियों से जूझना पड़ता है। ऐसे ही परेशानी से जूझने के बाद एक किसान ने अपनी व्यथा इलाके के बड़े नेता को बताई तो उन्होंने तपाक से छत्तीसगढ़ी में कहा कि रुक अभी गेड़ी, भौंरा और डुबकी लगाए के बाद सोचबो धान के का करना हे। इतना सुनते ही किसान समझ गया कि अभी कुछ बोलना बेकार है।
खुद का माल बेचने के लिए...
रमन सरकार के समय इस रोक के पीछे सोच बताई जा रही थी कि ऐसी तमाम बिक्री पर रोक लगने से ही नया रायपुर के भूखंड, कमल विहार के भूखंड, और हाऊसिंग बोर्ड के मकान बिक सकेंगे। सरकार ने खुद ने इन सबका ऐसा दानवाकार आकार खड़ा कर दिया था कि उसे बेचना भारी पड़ रहा था, और अब साल भर गुजारने के बाद भी भूपेश सरकार इस बोझ से उबर नहीं पा रही है। पिछली सरकार के समय हाऊसिंग बोर्ड ने इस बड़े पैमाने पर गैरजरूरी निर्माण कर लिया था जिसमें चवन्नी दिलचस्पी जरूर थी, लेकिन बोर्ड का कोई फायदा नहीं था, घाटा ही घाटा था। उस समय हाऊसिंग बोर्ड के खाली मकानों को ठिकाने लगाने के लिए सरकार के सबसे ताकतवर सचिव पुलिस महकमे के पीछे लगे थे, और डीजीपी ए.एन.उपाध्याय और हाऊसिंग बोर्ड के एमडी डी.एम. अवस्थी पर लगातार दबाव डाला गया था कि वे पुलिसवालों के लिए मकान बनाने के बजाय हाऊसिंग बोर्ड के मकान ही खरीद लें। लेकिन उन्होंने हाऊसिंग बोर्ड के निर्माण को कमजोर बताते हुए और उनका दाम अधिक बताते हुए उस पर पुलिस का पैसा खर्च करने से मना कर दिया था। उसके बजाय पुलिस हाऊसिंग कार्पोरेशन ने अपने मकान बनाए थे जो कि शहर के अलग-अलग इलाकों में, थानों के आसपास, और पुलिस लाईन के आसपास बने, और छोटे पुलिस कर्मचारियों के अधिक काम भी आए।
छोटे प्लॉटों की छूट से जनता का भला
छोटे भू-खण्डों की रजिस्ट्री की अनुमति देने के फैसले को अच्छा प्रतिसाद मिला है। चार-पांच महीने में ही एक लाख से अधिक छोटे भू-खण्डों की रजिस्ट्री हो चुकी है। सरकार के इस फैसले से निम्न और मध्यम वर्ग के लोगों को बड़ा फायदा हुआ है, जो कि सरकारी नियमों के चलते मकान नहीं बना पा रहे थे, या अपनी निजी जरूरतों के लिए भी निजी जमीन को बेच नहीं पा रहे थे। पिछली सरकार में भी 22 सौ वर्गफीट से कम भू-खण्डों की रजिस्ट्री पर से रोक हटाने की मांग उठी थी। तब कैबिनेट की बैठक में दो मंत्रियों के बीच इसको लेकर काफी विवाद हुआ था। विवाद इतना ज्यादा हुआ था कि सीएम रमन सिंह को हस्तक्षेप करना पड़ा। रमन सिंह भी छोटे भू-खण्डों की रजिस्ट्री पर से रोक हटाने के पक्ष में थे, लेकिन एक अन्य मंत्री ने जब इसका विरोध किया तो वे भी पीछे हट गए। इसका नुकसान विधानसभा चुनाव में भाजपा को उठाना पड़ा और परंपरागत शहरी वोट कांग्रेस की तरफ खिसक गए।