राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : हारने वाले का इंतजार!
13-Dec-2019
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : हारने वाले का इंतजार!

हारने वाले का इंतजार!

वैसे तो रायपुर समेत 10 जिला भाजपा अध्यक्षों के चुनाव स्थगित हो गए हैं। इन जिलों में अध्यक्ष की नियुक्ति प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के बाद होंगे। राजधानी रायपुर के शहर अध्यक्ष पद को काफी अहम माना जाता है और पार्टी के सभी बड़े नेता अपने करीबी को अध्यक्ष बनाने की कोशिश में रहते हैं। रायपुर शहर में संगठन की कमान किसे सौंपी जाएगी, इसको लेकर पार्टी हल्कों में चर्चा चल रही है। संगठन के एक जानकार ने दावा किया कि जो पार्षद चुनाव में हारेगा उसे शहर जिला संगठन की कमान सौंपी जा सकती है। 

यह तर्क दिया जा रहा है कि महापौर पद के दावेदार, जिलाध्यक्ष बनने की होड़ में रहे हैं। इतिहास भी बताता है कि हारे हुए नेता को संगठन की कमान सौंपने में परहेज नहीं रहा है। अविभाजित मध्यप्रदेश में बालू भाई पटेल शहर जिला के अध्यक्ष थे, जो कि पार्षद का चुनाव भी हार चुके थे। इसके बाद जगदीश जैन अध्यक्ष बने, जो कि पद पर रहते पार्षद का चुनाव नहीं जीत पाए। इसके बाद अध्यक्ष बने गौरीशंकर अग्रवाल को भी पार्षद चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। उनके बाद के अध्यक्ष सच्चिदानंद उपासने तो कभी कोई भी चुनाव नहीं जीत पाए। इसके बाद के अध्यक्ष राजीव अग्रवाल, अशोक पाण्डेय भी पार्षद चुनाव हार चुके हैं। ये दोनों फिर चुनाव मैदान में हैं। 

राजीव अग्रवाल की जगह जिन नामों पर चर्चा चल रही है उनमें सुभाष तिवारी, संजय श्रीवास्तव, संजूनारायण सिंह ठाकुर और ओंकार बैस के नामों की चर्चा चल रही है। यह भी संयोग है कि ये सभी पार्षद का चुनाव भी लड़ रहे हैं। अगर इनमें से चुनाव हार चुके नेता को  संगठन की कमान सौंपी जाती है, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। क्योंकि इतिहास अपने आप दोहराता है। 

चुनाव में मजदूरी क्या बुरी?
म्युनिसिपल वार्डों के चुनाव खासे महंगे हो रहे हैं, जितनी महंगी बस्ती, जितने ताकतवर उम्मीदवार, उतने ही महंगे प्रचार का नजारा हो रहा है। शहर की एक महंगी कॉलोनी में हर दिन आधा दर्जन जुलूस निकल रहे हैं जिनमें सौ-दो सौ महिला-बच्चे किसी बुलंद आवाज वाले आदमी के नारों को दुहराते हुए, झंडे और पोस्टर लिए हुए, कैप लगाए हुए, और पर्चियां बांटते हुए चल रहे हैं। हो सकता है कि जुलूस में शामिल लोगों को रोजी मिल रही हो, लेकिन इसमें बुरा क्या है? कोई अगर भाड़े पर प्रचार करने वाले कहकर गाली देना चाहें, तो उन्हें याद दिलाना पड़ेगा कि इसी हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी म्युनिसिपल या पंचायत, देश की संसद में सवाल पूछने के लिए भाड़े के मुंह बाजार में खड़े थे, और संसद ने वह पूरी खरीद-बिक्री देखी हुई है। ऐसे में दिन भर मजदूरी करने, प्रचार करने के लिए अगर किसी को भुगतान मिलता है, तो वह सांसदों की बिक्री जैसा बदनाम धंधा नहीं है, वह मेहनत-मजदूरी का काम है जो कि मीडिया से जुड़े हुए कई नामी-गिरामी लोग भी चुनाव के वक्त करने लगते हैं। चुनाव के वक्त खासा कमाते हुए मीडिया वाले भी जिस तरह अपनी कलम बेचते हैं, उसके मुकाबले तो नारे लगाने वाले लोग महज मजदूर हैं, और सौ फीसदी ईमानदारी की मजदूरी ले रहे हैं। 

मतदाताओं के सामने सवाल
म्युनिसिपल चुनाव छत्तीसगढ़ में वैसे तो चुनाव चिन्हों पर, पार्टी के आधार पर हो रहे हैं, लेकिन वोटरों के सामने सवाल बहुत सारे खड़े हैं। पसंद की पार्टी को वोट दें, या उसके नापसंद उम्मीदवार को वोट दें, या नापसंद पार्टी के पसंद आ रहे प्रत्याशी को वोट दें, या दिल्ली की तरह आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार को वोट दें, और उम्मीद करें कि वार्ड का नक्शा उसी तरह बदल जाएगा जिस तरह केजरीवाल ने दिल्ली में अच्छे काम किए हैं? किसी पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार को वोट दें, या उसकी टिकट न पाने वाले बेहतर-बागी उम्मीदवार को चुनें? ये सवाल छोटे नहीं हैं, खासे बड़े हैं, और न सिर्फ अपने वार्ड का, बल्कि पूरे शहर का अगले पांच बरस का भविष्य तय करने वाले सवाल हैं। लोगों को अपने आसपास के दूसरे वोटरों से भी बात करना चाहिए कि क्या किया जाए? कुछ पार्टियों और कुछ प्रत्याशियों के तो समर्पित न्यूनतम वोटर रहते ही हैं, उन पर वक्त खराब नहीं करना चाहिए, बात उनसे करनी चाहिए जो कि किसी से प्रतिबद्ध नहीं हैं, और किसी के नाम का झंडा-डंडा लेकर नहीं चल रहे हैं। यह भी सोचना चाहिए कि शहर के म्युनिसिपल पर किसी एक पार्टी का कब्जा होने देना चाहिए, या फिर हर वार्ड से सबसे अच्छे लगने वाले, सबसे काबिल, ईमानदारी की थोड़ी सी संभावना वाले, अच्छे बर्ताव वाले उम्मीदवार को चुना जाए और फिर देखा जाए कि अच्छे-अच्छे पार्षद वहां जाकर किस पार्टी का साथ देते हैं, किसे अध्यक्ष या महापौर बनाते हैं। समझदारी की एक बात यह लगती है कि किसी भी पार्टी से परे इस बात को सबसे महत्वपूर्ण माना जाए कि पार्षद का वोट जिसे दें, उसका अपना, या उसके जीवन-साथी का, चाल-चलन अच्छा हो, जिसके साथ बेईमानी के किस्से जुड़े हुए न हों, और जो सुख-दुख में लोगों के साथ आकर खड़े रहते हों। अब देखना है कि वोटर अपने क्या पैमाने तय करते हैं।

आने वाले दिनों में क्या होगा?
रायपुर नगर निगम में जोगी पार्टी ने 40 वार्डों में प्रत्याशी खड़े किए हैं। वैसे तो पार्टी सभी 70 वार्डों में प्रत्याशी उतारना चाहती थी, लेकिन  बाकी वार्डों में तो प्रत्याशी तक नहीं मिल पाए। जोगी पार्टी का हाल यह है कि विधायक दल के मुखिया धर्मजीत सिंह प्रचार में रूचि नहीं ले रहे हैं। पार्टी के मुख्य सचेतक देवव्रत सिंह कांग्रेस के पक्ष में प्रचार कर रहे हैं। रायपुर और बिलासपुर जैसे बड़े नगर निगमों में जोगी पार्टी के एक-दो लोग भी चुनाव जीतकर आ जाते हैं, तो वह बहुत बड़ी बात होगी। यानी साफ है कि आने वाले दिनों में पार्टी की राह और भी कठिन होगी।

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news