राजपथ - जनपथ
जयदीप जर्मनी चले...
छत्तीसगढ़ कैडर के आईपीएस अफसर जयदीप सिंह की पोस्टिंग जर्मनी के भारतीय दूतावास में हो गई है। 97 बैच के आईपीएस जयदीप सिंह लंबे समय से आईबी में पदस्थ हैं। पिछले कुछ समय से वे छत्तीसगढ़ में आईबी का काम देख रहे हैं। जयदीप सिंह स्वास्थ्य सचिव निहारिका बारिक सिंह के पति हैं। चूंकि पति की विदेश में पोस्टिंग हो गई है, तो संभावना जताई जा रही है कि निहारिका बारिक सिंह भी केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जा सकती हैं। हालांकि अभी तक उन्होंने इसके लिए आवेदन नहीं किया है। करीबी जानकारों का कहना है कि अभी तुरंत उन्होंने ऐसा कुछ सोचा नहीं है।
अमितेष चुप नहीं रह पाए...
राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान विपक्ष की तरफ से टोका-टाकी की आशंका जताई जा रही है, लेकिन सबकुछ शांतिपूर्ण चल रहा था। तभी अमितेष शुक्ल खड़े हुए और उन्होंने राज्यपाल का अभिभाषण शांतिपूर्वक सुनने के लिए विपक्षी सदस्यों को साधुवाद दे दिया। यानी टोका-टाकी की शुरूआत खुद सत्तापक्ष के सदस्य ने कर दी। अमितेश की टिप्पणी पर सदन में ठहाका लगा। पिछले बरस अक्टूबर में जब गांधी पर विधानसभा का विशेष सत्र हुआ तो अमितेष शुक्ल ने तमाम विधायकों की तरह विशेष कोसा-पोशाक पहनने से इंकार कर दिया था, और नतीजा यह हुआ था कि विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरण दास महंत ने दो दिन के उस सत्र में अमितेष को बोलने नहीं दिया था, और वे नाराजगी से सदन के बाहर चले गए थे। इस बार उन्हें बोलने का मौका मिला। बाद में अभिभाषण खत्म होने के बाद भाजपा सदस्य बृजमोहन अग्रवाल ने धान खरीदी बंद होने से किसानों की परेशानी का मुद्दा उठाया।
आडंबर से उबरना भी जरूरी...
अभी-अभी महाशिवरात्रि के मौके पर एक बार फिर यह सवाल उठा कि कुपोषण के शिकार इस देश में जहां बच्चों को पीने के लिए दूध नसीब नहीं है, वहां पर क्या किसी भी प्रतिमा पर इस तरह दूध बर्बाद करना चाहिए? और बात महज हिन्दू धर्म के किसी एक देवी-देवता की नहीं है, यह बात तो तमाम धर्मों के लोगों की है जिनमें कहीं भी, किसी भी शक्ल में सामान की बर्बादी होती है, और लोग उससे वंचित रह जाते हैं। कई धर्मों को देखें, तो हिन्दू धर्म में ऐसी बर्बादी सबसे अधिक दिखती है। शिवलिंग पर चढ़ाया गया दूध नाली से बहकर निकल जाता है, और ऐसे ही मंदिरों के बाहर गरीब भिखारी, औरत और बच्चे भीख मांगते बैठे रहते हैं। जाहिर है कि ऐसे गरीबों को दूध तो नसीब होता नहीं है।
लेकिन समाज अपने ही धार्मिक रिवाजों से कई बार उबरता भी है। अभी सोशल मीडिया पर एक तस्वीर आई है जिसमें शिवलिंग पर दूध के पैकेट चढ़ाए गए हैं, और उसके बाद ये पैकेट गरीब और जरूरतमंद बच्चों को बांट दिए जाएंगे। धार्मिक रीति-रिवाजों में पाखंड खत्म करके इतना सुधार करने की जरूरत है कि ईश्वर को चढ़ाया गया एक-एक दाना, एक-एक बूंद गरीबों के लिए इस्तेमाल हो। जब ईश्वर के ही बनाए गए माने जाने वाले समाज में बच्चे भूख और कुपोषण के शिकार हैं, तो दूध को या खाने-पीने की किसी भी दूसरी चीज को नाली में क्यों बहाया जाए? यह भी सोचने की जरूरत है कि जब कण-कण में भगवान माने जाते हैं, तो ऐसे कुछ कणों को भूखा क्यों रखा जाए? धार्मिक आडंबर में बर्बादी क्यों की जाए? ऐसे बहुत से सवाल हैं जिनके जवाब लोगों को ढूंढने चाहिए, और चूंकि धार्मिक आस्था तो रातोंरात घट नहीं सकती, नई तरकीबें निकालकर बर्बादी घटाने का काम करना चाहिए। धर्म के नाम पर पहले से मोटापे के शिकार तबके को और अधिक खिला देना उन्हें मौत की तरफ तेजी से धकेलने का काम है, उससे कोई पुण्य नहीं मिल सकता। खिलाना तो उन्हें चाहिए जिन्हें इसकी जरूरत हो। अभी की शिवरात्रि तो निकल गई लेकिन अगली शिवरात्रि तक समाज के बीच यह बहस छिडऩी चाहिए कि दूध को इस तरह चढ़ाया जाए कि वह लोगों के काम आ सकें, जरूरतमंदों के काम आ सके। ([email protected])