राजपथ - जनपथ
केटीएस तुलसी का नाम कैसे आया?
बीती कल दोपहर के पहले छत्तीसगढ़ में किसी को यह अंदाज नहीं था कि सुप्रीम कोर्ट के एक बड़े वकील के.टी.एस. तुलसी को यहां से राज्यसभा भेजा जाएगा। कांग्रेस ने मोतीलाल वोरा की जगह इस नामी वकील को भेजना तय किया, तो लोग हैरान हुए। ऐसा तो लग रहा था कि उम्र को देखते हुए वोराजी को अब कांग्रेस मुख्यालय में बैठने के लिए राजी कर लिया जाएगा, और राज्यसभा में किसी ऐसे को भेजा जाएगा जिसकी सक्रियता अधिक हो। नब्बे बरस से अधिक के होने की वजह से राज्यसभा में बाकी लोग वोराजी से एक सम्मानजनक फासला भी बनाकर चलते थे, और कांग्रेस को वहां मेलजोल का फायदा नहीं मिल पा रहा था। वोराजी खुद भी आश्वस्त नहीं थे कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल उनका नाम सुझाएंगे, हालांकि ऐसी चर्चा है कि टी.एस. सिंहदेव, चरणदास महंत, और ताम्रध्वज साहू वोराजी के नाम के साथ थे। ताम्रध्वज को वोराजी का अहसान भी चुकता करना था जिन्होंने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने के लिए अपना सारा दमखम लगा दिया था, और सोनिया गांधी को लेकर राहुल के घर तक चले गए थे। खैर, वोरा के संसदीय कार्यकाल का एक बहुत लंबा अध्याय पूरा हुआ, और वे अपनी ताकत संगठन में लगा सकेंगे।
अब के.टी.एस. तुलसी की बात करें, तो एक वक्त था जब 2007 में वे गुजरात सरकार के वकील थे, लेकिन उन्होंने शोहराबुद्दीन मुठभेड़ मौतों में गुजरात सरकार की तरफ से खड़े होने से इंकार कर दिया था। एक वक्त वे अमित शाह को बचाने के लिए अदालत में खड़े होते थे। और आगे जाकर एक वक्त ऐसा आया जब वे सीबीआई के वकील थे, और अमित शाह के खिलाफ खड़े थे, तो सुप्रीम कोर्ट ने ही तुलसी को कहा था कि वे चूंकि शाह के वकील रह चुके हैं, इसलिए उनके खिलाफ खड़े होना ठीक नहीं है, वे अपना नाम वापिस लें, और तुलसी ने नाम वापिस ले लिया था।
यह एक दिलचस्प बात है कि जिस शोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ हत्या/मौत मामले में के.टी.एस. तुलसी वकील नहीं बने, उस केस में शोहराबुद्दीन के एक करीबी सहयोगी की भी हत्या हुई थी, और उसका भी नाम तुलसी (प्रजापति) था।
7 नवंबर 1947 को पंजाब के होशियारपुर में पैदा तुलसी ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट से वकालत शुरू की थी। फिर सुप्रीम कोर्ट तक आते-आते वे कई राज्य सरकारों और सुप्रीम कोर्ट के बड़े चर्चित मामले लड़ चुके थे। वे राजीव हत्याकांड से जुड़े मामलों में भी भारत सरकार की ओर से खड़े हुए, और तमिलनाडू सरकार की तरफ से शंकराचार्य के खिलाफ केस लड़ा। सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा के जमीन-जायदाद के मामले भी उन्होंने लड़े हैं। 2014 में यूपीए सरकार ने उन्हें राष्ट्रपति के कोटे से राज्यसभा में भेजा था।
के.टी.एस. तुलसी महंगी पार्टियां देने के शौकीन हैं, और पुरानी कारों को जमा करने के भी। 2012 की एक रिपोर्ट के मुताबिक वे हर पेशी पर खड़े होने की पांच लाख रूपए फीस लेते थे, लेकिन जरूरतमंद लोगों को मुफ्त में भी मदद करते हैं। वे एक ऐसे क्रिमिनल लॉयर हैं जो कि सरकारों की तरफ से भी केस लडऩे का काम करते हैं।
उनका नाम छत्तीसगढ़ की तरफ से भेजना कैसे तय हुआ, यह बात कुछ दिनों में सामने आएगी, लेकिन वे राजीव गांधी से लेकर रॉबर्ट वाड्रा तक के केस लड़ते हुए गांधी परिवार के करीब रहे हैं, और अपने खुद के दमखम से देश के प्रमुख वकीलों में उनका नाम है। छत्तीसगढ़ सरकार आज जितने तरह की कानूनी कार्रवाई में हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक व्यस्त है, वैसे में राज्यसभा सदस्य के रूप में के.टी.एस. तुलसी की सलाह उसके काम भी आ सकती है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का स्पष्ट बहुमत राज्यसभा की दोनों सीटों पर जीत की गारंटी है, और यहां कांग्रेस पार्टी में न कोई मतभेद हैं, न कोई बागी महत्वाकांक्षी हैं, ऐसे में यहां से राज्य के बाहर के तुलसी को उम्मीदवार बनाने में कोई दिक्कत नहीं थी। पहले भी मोहसिना किदवई यहां से दो बार राज्यसभा की सदस्य रह चुकी हैं, यह एक और बात है कि उनका कोई योगदान न राज्य में रहा, न संसद में।
एमपी में सिंहदेव की मदद से...
ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोडऩे का थोड़ा-बहुत असर छत्तीसगढ़ की राजनीति में भी पड़ सकता है। सिंधिया के करीबी और मप्र सरकार में मंत्री महेन्द्र सिंह सिसोदिया, स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के समधी हैं। सिसोदिया की पुत्री ऐश्वर्या की शादी सिंहदेव के भतीजे आदित्येश्वरशरण सिंहदेव से हुई है। सिसोदिया उन 20 कांग्रेस विधायकों में शामिल हैं, जिन्होंने सिंधिया के साथ भाजपा में जाने का फैसला लिया है। हालांकि अभी सिसोदिया के मान-मनौव्वल की कोशिश हो रही है।
सुनते हैं कि कांग्रेस के रणनीतिकार टी.एस. सिंहदेव के छोटे भाई (और आदित्येश्वरशरण सिंहदेव के पिता) एएस सिंहदेव के जरिए सिसोदिया को मनाने की कोशिश हो रही है। फिलहाल तो सिसोदिया को मनाने में कामयाबी नहीं मिल पाई है। दूसरी तरफ, छत्तीसगढ़ में सिंधिया के चुनिंदा समर्थक हैं। इनमें दुर्ग के दीपक दुबे भी हैं।
दीपक के अलावा खैरागढ़ राजघराने के सदस्य देवव्रत सिंह भी सिंधिया के करीबी माने जाते हैं। वैसे तो देवव्रत जनता कांग्रेस में हैं और वे कांग्रेस से निकटतता बढ़ा रहे हैं लेकिन बदली परिस्थियों में वे धीरे-धीरे भाजपा के करीब आ जाएं, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। वैसे भी जनता कांग्रेस के दो अन्य विधायक धर्मजीत सिंह और प्रमोद शर्मा ने नगरीय व पंचायत चुनाव में भाजपा का साथ दिया था। ऐसे में माना जा रहा है कि सिंधिया के चलते भाजपा मजबूत हो सकती है।
प्रियंका की नामंजूरी
अब जब पूरे देश के राज्यसभा उम्मीदवारों के नाम सामने आ चुके हैं, तब यह साफ हो गया है कि प्रियंका गांधी राज्यसभा नहीं जा रहीं। वे चाहतीं तो कई राज्यों से उनका नाम जा सकता था, छत्तीसगढ़ से भी, लेकिन सोनिया गांधी ने छत्तीसगढ़ के कुछ नेताओं से यह कहा था कि प्रियंका राज्यसभा जाना पसंद नहीं करेंगी। दरअसल सोनिया और राहुल लोकसभा में हैं, और अगर प्रियंका राज्यसभा जातीं, तो कुनबापरस्ती की बात एक बार और जोर पकड़ती। छत्तीसगढ़ के कुछ बड़े नेताओं ने सोनिया गांधी से यह अनुरोध जरूर किया था, लेकिन इस पर कोई जवाब नहीं मिला था।
कल की कांग्रेस की लिस्ट में अखिल भारतीय कांग्रेस के संगठन प्रभारी के.सी. वेणुगोपाल को राजस्थान से राज्यसभा का उम्मीदवार बनाया गया है। पहले उनका नाम छत्तीसगढ़ से चल रहा था, लेकिन फिर उन्हें राजस्थान की लिस्ट में रखा गया।