राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : आरएसएस का कब्जा बरकरार
19-Mar-2020
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : आरएसएस का कब्जा बरकरार

आरएसएस का कब्जा बरकरार

कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर आरएसएस से जुड़े बलदेव भाई शर्मा की नियुक्ति को लेकर विवाद चल रहा है। एनएसयूआई ने इसके विरोध में प्रदर्शन भी किया है। इस नियुक्ति को लेकर राजभवन और सरकार के बीच मतभेद उभर आए हैं। 'छत्तीसगढ़Ó के पास कुलपति चयन से जुड़े कुछ दस्तावेज भी मौजूद हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि कुलपति की नियुक्ति को लेकर राजभवन और सरकार के बीच किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन पाई थी। 

कुलपति चयन के लिए तीन सदस्यीय सर्च कमेटी बनाई गई थी। जिसमें यूजीसी द्वारा कुलदीप चंद अग्निहोत्री, विवि के कार्यपरिषद द्वारा  वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी और राज्य शासन द्वारा डॉ. के सुब्रमण्यिम  को सदस्य के रूप में नामांकित किया गया था। सर्च कमेटी ने देशभर से आए आवेदनों का परीक्षण कर 11 नवम्बर 2019 को 6 नामों का पैनल तैयार किया था। इसमें बलदेव भाई शर्मा, दिलीप मंडल, जगदीश उपासने, लवकुमार मिश्रा, मुकेश कुमार और उर्मिलेश के नाम थे। 

दस्तावेज बताते हैं कि राजभवन में सर्च कमेटी द्वारा अनुशंसित नामों के पैनल पर राज्य सरकार से अभिमत मांगा था। राज्य शासन द्वारा कुलपति पद के लिए उर्मिलेश का नाम सुझाया गया। इस पर राज्यपाल ने राज्यशासन के परामर्श से असहमत होते हुए बलदेव भाई शर्मा की नियुक्ति कर दी। छत्तीसगढ़ में पहली बार ऐसा हुआ है जब कुलपति की नियुक्ति को लेकर राजभवन और राज्यशासन के बीच एक राय नहीं दिखी। 

पिछली सरकार में भी राज्यपाल एक-दो मौके पर अपनी पसंद से कुलपति की नियुक्ति कर चुके हैं, लेकिन तब विवाद की स्थिति नहीं बनी थी। एक बार तत्कालीन राज्यपाल ईएलएस नरसिम्हन ने पैनल में अपने स्तर पर नाम छांटकर रविवि में कुलपति पद पर प्रो. एसके पाण्डेय की नियुक्ति की अनुशंसा कर दी थी। राज्य शासन ने तुरंत इसमें हामी भर दी। 

प्रो. पाण्डेय का कार्यकाल इतना बढिय़ा रहा कि राज्य शासन के परामर्श पर उन्हें दोबारा कुलपति नियुक्त किया गया। मगर इस बार मामला कुछ अलग था। यह पत्रकारों के साथ-साथ विचारधारा से भी जुड़ा था। ऐसे में राज्य शासन नहीं चाहती थी कि आरएसएस के कट्टर समर्थक और उसके मुखपत्र के संपादक बलदेव भाई शर्मा जैसे की कुलपति पद पर नियुक्ति हो, मगर ऐसा नहीं हुआ। ऐसे में विवाद होना तो स्वाभाविक है। जानकारों का अंदाजा यह भी है कि आने वाले दिनों में नियुक्ति और अन्य विषयों को लेकर राजभवन और सरकार के बीच खींचतान बढ़ सकती है, मुख्यमंत्री ने पिछले दिनों एक अनौपचारिक चर्चा में सरकारी बेबसी के बारे में कहा भी था, और राज्य सरकार राजभवन के सामने अपनी इस बेबसी को खत्म करने के लिए तैयारी भी कर रही है। कुल मिलाकर पिछले 15 बरस से इस विश्वविद्यालय पर आरएसएस का कब्जा अब भी जारी है, और भूपेश सरकार हक्का-बक्का है।

एक नजारा रायपुर का
राजधानी रायपुर के पंडरी इलाके की यह तस्वीर फेसबुक पर अभी दोपहर को मनमोहन अग्रवाल ने पोस्ट की है। यह महसूस कर पाना मुश्किल है कि इस तस्वीर को देखकर मुस्कुराया जाए, या रोया जाए। सफाई करने के बीच दो पल को बैठीं ये दोनों महिलाएं अपने-अपने मोबाइल पर जुट गई हैं। दोनों के पास स्मार्टफोन दिख रहे हैं जो कि मुस्कुराने की बात हो सकती है। लेकिन दोनों के चेहरे या गले बिना मास्क के दिख रहे हैं। वे सड़कों पर सफाई कर रही हैं, लेकिन कोई बचाव उनके पास नहीं है। आम लोग आज सुबह रायपुर में कोरोना का एक पॉजिटिव मामला मिलने के बाद दहशत में हैं, घरों में आना-जाना कम कर रहे हैं, बाजार के काम टाल रहे हैं, और ये महिलाएं बिना मास्क सफाई में लगी हैं। अब जनसुविधा के ऐसे कामों में लगे हुए लोगों के बचाव की जिम्मेदारी म्युनिसिपल की है जो कि शहर को स्मार्ट बनाने के नाम पर करोड़ों खर्च कर रहा है, और दसियों लाख रूपए तो दीवारों पर सफाई अभियान के नारे लिखवाने पर खर्च हो रहे हैं। सबको मालूम है कि सफाई कर्मचारी गंदगी और धूल में काम करते हैं, लेकिन उन्हें एक मास्क भी नसीब नहीं है, दस्ताने भी नहीं। 

और एक नजारा इंदौर का भी...
लेकिन यह हाल महज सफाई कर्मचारियों का है ऐसा भी नहीं, सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों को भी न दस्ताने मिले हैं, न मास्क। लोग जान पर खेलकर कोरोना जैसी बीमारी से जूझ रहे हैं। अब एक दिक्कत यह है कि धीरे-धीरे शवयात्रा में जाने वाले लोग भी कम होने लगेंगे। अभी एक अंतिम संस्कार में कुल 19 लोग जुटे, जिसमें दो ब्राम्हण थे, और दो नाबालिग। कंधा देने वाले कुल 15 लोग थे, जो बुरी तरह कम पड़ रहे थे। ऐसे में इंदौर के एक अखबार प्रजातंत्र में आज छपी यह तस्वीर देखने लायक है जिसमें एक पूर्व विधायक के परिवार में निधन के बाद शवयात्रा में आए तमाम लोगों को मास्क दिए गए ताकि उन्हें पहनकर ही वे चलें। लेकिन जैसा कि इस तस्वीर में दिख रहा है, शवयात्रा के सामने चल रहे बैंडपार्टी के लोग बिना मास्क के हैं। यह सामाजिक फर्क अब तक लोगों पर हावी है जिसमें महज अपनी नाक ढांक लेने को पूरी हिफाजत मान लिया जा रहा है, और आसपास काम करने वाले लोगों के लिए लोग अब भी बेफिक्र हैं। 

विदेश प्रवास महंगा पड़ा...
कोरोना के साए में दुबई प्रवास से लौटे कांग्रेस नेता रमेश वल्र्यानी को वाट्सएप ग्रुप में काफी भला-बुरा कहा जा रहा है। वल्र्यानी ने विदेश प्रवास से लौटने की जानकारी छिपा ली थी और अब विदेश प्रवास का पता लगने पर स्वास्थ्य विभाग ने उन्हें चिकित्सकीय निगरानी में घर में रहने के लिए कहा है। सुनते हैं कि वल्र्यानी और उनके साथियों ने चार महीने पहले होली के मौके पर दुबई की टिकट बुक करा ली थी। जब वे दुबई यात्रा के लिए रवाना हो रहे थे, तो कोरोना दुनियाभर में कहर मचा रहा था। 

दुबई सरकार ने भारतीयों को छोड़कर बाकी देशों के यात्रियों को प्रतिबंधित कर दिया था। यहां भी वल्र्यानी और उनके साथियों को कई शुभचिंतकों ने सलाह दी कि वे विदेश यात्रा टाल दें। कुछ लोग तैयार भी थे मगर यात्रा स्थगित होने से होटल-टिकट के 25 हजार रूपए नुकसान हो रहा था। इससे बचने के लिए वे दुबई चले गए। लौटकर आए, तो कोरोना को लेकर एडवायजरी को नजरअंदाज कर घूमने लग गए।  बात फैली, तो जिला प्रशासन और पुलिस में शिकायत हुई। आखिरकार वल्र्यानी समेत सभी 70 लोगों को होमआईसोलेसन में रखा गया है। सीएम भूपेश बघेल भी वल्र्यानी से बेहद नाराज बताए जाते हैं। थोड़े नुकसान के चक्कर में वल्र्यानीजी अपना बहुत कुछ नुकसान करा चुके हैं।   ([email protected])

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