राजपथ - जनपथ
पुरानी आदतें देर से बदलती हैं...
कुछ आदतें एकदम से नहीं बदलती हैं। पुलिस ने एक कार के शीशों से काली फिल्म निकलवा दी तो कार में चलने वाले की आदत एकदम से ढली नहीं। काले शीशे नीचे करके गुटखे की पीक बाहर थूकने की आदत बनी हुई थी, फिल्म हट गई थी, लेकिन शीशा चढ़ा हुआ था। बाहर का नजारा दिख रहा था तो भीतर से शीशा उतरा हुआ समझकर थूक दिया, सब कुछ कार की खिड़की के भीतर ही टपकने लगा। कुछ ऐसा ही हाल उन लोगों का हो रहा है जिन्होंने कोरोना की वजह से मास्क लगा रखे हैं, लेकिन मुंह पीक से भरा रहता है। सड़क पर दुपहिया चलाते एक तरफ सिर झुकाकर पीक थूक रहे हैं, तो बड़ी मुश्किल से बाजार में मिला मास्क बर्बाद हो जा रहा है, पान-तम्बाकू के दाग वाला मास्क धोकर भी पहनना मुमकिन नहीं है। इससे बचने के लिए कुछ लोग पीक के रंग का मास्क भी चाह सकते हैं, और उत्तर भारत के कारोबारियों को इस सांस्कृतिक-जरूरत के बारे में सोचना चाहिए, हल्के नीले-सफेद मास्क के बजाय कत्थई मास्क अधिक कामयाब रहेगा।
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