राजपथ - जनपथ
मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के बीच भाई-भाई का रिश्ता माना जाता है। जिस तरह से भाई आपस में अपनी पैतृक संपत्तियों का बंटवारा करते हैं। उसी तरह राज्य का दो हिस्सों में बंटवारा हुआ। सूबे के मुखिया भूपेश बघेल भी कहते रहते हैं कि मध्यप्रदेश उनके लिए बड़े भाई जैसा है, लेकिन कोरोना की महमारी ने भाई-भाई के बीच दूरी बढ़ा दी है। हालांकि यह आलोचना का विषय नहीं है,क्योंकि कोरोना के खिलाफ लड़ाई में सोशल डिस्टेंशिंग को सबसे बड़ा हथियार माना गया है। ऐसे में यह प्रासंगिक और जरुरी भी है और प्रदेश के मुखिया की इस दूरी को सावधानी के तौर पर देखा जाना चाहिए। लेकिन राज्य और मध्यप्रदेश के ब्यूरोक्रेट्स के बीच बन रही दूरी को अलग नजर से देखा जा रहा है। दरअसल, वहां का पूरा स्वास्थ्य महकमा यानि टॉप टू बॉटम कोरोना से संक्रमित हो गया है, लिहाजा यहां के अफसर गाइड लाइन का इस कदर कड़ाई से पालन कर रहे हैं कि वो मोबाइल या वाट्सएप के जरिए भी उनसे संपर्क रखने से बच रहे हैं। कुछ अफसरों को यहां तक भय है कि मरकज में शामिल लोगों को जिस तरह से मोबाइल नेटवर्क के माध्यम से ट्रेस किया गया, कहीं यहां भी बातचीत के आधार पर ट्रेस कर लिया गया, तो नई मुसीबत आ जाएगी। इसलिए थोड़े दिन की दूरी बना लेना ही बेहतर है। खैर, संक्रमण से बचने के लिए सभी अपने अपने तरीके से उपाय करते हैं और यहां भी कई तरह के प्रयोग किए जा रहे हैं और यदि ये केवल संक्रमण काल तक के लिए है, तो इसमें बुराई नहीं है। तभी तो कहा जाता है कि दाग लगने से कुछ अच्छा होता है, तो दाग अच्छे हैं।
ये भी है हमारे अदृश्य कोरोना फाइटर
कोरोना के खिलाफ लड़ाई में बड़ी भूमिका निभाने वाले डॉक्टर्स, नर्सेस और मेडिकल स्टॉफ की चारों तरफ प्रशंसा हो रही है और होनी भी चाहिए, क्योंकि वे लोग अपनी जान पर खेलकर कोरोना जैसी महामारी से लोगों की जान बचा रहे हैं। इनके बीच मेडिकल स्टोर्स के संचालक भी है, जो लगातार खतरों से खेलकर लोगों की सेवा कर रहे हैं, लेकिन इस महामारी की जंग में उनके योगदान का कोई नामलेवा नहीं है। बड़े-बड़े शहरों से लेकर गांव-गांव में फैले दवा दुकानदार रोजाना सैकड़ों अजनबी लोगों से मिलते हैं, उनसे बात करते हैं, दवा की पर्ची लेते-देते हैं। इसके बाद दवा देने से लेकर नोट लेना और चिल्हर लौटाना। तमाम ऐसी प्रक्रिया है, जिसके जरिए संक्रमण का खतरा रहता है। मेडिकल कारोबारी दूसरे धंधे से जुड़े लोगों की तुलना में मरीज और उनके परिजनों से बेहद आत्मीयता के साथ पेश आते हैं। इस काम में अधिकांश दुकानों में मालिक की उपस्थिति करीब करीब अनिवार्य होती है। यह काम केवल कर्मचारियों के भरोसे चलता हो, ऐसा कम ही देखने-सुनने को मिलता है। मास्क या सेनिटाइजर को छोड़ दें तो अधिक दाम पर बेचने की शिकायत भी सुनने को नहीं मिलती। कई दुकानदार जरुरतमंद और बुजुर्गों मरीजों को नियमित दवाएं घर पहुंचाकर भी दे रहे हैं, जिसका वो कोई अतिरिक्त पैसा भी नहीं ले रहे हैं। ऐसे संकट के समय में खतरा मोल लेकर दवाएं उपलब्ध कराने वाले दवा कारोबारी भी अदृश्य कोरोना फाइटर से कम नहीं है। ([email protected])