राजपथ - जनपथ
सबसे ऊपर बने रहना आसान नहीं...
सरकार में कुछ गिनी-चुनी कुर्सियां ऐसी रहती हैं जिनके एक से अधिक दावेदार रहते हैं। और सबसे ऊपर तो एक ही अफसर को बिठाया जा सकता है, इसलिए चाहे मुख्य सचिव हो, या डीजीपी, या वन विभाग के प्रमुख, इनकी कमजोरी, गलती, या गलत काम ढूंढने वाले खासे लोग रहते हैं।
अब डीजीपी डी.एम. अवस्थी ने लॉकडाऊन के बाद से पुलिस मुख्यालय जाना बंद करके पुराने रायपुर में पुराने पुलिस मुख्यालय के अहाते में हरी जाली का एक तम्बू बनवाया और उसी में बैठकर काम कर रहे हैं। नए रायपुर के पुलिस मुख्यालय में तो निजी गाडिय़ों वाले लोग ही जा सकते थे, सरकारी बसें बंद होने के बाद, ऑटोरिक्शा बंद होने के बाद आम लोग तो जा नहीं सकते, इसलिए बिना एसी के तम्बू में बैठकर डी.एम. अवस्थी काम कर रहे हैं। इस बीच कांग्रेस पार्टी में इन दिनों अकेला साधु-संन्यासी चेहरा बने हुए आचार्य प्रमोद कृष्णन ने कहीं यह खबर पढ़ी तो उन्होंने सोशल मीडिया पर इसकी जमकर तारीफ कर दी, और साथ-साथ छत्तीसगढ़ पुलिस की भी जो कि बहुत काम कर रही है। अब टीवी पर कांग्रेस पार्टी के अकेले हिन्दू संन्यासी आध्यात्मिक गुरू ने अगर यह तारीफ कर दी तो कुछ लोग डी.एम. अवस्थी के खिलाफ जुट गए, और तम्बू को नाटक करार देने लगे। अब यह नाटक है या नहीं, यह तो पता नहीं लेकिन पुलिस के छोटे-छोटे कर्मचारियों के परिवार जो दिक्कत लेकर डीजीपी से मिलने जाते हैं, उन्हें तो पुराने पुलिस मुख्यालय का यह तम्बू सुहा रहा है।
बाज़ार और सत्ता की राजनीति
आखिरकार सराफा और मोबाइल कारोबारियों को दूकान खोलने की अनुमति के लिए कांग्रेस नेताओं के यहां मत्था टेकना पड़ा। पहले ये कारोबारी सुनील सोनी और श्रीचंद सुंदरानी के भरोसे थे और उनके मार्फत जिला प्रशासन पर दबाव बनाने के कोशिश कर रहे थे, लेकिन उन्हें तगड़ा झटका लगा। बाकी कारोबारियों को सशर्त अनुमति मिल गई, लेकिन सराफा-मोबाइल कारोबारी रह गए।
चूंकि सरकार कांग्रेस की है, तो कांग्रेस नेता ज्यादा मददगार हो सकते हैं, यह समझने में इन कारोबारियों को थोड़ी देर लगी। खैर, ये सब सत्यनारायण शर्मा और कुलदीप जुनेजा के साथ कलेक्टर से चर्चा के लिए पहुंचे। सत्यनारायण शर्मा ने चित परिचित अंदाज में एक कारोबारी की तरफ इशारा करते हुए कहा कि यह हमेशा सेवा के लिए तत्पर रहता है। आपकी भी करेगा। यह सुनकर कलेक्टर समेत अन्य अफसर हंस पड़े। कलेक्टर ने कारोबारियों को आश्वस्त किया कि सोमवार से उनकी दिक्कतें दूर हो जाएंगी। इसके बाद कारोबारियों ने राहत की सांस ली।
धंधा मंदा है
लॉकडाउन के बाद धार्मिक संस्थानों की आय में भी बेहद कमी आई है। एक प्रतिष्ठित धर्मगुरू के संस्थान में तो कर्मचारियों को वेतन देने में दिक्कतें हो रही है। गुरूजी का प्रवचन कार्यक्रम बंद है। इससे अच्छी खासी आय हो जाती थी। इसके अलावा दानदाता भी खुले हाथ से दान करते थे। इससे संस्थान के आश्रम और अन्य सामाजिक कार्य स्कूल आदि अच्छे से चल रहे थे, लेकिन लॉकडाउन के बाद आमदनी एकदम कम हो गई। बड़े दानदाताओं ने हाथ खींच लिए हैं। एक पूर्व आईएएस, जो कि हमेशा गुरूजी के कार्यक्रम में शोभा बढ़ाते थे, वे भी खामोश हैं। संस्थान से जुड़े लोगों का मानना है कि लॉकडाउन लंबा चला, तो समाज सेवा से जुड़ी कई योजनाओं को बंद करना पड़ सकता है।
मशहूर का काम बढ़ गया
लॉकडाउन के बाद भी कुछ फेमस लोगों के खाने-पीने की दूकानें काफी चली। हुआ यूं कि इन लोगों ने घर से कारोबार शुरू कर दिया। नाम तो था ही। बिक्री भी पहले से ज्यादा हुई। कोतवाली-सदर बाजार के दो कचौरी वालों को तो फुर्सत ही नहीं थी। एक दिन पहले ऑर्डर देना होता था, तब दूसरे दिन लोगों को कचौरी मिल पाती थी। कुछ इसी तरह एक बड़े पान भंडार का भी हाल रहा। शहर के प्रतिष्ठित लोग उनकी दूकान में पान खाने आते थे, लॉकडाउन के बाद दूकान बंद हुई , तो पान के आदी हो चुके लोगों को काफी दिक्कतें हुई।
पान दूकान के संचालक ने ग्राहकों को संतुष्ट करने के लिए एक नया तरीका अपनाया। वे ग्राहकों से पान की पत्ती लाने के लिए कहते थे और फिर उसे बनाकर वापस दे देते थे। पान के शौकीन लोग पत्ती लेकर दूकान के पिछवाड़े में खड़े देखे जा सकते थे। इसी तरह कुछ दिन पहले एक प्रतिष्ठित मल्टीनेशनल कंपनी के कुछ अफसर रायपुर पहुंचे। उनमें से कुछ विशेष किस्म के पान मसाले के शौकीन थे। वे इसके लिए भारी भरकम कीमत देने के लिए तैयार थे। जब कंपनी के डिस्ट्रीब्यूटर उनके लिए दर्जनभर डिब्बा पान मसाला लेकर पहुंचे, तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। डिस्ट्रीब्यूटर ने पैसे लेने से मना किया तो वे भावुक हो गए और डिस्ट्रीब्यूटर को गले लगा लिया।