राजपथ - जनपथ
ये हैं चलते-फिरते मानव बम
राजधानी रायपुर के जीई रोड पर विवेकानंद आश्रम के सामने सडक़ किनारे सब्जी बाजार लगने लगा है। आज सुबह कपड़ों के ऊपर हल्का भूरा कोट पहनी हुई कुछ महिलाएं घूम रही थीं। उन्होंने पास से निकलते हुए एक साइकिल चालक को भी रोकने की कोशिश की। फिर दिखा कि वे मास्क न लगाए हुए लोगों को रोककर समझा रही हैं, और सब्जीवालियों में भी जिन्होंने मास्क नहीं लगाए हैं, उन्हें भी समझा रही हैं।
जाहिर तौर पर ये स्वास्थ्य कर्मचारी या सरकार के किसी दूसरी अमले की महिलाएं थीं जो कि अपनी सेहत को जोखिम में डालकर उन्हीं लोगों से बात कर रही थीं, जिन्होंने मास्क नहीं लगाए थे। ऐसे लापरवाह लोगों की मदद करते हुए जब सरकारी अमले को अपने आपको एक निहायत गैरजरूरी खतरे में डालना पड़ता है तो अफसोस होता है। सरकारी नौकरी की अपनी मजबूरी तो है लेकिन उन्हें अगर कोई इंसान भी न माने, और अपनी जिद, अपनी लापरवाही से ऐसे जिये कि उन्हें बचाने के लिए सरकारी अमला खतरे में पड़े, तो ऐसे लोगों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। जो लोग बिना मास्क लगाए दिख रहे हैं, उन्हें सडक़ों पर ही किनारे कम से कम घंटे भर बिठा देना चाहिए। आज इंटरनेट और सोशल मीडिया पर ऐसे अनगिनत वीडियो मौजूद हैं जिनमें किसी पुराने टी-शर्ट या पुराने अंडरवियर से मास्क बनाना दिखाया गया है। अब शहरों में जो पेट्रोल से चलने वाले दुपहिया पर चल रहे हैं, उनके पास घर पर फटा-पुराना कपड़ा न हो ऐसा तो हो नहीं सकता। इसके बावजूद लोग अगर अपनी जिद पर अड़े हुए हैं तो सरकार को सख्ती दिखानी चाहिए। जाति और धर्म के आधार पर जिस देश में कुछ लोगों को चलता-फिरता मानव बम कहा जाता है, उस देश में बिना जाति-धर्म के ऐसे चलते मानव बम पर जरूर कार्रवाई करनी चाहिए।
समाज के जिम्मेदार लोग भी इस नौबत को सुधार सकते हैं, अगर वे ऐसे फेरीवालों या दुकानदारों से सामान लेना बंद कर दें जिन्होंने मुंह ढका हुआ नहीं है।
गरीब की गाय शिक्षक
सरकार ने शिक्षकों को भी कोरोना मरीज ढूंढने के काम में लगाया है। चूंकि स्वास्थ्य कर्मियों की संख्या तो अपेक्षाकृत कम है। ऐसे में दूसरे विभाग के कर्मचारियों की स्वास्थ्य सेवाओं में उपयोग करना गलत भी नहीं है। अमूमन आपातकालीन स्थिति में ऐसा किया जाता है। मगर शिक्षकों में इसको लेकर बेचैनी साफ दिख रही है। दो दिन पहले रायपुर के रेडक्रास सोसायटी भवन में शिक्षकों और दूसरे विभाग के कर्मचारियों की ट्रेनिंग भी हुई।
उन्हें बताया गया कि गांवों में जाकर सर्दी-खांसी पीडि़त लोगों की जानकारी जुटाना है। साथ ही साथ ग्रामीणों को मास्क पहनने और सैनिटाइजर का उपयोग करने के लिए जागरूक करना भी है। यह भी कहा गया कि ब्लडप्रेशर और शुगर के मरीजों का भी ब्यौरा इक_ा करना होगा। क्योंकि सबसे ज्यादा कोरोना का संक्रमण का खतरा ब्लडप्रेशर-शुगर पीडि़त लोगों को है। ऐसे लोगों को आपातकालीन स्थिति को छोडक़र किसी भी दशा में घर से बाहर नहीं निकलने की सीख भी देनी है।
यह सुनकर कई शिक्षक खड़े हो गए, और उनमें से कई ने खुद को ब्लडप्रेशर और कुछ ने शुगर पीडि़त बताया। इन शिक्षकों ने खुद पर कोरोना का खतरा बताते हुए ड्यूटी से अलग करने की गुजारिश की, लेकिन ट्रेनरों ने हाथ जोड़ असमर्थता जता दी। दिलचस्प बात यह है कि कोरोना बचाव की इस ट्रेनिंग में न तो सामाजिक दूरी और शारीरिक दूरी का पालन किया गया और न ही वहां सैनिटाइजर की व्यवस्था थी।